जोखिम के घटक

जैसाकि रिपोर्ट दर्शाती है, जलवायु परिवर्तन के जोखिम के प्रति अनुकूलित होना और उसका समाधान करना सरकारों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। जलवायु परिवर्तन नीति के सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक यह होना चाहिए कि बेहद खराब नतीजों की संभावना को पहचाना जाए और सभी संभावनाओं के लिए एक पूर्ण जोखिम आकलन इसे प्राप्त करने का बेहतरीन तरीका है। एक्चुएरीज (लेखन कर्ताओं) के तौर पर, अच्छे फैसलों को मुश्किल परिदृश्यों के अन्वेषण पर आधारित पाते हैं और इस जानकारी का इस्तेमाल जोखिम के समाधान में करते हैं। यह रिपोर्ट महत्वपूर्ण जोखिम घटकों के आकलन में एक बेहद उपयोगी औजार सिद्ध होगी, जिस पर आनेवाले वर्षों में, वैश्विक तापक्रम की वृद्धि के संदर्भ में विचार करने तथा यथार्थतः लागू करने की आवश्यकता है।
जलवायु परिवर्तन विपत्ति मूल्यांकन रिपोर्ट जारी
वैज्ञानिकों, ऊर्जा नीति समीक्षक और विशेषज्ञों के अंतराष्ट्रीय समूह ने १३ जुलाई को एक स्वतंत्र विपत्ति मूल्याङ्कन रिपोर्ट जारी की, जोकि राजनीतिज्ञों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उनका नजरिया तय करने में सहायक होगी।
रिपोर्ट का तर्क है कि जलवायु परिवर्तन के खतरे का आकलन राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे खतरों के अनुसार ही किया जाना चाहिए। यह उस बिन्दु की पहचान करता है जिसके बाद ‘असुविधाजनक असहनीय हो सकता है’।
इनमें ताप-जनित तनाव सहने की मानवीय सीमा, फसलों द्वारा उच्च तापमान को सहने की सीमाएं, और इससे भी अधिक तापमान व्यापक पैमाने पर आपदाओं और फसलों के नाश का कारण बनेगा; और बढ़ते समुद्री तल की तटीय शहरों के लिए संभावित सीमाएं भी शामिल हैं। सलाह दी गई है कि इन सीमाओं के जोखिम को पार किए जाने में और तेजी आ सकती है, खासतौर जोखिम के घटक पर वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में लगातार वृद्धि हो रही है, जैसा कि रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि ऐसा मजबूत राजनैतिक प्रतिबद्धता के अभाव और तीव्र प्रौद्योगिकी विकास की अवस्था में होगा।
आगे की जानकारी:
चार बैठकों की एक श्रृंखला द्वारा जलवायु परिवर्तन जोखिम के आकलन को इस रिपोर्ट के रूप में लाने की जानकारी दी गई थी, जिनमें से प्रत्येक बैठक इस रिपोर्ट के एक प्रमुख लेखक के देश में हुई। नवंबर 2014 में, ऊर्जा प्रौद्योगिकी तथा नीति के विशेषज्ञों ने वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की भावी कार्ययोजना पर विचार-विमर्श के लिए हार्वर्ड विश्वविद्यालय में बैठक की। जनवरी 2015 में, जलवायु विज्ञान तथा जोखिम पर विमर्श के लिए एक बैठक का आयोजन बीजिंग के सिंगहुआ विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन पर चीन की राष्ट्रीय विशेषज्ञ समिति की मेजबानी में किया गया। मार्च 2015 में, जलवायु परिवर्तन के व्यवस्थित जोखिम पर विमर्श के लिए वरिष्ठ सेवानिवृत्त सैनिक तथा कूटनैतिक पदाधिकारियों, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा विश्लेषकों तथा वैज्ञानिकों के एक समूह की बैठक दिल्ली में ऊर्जा, पर्यावरण तथा जल परिषद द्वारा आयोजित की गई, जिसमें सीएनए कॉरपोरेशन ने सहायता प्रदान की।
विश्व जोखिम सूचकांक (2020) - एक अवलोकन
विश्व जोखिम सूचकांक 2020 रैंकिंग महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों से निपटने के लिए दुनिया भर के 181 देशों की तैयारियों पर एक विचार देती है। यह लेख 2019 और 2020 में भारत की रैंकिंग पर प्रकाश डालता है। यह सबसे सुरक्षित देशों और सबसे अधिक जोखिम वाले देशों का विवरण भी साझा करता है।
इच्छुक सिविल सेवकों को पर्यावरण और पारिस्थितिकी के क्षेत्र में नवीनतम विकास के साथ अद्यतन रहने की जरूरत है, जो आईएएस परीक्षा के पाठ्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
विश्व जोखिम सूचकांक 2020 – परिचय
- विश्व जोखिम सूचकांक संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय पर्यावरण और मानव सुरक्षा संस्थान (यूएनयू-ईएचएस), बुंडनिस एंटविकलुंग हिल्फ़्ट और जर्मनी में स्टटगार्ट विश्वविद्यालय द्वारा जारी किया गया है।
- विश्व जोखिम सूचकांक विश्व जोखिम रिपोर्ट का हिस्सा है।
- यह सूचकांक हर साल जारी किया जाता है।
- यह पहली बार 2011 में जारी किया गया था।
- इसकी गणना देश-दर-देश के आधार पर, जोखिम और भेद्यता के गुणा के माध्यम से की जाती है और विभिन्न देशों और क्षेत्रों के लिए आपदा जोखिम का वर्णन करती है।
- विश्व-किंडेक्स के ढांचे में, आपदा जोखिम का विश्लेषण पर्यावरण कारकों, प्राकृतिक खतरों, राजनीतिक और सामाजिक कारकों के एक जटिल अंतर के रूप में किया जाता है।
- एक्सपोजर विश्लेषण के अलावा, वर्ल्डिसकिंडेक्स जनसंख्या की भेद्यता पर केंद्रित है
अर्थव्यवस्था को सहारा
उप विशेष प्रतिनिधि का कहना है कि देश में प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2007 के स्तर तक पहुँच गई है, और 15 वर्षों की आर्थिक प्रगति पर इसने पानी फेर दिया है, जिसकी एक वजह, जोखिम के घटक अन्तरराष्ट्रीय बैंकिंग व्यवस्था से अफ़ग़ानिस्तान का अलग होना है.
