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निवेश और अर्थव्यवस्था

निवेश और अर्थव्यवस्था
सीआईआई का अनुमान है कि 2018-19 में आर्थिक वृद्धि दर 7.3 से 7.7 प्रतिशत रहेगी. सीआईआई ने कहा कि पूंजीगत सामान क्षेत्र में सतत सुधार हो रहा है और आर्डर बढ़ रहे हैं. चालू वित्त वर्ष में निर्यात भी तेज रफ्तार से बढ़ने की उम्मीद है. (Reuters)

निवेश और अर्थव्यवस्था

2019 की तुलना में 2020 में 26 फीसदी से ज्यादा बढ़ा एफडीआई

जहां 2019 के दौरान देश में 3.78 लाख करोड़ रुपए का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ था वो 2020 में 25 फीसदी बढ़कर 4.74 लाख करोड़ पर पहुंच गया है

By Lalit Maurya

On: Monday 21 June 2021

विदेशी निवेशकों ने महामारी के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में एक बार फिर भरोसा दिखाया है। जिसका सबूत है देश के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में 2019 की तुलना में 2020 के दौरान 26 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है। जहां 2019 में देश में हुआ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 3.78 लाख करोड़ रुपए (5,100 करोड़ डॉलर) था वो 2020 में बढ़कर 4.74 लाख करोड़ (6,400 करोड़ डॉलर) पर पहुंच गया है। यह जानकारी यूएन कॉन्‍फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (यूएनसीटीएडी) द्वारा जारी वर्ल्ड इन्वेस्टमेंट रिपोर्ट 2021 में सामने आई है।

यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो भारत दुनिया का पांचवा ऐसा देश हैं जहां इतनी बड़ी मात्रा में विदेशी निवेश हुआ है। यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो भारत दुनिया का पांचवा ऐसा देश हैं जहां इतनी बड़ी मात्रा में विदेशी निवेश हुआ है। हालांकि कोविड-19 का असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर दर्ज किया गया है। इसके बावजूद देश में निवेश में बढ़ोतरी हुई है, जिसकी सबसे बड़ी वजह मजबूत बुनियाद है, जिसने मध्‍यम अवधि के लिए उम्‍मीद की किरण को बरकरार रखा है।

इसकी सबसे बड़ी वजह सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के क्षेत्र में बढ़ता निवेश है। अकेले अमेरिकी कंपनी अमेज़न ने देश के सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) क्षेत्र में 20,758 करोड़ रुपए (280 करोड़ डॉलर) का निवेश किया था।

हालांकि यदि वैश्विक अर्थव्यवस्था की बात करें तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में करीब 35 फीसदी की गिरावट आई है। जो 2019 में 1.5 लाख करोड़ डॉलर से घटकर 2020 में एक लाख करोड़ निवेश और अर्थव्यवस्था डॉलर रह गया है। वहीं यदि अमेरिका में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को देखें तो उसमें 2019 की तुलना में 40 फीसदी की गिरावट आई है। जो 26,100 करोड़ डॉलर से घटकर 15,600 करोड़ अमेरिकी डॉलर रह गया है। जबकि इस दौरान चीन में इसमें 5.7 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह 2020 में बढ़कर 14,900 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया है।

2020 में भारत से हुआ था 1,200 करोड़ डॉलर का एफडीआई ऑउटफ्लो

यदि दक्षिण एशिया की बात करें तो एफडीआई में 20 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है, जिसकी सबसे बड़ी वजह भारत में कंपनियों का हुआ विलय और अधिग्रहण है, जिससे निवेश 7,100 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया है।

महामारी के चलते दक्षिण एशिया में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी), स्वास्थ्य, इंफ्रास्ट्रक्चर और ऊर्जा क्षेत्र में निवेश बढ़ा है। हमारे अन्य पड़ोसियों की बात करें तो पाकिस्तान के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 6 फीसदी की गिरावट आई है। जिस वजह से वो घटकर 210 करोड़ डॉलर रह गया है। इसके बावजूद वहां एनर्जी और टेलीकम्यूनिकेशन के क्षेत्र में निवेश बढ़ा है। बांग्लादेश में 11 फीसदी और श्रीलंका में 43 फीसदी की कमी आई है।

वहीं यदि दूसरे देशों में भारत द्वारा किए निवेश यानी एफडीआई आउटफ्लो को देखें तो इस मामले में भारत, दुनिया की टॉप 20 अर्थव्‍यवस्‍थाओं में 18 वें स्थान पर था। 2020 में भारत से 1,200 करोड़ डॉलर का एफडीआई ऑउटफ्लो हुआ था, जो 2019 में 1,300 करोड़ डॉलर था।

सऊदी अरब ने भारतीय अर्थव्यवस्था में जताया भरोसा, निवेश योजनाओं पर आगे बढ़ेगा

फरवरी में सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने भारत के पेट्रो-रसायन, तेल शोधन, बुनियादी ढांचा, खनन, विनिर्माण , कृषि और कई अन्य क्षेत्रों में कुल 100 अरब डालर (करीब 7,400 अरब रुपये) के बड़े निवेश की योजना की घोषणा की थी.

सऊदी अरब ने भारतीय अर्थव्यवस्था में जताया भरोसा, निवेश योजनाओं पर आगे बढ़ेगा

सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान पिछले साल फरवरी में किया था निवेश का ऐलान (फाइल)

सऊदी अरब (Saudi Arabia ) ने भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian economy) की ताकत पर भरोसा जताया है. उसने रविवार को कहा कि भारत में निवेश की उसकी योजनाएं तय समय के अनुसार आगे बढेंगी. दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक देश सऊदी अरब का कहना निवेश और अर्थव्यवस्था है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कोरोना संक्रमण के झटकों से निकल कर आगे बढ़ने की पूरी ताकत और क्षमता मौजूद है. पिछले साल फरवरी में सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने भारत के पेट्रो-रसायन, तेल शोधन, बुनियादी ढांचा, खनन, विनिर्माण , कृषि और कई अन्य क्षेत्रों में कुल 100 अरब डालर (करीब 7,400 अरब रुपये) के बड़े निवेश की योजना की घोषणा की थी.

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भारत में सऊदी अरब (Saudi Arabia ) के राजदूत डा सऊद बिन मोहम्मद अल साती कहा कि भारत में निवेश की हमारी योजनाएं सही राह पर चल रही हैं. दोनों देशों में निवेश की प्राथमिकताएं तय करने में लगे हुए हैं. साती ने महामारी के संकट से अर्थव्यवस्था को उबारने में निवेश और अर्थव्यवस्था भारत के उपायों की सराहना की. दोनों देशों की अर्थव्यवस्था सुधरने से क्षेत्र के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं को भी मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि भारत विश्व की पांचवी सबसे बड़ी और दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. इसमें महामारी के मौजूदा संकट के असर से उबरने की पूरी क्षमता है.

उन्होंने भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे की हाल की सऊदी अरब की ऐतिहासिक यात्रा का सीधा उल्लेख किए बिना कहा कि 2019 में सामरिक भागीदारी परिषद के गठन से दोनों देशों के बीज कई क्षेत्रों में सहयोग के नए मार्ग खुले हैं. इसमें प्रतिरक्षा, सुरक्षा और पर्यटन के क्षेत्र भी शामिल हैं. जनरल नरवणे पिछले सप्ताह वहां गए थे. यह भारतीय सेना के किसी प्रमुख की सऊदी अरब की पहली यात्रा थी. सामरिक भागीदारी परिषद का गठन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गत वर्ष अक्टूबर की रियाद यात्रा के समय किया गया था. यह परिषद दोनों पक्ष के बीच रणनीतिक भागीदारियों में प्रगति की समीक्षा करती है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

भारत को अगले 4 साल में बुनियादी ढांचे पर 1.4 लाख करोड़ खर्च करने की जरूरत

अर्थव्यवस्था के तेज विकास के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश जरूरी है.

2000 NOTE

सुगम और तेज विकास के लिए, भारत को गुणवत्ता के बुनियादी ढांचे में पर्याप्त और समय पर निवेश की आवश्यकता है. नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन पर टास्क फोर्स की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वित्त वर्ष 2020 से 2025 की अवधि के दौरान 102 लाख करोड़ रुपये के कुल बुनियादी ढांचे के निवेश का अनुमान है.

विकास की गति को बनाए रखने के लिए तेजी से आगे बढ़ने वाली दुनिया में, भारत को अपने उद्योग और बुनियादी ढांचे को विकसित करना है. राष्ट्रीय संरचना पाइपलाइन से बेहतर तरीके से तैयार बुनियादी ढांचा परियोजनाएं आगे बढ़ेंगी जिससे रोजगार के मौके बढ़ेंगे. जीवनस्तर बेहतर हो सकेगा और सभी लोगों की इंफ्रास्ट्रक्चर तक समान पहुंच होगी. इससे आर्थिक विकास का लाभ समाज के हर तबके तक पहुंच सकेगा.

सुधार की राह पर अर्थव्यवस्था, बढ़ेगी निवेश की रफ्तार: CII

सीआईआई का अनुमान है कि 2018-19 में आर्थिक वृद्धि दर 7.3 से 7.7 प्रतिशत रहेगी. सीआईआई ने कहा कि पूंजीगत सामान क्षेत्र में सतत सुधार हो रहा है और आर्डर बढ़ रहे हैं. चालू वित्त वर्ष में निर्यात भी तेज रफ्तार से बढ़ने की उम्मीद है.

सुधार की राह पर अर्थव्यवस्था, बढ़ेगी निवेश की रफ्तार: CII

सीआईआई का अनुमान है कि 2018-19 में आर्थिक वृद्धि दर 7.3 से 7.7 प्रतिशत रहेगी. सीआईआई ने कहा कि पूंजीगत सामान क्षेत्र में सतत सुधार हो रहा है और आर्डर बढ़ रहे हैं. चालू वित्त वर्ष में निर्यात भी तेज रफ्तार से बढ़ने की उम्मीद है. (Reuters)

भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने विभिन्न क्षेत्र की कंपनियों की बिक्री और आर्डरों में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिल रहा है जो इस बात का संकेत है कि अर्थव्यवस्था की स्थिति सुधर रही है और निवेश रफ्तार पकड़ रहा है. सीआईआई के अध्यक्ष राकेश भारती मित्तल ने कहा कि सतत संरचनात्मक सुधारों का असर अब जमीन पर दिखने लगा है और एक बड़ी अर्थव्यवस्था की हालत सुधर रही है.

मित्तल ने कहा, ‘‘विभिन्न कारोबार क्षेत्रों में बिक्री और आर्डर उल्लेखनीय रूप से बढ़ रहे हैं जो बेहतर क्षमता इस्तेमाल तथा निवेश बढ़ने की उम्मीद जगाते हैं.’’ सीआईआई ने बयान में कहा, ‘‘गैर टिकाऊ उपभोक्ता सामान, दोपहिया और ट्रैक्टर क्षेत्रों में ग्रामीण मांग में सुधार हुआ है.ठोस वृहद आर्थिक प्रबंधन की वजह से वृद्धि और निवेश को प्रोत्साहन मिला है. क्षमता विस्तार के लिए निवेश की स्थितियां सुधरी हैं.’’

बयान में कहा गया है कि सरकार के कई अभियान मेक इन इंडिया , निवेश और अर्थव्यवस्था डिजिटल इंडिया , स्वच्छ भारत , स्वच्छ ऊर्जा और अन्य रफ्तार पकड़ रहे हैं. साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति भी सुधर रही है. मानसून सामान्य रहने की उम्मीद हैसी. सीआईआई का अनुमान है कि 2018-19 में आर्थिक वृद्धि दर 7.3 से 7.7 प्रतिशत रहेगी. सीआईआई ने कहा कि पूंजीगत सामान क्षेत्र में सतत सुधार हो रहा है और आर्डर बढ़ रहे हैं. चालू वित्त वर्ष में निर्यात भी तेज रफ्तार से बढ़ने की उम्मीद है.

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निवेश के रूप में सोना सबसे उपयोगी वस्‍तु क्‍यों है?

Gold Bars and Silver bars

सोना मूल्य-महत्‍ता का बहुत ही भरोसेमंद भंडार है

इतिहास के किसी-न-किसी पड़ाव में, नमक से लेकर तंबाकू से लेकर समुद्र तक की, सभी प्रकार की नरम कृषि वस्तुओं का इस्‍तेमाल मुद्राओं के रूप में किया गया है। लेकिन समय के साथ, इन नरम वस्तुओं का उपयोग कई कारणों से बंद भी किया जाता रहा :

  • इतिहास के किसी-न-किसी पड़ाव में, नमक से लेकर तंबाकू से लेकर समुद्र तक की, सभी प्रकार की नरम कृषि वस्तुओं का इस्‍तेमाल मुद्राओं के रूप में किया गया है। लेकिन समय के साथ, इन नरम वस्तुओं का उपयोग कई कारणों से बंद भी किया जाता रहा :
  • एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने पर इनका मूल्य बरकरार नहीं रहता था। उदाहरण के लिए, अफ्रीका के कुछ हिस्सों में नमक का उपयोग नहीं किया जा सकता था, क्‍योंकि वहां इसकी बहुतायत थी। आज भी, उदाहरण के लिए, तेल उत्पादन भौगोलिक रूप से दुनिया के कुछ ही हिस्‍सों में अधिक केंद्रित है; जैसेकि, तेल के प्रमाणित भंडारों का 50% से ज्‍यादा अभी मध्य पूर्व में स्थित है।
  • मुद्राओं के रूप में इनका उपयोग करना इन्हें इनके मूलभूत उपयोग यानी कि मानव उपभोग से दूर ले जाएगा

इन नरम वस्तुओं के बाद, धातुओं को मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मुद्रा के रूप में तांबा, लोहा और चांदी प्रचलन में थे। हालांकि, ये धातुएं भी कुछ इसी तरह के कारणों की वजह से असफल ही रहीं :

  • उदाहरण के लिए, चांदी या तांबे जैसी धातुओं के अनेकों औद्योगिक उपयोग हैं, और मुद्रा के रूप में इनके उपयोग से ये अपने मूलभूत उपयोग से दूर हो जाते हैं।
  • समय के साथ, सोने के अलावा अन्य सभी धातुएं अपना मूल्‍य या मान खो जाती हैं, क्योंकि वे बदरंगी हो जाती हैं या जंग खा जाती हैं

वहीं सोना अधिक लचीली और कोमल धातु होने के कारण सर्वश्रेष्ठ है, जो विद्युत का सबसे बेहतरीन सुचालक भी है, यह उद्योगों में इस्‍तेमाल होने वाली बहुत मूल्यवान, महंगा और दुर्लभ धातु है। इसके अतिरिक्त, सोना रासायनिक रूप से निष्क्रिय है, जिसका अर्थ है कि यह समय के साथ बदरंग नहीं होती और अपनी आभा और चमक बनाए रखती है। इस तरह, चूंकि सोना लगभग अक्षय है, इसलिए अभी तक जितना भी सोना खानों-खदानों से निकाला गया है, वह अभी भी एक या दूसरे रूप में मौजूद है। जबकि अन्य धातुएं पहले इस्‍तेमाल या तो खत्‍म हो जाती हैं या बहुत कम मात्रा में बचती हैं, वहीं सोना रिसाइकल होने पर भी अन्‍य धातुओं की तुलना में बहुत अधिक मात्रा में बचा रहता है।

नतीजतन, चांदी और प्लैटिनम जैसी अन्य बहुमूल्‍य धातुओं की तुलना में सोना ज्‍यादा प्रभावशाली पोर्टफोलियो बहुरूपी यानी डायवर्सिफायर है। जब बाजार अच्छा चल रहा होता है, तो सोना और ये अन्य धातुएं अच्छा प्रदर्शन करती हैं, और उनका संबंध सकारात्मक होता है। लेकिन जब बाजार में गिरावट आती है, तो चांदी और प्लैटिनम जैसी धातुओं का प्रदर्शन प्रभावित होता है, क्योंकि उनकी मांग काफी हद तक औद्योगिक मांग पर निर्भर होती है।

कुछ चुनिंदा औद्योगिक उपयोगों के कारण सोने के साथ ऐसी दिक्‍कतें नहीं आतीं, इसलिए बाजार में गिरावट आने पर भी इसका मूल्य-महत्‍ता बनी रहती है।

इन कारणों की वजह से, यह निष्‍कर्ष निकलता है कि सोने ने 1971 तक मुद्रा एंकर की भूमिका अदा की, जब अमरीका और दुनिया ने सोने के मानक को कागज के पैसे से आगे बढ़ाया। लेकिन आज भी, सोने के भंडार के रूप में देश की संपत्ति का निर्धारण करने में सोने की ही मुख्‍य भूमिका होती है, जो साल-दर-साल बढ़ ही रही है। सिर्फ 2018 में, केंद्रीय बैंकों ने सोने के मानक के अंत के बाद से किसी भी समय से ज्‍यादा सोना खरीदा — और यह प्रवृत्ति 2019 की पहली छमाही में भी जारी रही।

लंबे समय में, मुद्रा और अन्य परिसंपत्तियों ने अपने मूल्य में गिरावट का काल भी देखा जा सकता है। वहीं दूसरी ओर, सोने ने ताउम्र के लिए अपना मूल्य बरकरार रखा है। प्राचीन काल से, सोने का इस्‍तेमाल एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक धन-संपदा को सौंपने और सहेजने के तरीके के रूप में प्रयुक्‍त होता रहा है।

बहुरूपता मायने रखती है, क्योंकि अन्य परिसंपत्तियों में गिरावट आने पर भी सिर्फ सोना स्थिर रहता है

सोना और अन्य परिसंपत्तियों, जिनमें कि वस्तुएं भी शामिल हैं, का परस्‍पर संबंध गतिमय है, अर्थात अलग-अलग आर्थिक परिस्थितियों में अन्य संपत्तियों के साथ सोना अलग-अलग व्यवहार करता है। अन्य वस्तुओं की तरह, निवेश और अर्थव्यवस्था आर्थिक विकास की अवस्‍था में सोने का शेयरों के साथ परस्‍पर संबंध सकारात्मक होता है; और जब इक्विटी बाजार में वृद्धि होती है, तो सोने की कीमत भी बढ़ जाती है। लेकिन अन्‍य वस्तुओं के बिल्‍कुल उलट, अर्थव्यवस्था में मंदी की अवस्‍था, जिसमें अपस्फीति भी शामिल है, में भी सोना अच्छा प्रदर्शन करता है, जबकि अन्‍य कई चीजें धन या पूंजी पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। सोने को संकट-मोचन वस्तु के रूप में भी देखा जाता है, क्योंकि यह भू-राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान भी अपना मूल्य-मान्‍यता बनाए रखता है। उदाहरण के लिए, ब्रेक्सिट के दौरान भारी अनिश्चितता में भी सोने की कीमतों में इस साल काफी ज्‍यादा हलचल देखी गई।

हालांकि सोने और तेल की कीमतें परस्‍पर जुड़ी हुई नहीं हैं, आम धारणा के उलट — एक समय में अगर इन दोनों का प्रदर्शन एक ही दिशा में चलता है, तो किसी दूसरे समय में इन दोनों का निवेश और अर्थव्यवस्था प्रदर्शन बिल्‍कुल विपरीत दिशा में हो सकता है।

तेल तो बिल्‍कुल एक जोखिमपूर्ण संपत्ति के रूप में व्यवहार करता है, जबकि सोना जोखिम-मुक्‍त संपत्ति के रूप में व्यवहार करता है।

मुद्रास्फीति के जोखिम से बचाव के रूप में सोना

पोर्टफोलियो में निवेश करने के पीछे सबसे आम कारण है मुद्रास्फीति के जोखिम से बचाव। यह एक ऐसा समय होता है, जब वस्‍तुएं अन्य परिसंपत्तियों की तुलना में बहुत बेहतर प्रदर्शन करती हैं। लेकिन, ऐतिहासिक रूप से तो, विशेष रूप से लंबे समय में, सोना उन सभी में सबसे बेहतर प्रदर्शन करता है।

अर्थशास्त्री विवेक कौल कहते हैं कि हम जिस समय में रह रहे हैं, वह मुद्रास्फीति के लिए बहुत मौजू समय है। ‘’जब कोई सरकार बहुत सारा पैसा छापती है, तो आपके पास उन्‍हीं सामान और सेवाओं के लिए बड़ी मात्रा में पैसा होता है, जिससे कारण इतनी ज्‍यादा मुद्रास्फीति है। इसलिए, कागजी पैसा, जो आपके पास होता है, वह समय के साथ बेकार हो जाता है,” कौल जिम्बाब्वे के उदाहरण देते हुए आगे कहते हैं, ‘’जहां 2019 में मुद्रास्फीति 300% है, जोकि दुनिया में सबसे ज्‍यादा है।‘’ अस्थिरता की ऐसे माहौल में किसी के भी धन को संरक्षित करने के लिए, कौल किसी भी व्यक्ति के पोर्टफोलियो में 10-15% सोना शामिल करने का सुझाव देते हैं। इस वीडियो देखिए कि ‘’आज आप सोने में निवेश क्यों करें’’।

सोने की आपूर्ति तो सीमित है, और मांग बढ़ेगी ही

सोना दुर्लभ की श्रेणी में आता है, जोकि इसके प्रति आकर्षण को बनाए रखता है। लेकिन केंद्रीय बैंकों सहित अन्‍य विविध प्रकार के संस्थागत निवेशकों के लिए एक सुसंगत निवेश के रूप में सोने के बाजार का आकार बहुत ही बड़ा है। अन्य वस्तुओं का आम तौर पर उत्पादन की बदलती दरों के कारण अल्पावधि वाली दिक्‍कतों का सामना करना पड़ता है, लेकिन सोने का उत्पादन अलग-अलग महाद्वीपों में एक समान बांटा जाता है, जिससे उतार-चढ़ाव के झटकों से बचाव होता है।

इससे यह तय करने में मदद मिलती है कि सोना अन्य वस्तुओं की तुलना में बहुत कम परिवर्तनशील है।

अलग-अलग आर्थिक परिस्थितियों में सोने की माँग अपरिवर्तित है। जब अर्थव्यवस्था अच्छी चल रही होती है, तो लोग आभूषण और तकनीकी उपकरणों जैसी विवेकाधीन खरीदारी ज्‍यादा करते हैं, जिससे कि सोने की मांग बढ़ जाती है। लेकिन जब अर्थव्यवस्था में मंदी छाई होती है, जब निवेशक बाजार के घाटे की भरपाई के लिए कोई भरोसेमंद, तरल संपत्ति चाहते हैं, तो सोने की मांग (और फलस्‍वरूप इसकी कीमत भी) बढ़ जाती है।

सोने के प्रमुख अवसरों में से एक भारत के मध्यम वर्ग का तेजी से उभार है। पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकोनॉमी (प्राइस) का अनुमान है कि 2018 में मध्यम वर्ग भारत की कुल आबादी का 19% से बढ़कर 2048 तक 73% हो जाएगा। चूंकि आय में प्रत्‍येक 1% की वृद्धि के साथ सोने की मांग भी 1% बढ़ जाती है, इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि सोने की मांग का बढ़ना तो तय ही है।

जहां, निस्संदेह सोने के अलावा अन्य वस्तुओं में बहुत उपयोगी विशेषताएं हैं, जो उन्हें व्यक्तिगत और संस्थागत, दोनों तरह के निवेशकों के पोर्टफोलियो बहुरूपता के लिए महत्वपूर्ण बना देती हैं, वहीं सोने ने अन्य वस्तुओं और परिसंपत्तियों की तुलना में अपने गतिशील परस्‍पर संबंधों के कारण इन वस्तुओं से बेहतर प्रदर्शन किया है, क्‍योंकि यह जोखिम-भरे समय में निवेशकों के लिए एक बहुत ही सुरक्षित निवेश है।

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