उन्होंने बताया कि देश में नक़दी की उपलब्धता (liquidity), बहुत हद तक संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानवीय राहत अभियानों के लिये लाये जाने वाली वित्तीय सहायता पर निर्भर है.
यूएन के वरिष्ठ अधिकारी ने ज़ोर देकर कहा कि यह जोखिम के घटक नक़दी अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की ज़रूरतों को पूरा करती है और तालेबान प्रशासन तक नहीं पहुँचती है.
मगर, सहायता धनराशि का प्रबन्ध हो पाना भी अभी अनिश्चित है, चूँकि 2022 मानवीय राहत योजना में 4.4 अरब डॉलर की अपील की गई थी, जिसमें से केवल 1.9 अरब डॉलर का ही इन्तेज़ाम हो पाया है.
दीर्घकालीन आवश्यकताएँ
उप विशेष प्रतिनिधि ने कहा कि अफ़ग़ान जनता की दीर्घकालीन आवश्यकताओं को, मानवीय सहायता और आर्थिक उपायों के ज़रिये पूरा कर पाना सम्भव नहीं है.
मसलन, आपात राहत, अति-आवश्यक सेवाओं की वितरण प्रणाली, स्वास्थ्य व जल का स्थान नहीं ले सकती है और ना ही आर्थिक बदहाली को टाला जा सकता है.
उन्होंने कहा कि निर्णय-निर्धारण में राजनैतिक समावेशिता व पारदर्शिता के अभाव में, अधिकांश अफ़ग़ान नागरिकों को सरकार में प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है.
सम्पर्क व बातचीत ज़रूरी
मार्कस पॉटज़ेल ने कहा कि तालेबान के स्वयंभू अमीरात को अभी किसी अन्य देश ने मान्यता नहीं दी है, मगर अन्तरराष्ट्रीय समुदाय देश को ध्वस्त होते भी नहीं देखना चाहेगा.
“अगर, तालेबान अफ़ग़ान समाज के सभी घटकों की आवश्यकताओं का ख़याल नहीं रखता और सम्भावित अवसर की इस संक्षिप्त घड़ी में सृजनात्मक ढंग से सम्पर्क व बातचीत नहीं करता है, तो यह स्पष्ट नहीं है कि फिर क्या होगा.”
यूएन दूत ने दरारें चौड़ी होने, देश के अलग-थलग पड़ने, निर्धनता गहराने और अन्दरूनी टकराव के और अधिक गम्भीर होने की आशंका जताई है.
इससे विशाल स्तर पर लोगों के विस्थापित होने और देश में आतंकवादी संगठनों के लिये एक अनुकूल माहौल तैयार होने का जोखिम पैदा होगा व अफ़ग़ान समुदायों की पीड़ा बढ़ेगी.
इसलिये ये ज़रूरी है कि अफ़ग़ानिस्तान के साथ सम्पर्क व बातचीत के रास्ते स्थापित किये जाएँ.
भाकृअनुप-अटारी, लुधियाना ने निक्रा के प्रौद्योगिकी प्रदर्शन घटक की वार्षिक समीक्षा और समापन कार्यशाला का किया आयोजन
मुख्य अतिथि, डॉ. सुरेश कुमार चौधरी, उप महानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन), भाकृअनुप ने अगले चरण के लिए जोखिम और भेद्यता के आधार पर जिलों के चयन की रूपरेखा तैयार की। उन्होंने राष्ट्रीय मंचों पर प्रदर्शन के लिए सफल प्रौद्योगिकियों के दस्तावेजीकरण पर जोर दिया।
8 घंटे से ज्यादा की नींद स्वास्थ्य के लिए नुकसान कर सकती है
नींद, मानव निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है. यह वह समय है जब शरीर खुद को बहाल करता है. जबकि कम नींद शरीर के लिए खतरनाक हो सकती है. नए शोध से पता चला है कि ज्यादा नींद लेने से भी नुकसानदायक है. ओवरस्लीपिंग कुछ स्वास्थ्य जोखिम का संकेत है. यह कुछ चिकित्सीय स्थितियों को भी संकेत करता है, जो एक व्यक्ति को हो सकता है. ओवरस्लीपिंग के जोखिम और अधिक है: