ये वे स्तर हैं जिन्हें निवेशकों को देखना चाहिए

मज़बूत एनजीओ बनाने के लिए पे व्हाट इट टेक्स
एनजीओ की प्रशासनिक और प्रबंधन से जुड़ी फंडिंग में लगातार आ रही कमी, उनके विकास और अधिक से अधिक समुदायों की सेवा करने की क्षमता पर एक रुकावट की तरह है। जैसा कि दसरा में साधन निर्माण के भूतपूर्व निदेशक अनंत भगवती ने कहा, ‘प्रबंधन लागत के क्षेत्र में एनजीओ के लिए फंडिंग का अभाव है।’
एनजीओ क्षेत्र से जुड़े अनेक प्रमुख लोगों से विचार-विमर्श करने के बाद हमने जाना कि अनेक निवेशक इस बात से डरते हैं कि उनके द्वारा किए गए निवेश ये वे स्तर हैं जिन्हें निवेशकों को देखना चाहिए को अगर उसी कार्यक्रम तक सीमित नहीं रखा गया जिसके लिए उन्होंने निवेश किया है तो उसका परिणाम अच्छा नहीं आ पाएगा। लेकिन अनेक एनजीओ के उदाहरणों से यह बात ग़लत साबित हो जाती है। उनके अनुभवों से यह पता चला है कि कुछ ऐसे ज़रूरी खर्चे जो कार्यक्रम की लागत का हिस्सा नहीं होते, जैसे कि रणनीति, नेतृत्व विकास और वित्तीय प्रबंधन, इनके लिए पर्याप्त धनराशि वास्तव में समाज में उनके योगदान में अत्यधिक लाभकारी हैं, और इससे ऐसी संस्थाओं का निर्माण होता है जो विपरीत परिस्थितियों में भी समुदाय और समाज की सेवा करने में सक्षम होते हैं।
क्वालिटी एजुकेशन सपोर्ट ट्रस्ट (क्वेस्ट)—बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा पर केंद्रित एनजीओ ऐसा ही एक उदाहरण है। यह संस्था 13 वर्षों में, एक छोटी ग्रासरूट संस्था से महाराष्ट्र के 24 जिलों में 2,60,000 से अधिक सुविधाहीन बच्चों को शिक्षा संपन्न बनाने वाले सफल स्टार्ट-अप के रूप में विकसित हुई है। क्वेस्ट के संस्थागत साधन निर्माण में अगर निवेशकों ने निवेश नहीं किया होता तो क्वेस्ट के लिए इस स्तर पर सफलता प्राप्त करना संभव नहीं हो पाता।
एक एनजीओ के लीडर के अनुसार कार्यक्रम के अलावा निवेश नहीं मिल पाने के कारण, यह कोई आश्चर्य नहीं है कि स्वयंसेवी संस्थाएँ वांछित से कम स्तर (‘सब-स्केल’) पर काम करने के लिए मजबूर हैं। धन की कमी तीन गैर-कार्यक्रम श्रेणियों पर प्रभाव डालती हैं:
- सामान्य प्रशासनिक या उससे जुड़े कार्यों के साथ जुड़ी अप्रत्यक्ष लागतें
- संस्थागत विकास (ऑर्गनाइज़ेशन डेवलेपमेंट) के साथ जुड़े साधन निर्माण निवेश
- धन की कमी को पूरा करने और नवाचार में निवेश के लिए रखी गयी आरक्षित निधि
कई भारतीय निवेशक जिसे ‘साक्ष्य की गंभीर कमी’ कहते हैं, वह फंडिंग प्रथाओं में बदलाव के पैरोकारों के लिए ये वे स्तर हैं जिन्हें निवेशकों को देखना चाहिए भी बड़ी बाधा रही है। इस कमी को दूर करने के लिए, द ब्रिजस्पैन ग्रुप ने इस सेक्टर का प्रतिनिधित्व करती 388 स्वयंसेवी संस्थाओं का सर्वेक्षण किया और 40 अग्रणी और अपेक्षाकृत अच्छी तरह से वित्त पोषित स्वयंसेवी संस्थाओं का वित्तीय विश्लेषण किया। हमारा सर्वेक्षण और वित्तीय विश्लेषण एक नए पे व्हाट इट टेक्स (पीडबल्यूआईटी ) इंडिया इनिशिएटिव का हिस्सा है, जिसकी पहल ब्रिजस्पैन और पाँच मुख्य सहभागी: ए.टी.ई. चंद्रा फाउंडेशन, चिल्ड्रेन्स इनवेस्टमेंट फंड फाउंडेशन, एडेलगिव फाउंडेशन, फोर्ड फाउंडेशन और ओमिडयार नेटवर्क इंडिया द्वारा की गई है। सभी सहभागी भारत में ये वे स्तर हैं जिन्हें निवेशकों को देखना चाहिए और अधिक मज़बूत, और विपरीत परिस्थितियों से उभरने में समर्थ एनजीओ के निर्माण के लिए प्रथाओं और अन्य हितधारकों की मानसिकता को बदलने के लिए साथ कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारे शोध से भगवती द्वारा बताए गए व्यवस्थित तरीके के अभाव का एक स्पष्ट स्वरूप उभरकर आया।
- कोई भी एक अप्रत्यक्ष-लागत दर सभी स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए उपयुक्त नहीं है। वित्तीय विश्लेषण में पाया गया कि अप्रत्यक्ष लागत जैसे कार्यालय का किराया, प्रबंधन स्टाफ का वेतन, और धन जुटाने (फ़ंड रेज़िंग) वाले खर्च स्वयंसेवी संस्थाओं की कुल लागत का पाँच प्रतिशत से लेकर 51 प्रतिशत तक है। यह स्वयंसेवी संस्था के मिशन, संचालन मॉडल और अन्य विशेषताओं के आधार पर भिन्न होता है, और इन 40 संस्थाओं में यह औसतन 19 प्रतिशत पाया गया। फिर भी स्वयंसेवी संस्थाओं को तीन साल की अवधि में प्राप्त हुए अनुदानों में से 68 प्रतिशत बार अप्रत्यक्ष लागत के लिए 10 प्रतिशत से कम राशि दी गयी।
- सर्वेक्षण के उत्तरदाताओं में से केवल 18 प्रतिशत ने कहा कि वे संस्थागत विकास (ऑर्गनाइज़ेशन डेवलेपमेंट) में पर्याप्त निवेश करते हैं, जो सामाजिक कल्याण की नींव है।
- कोविड-19 महामारी ने स्वयंसेवी संस्थाओं को आरक्षित निधि में से खर्च करने के लिए मजबूर कर दिया, जिससे सर्वेक्षण की गयी 54 प्रतिशत संस्थाओं के पास सितंबर 2020 तक तीन महीने से कम की निधि शेष रह गयी थी।
- कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं को दूसरों की तुलना में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, 45 प्रतिशत गैर-दलित, बहुजन या आदिवासी नेतृत्व वाली स्वयंसेवी संस्थाओं की तुलना में दलित, बहुजन या आदिवासी समुदायों के सदस्यों के नेतृत्व वाली 70 प्रतिशत स्वयंसेवी संस्थाओं ने पिछले तीन वर्षों में ऑपरेटिंग सरप्लस के बारे में नहीं बताया। इसी प्रकार, भारत के आठ प्रमुख शहरों में स्थित 51 प्रतिशत संस्थाओं की तुलना में गैर-मेट्रो और ग्रामीण स्वयंसेवी संस्थाओं में स्थित 61 प्रतिशत ने तीन महीने से कम के खर्चे के लिए धनराशि होने की जानकारी दी।
जहाँ सामाजिक क्षेत्र प्रतिबंधात्मक सरकारी नियमों के तहत काम करना जारी रखे हुए है, फंडरों के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा अच्छी प्रथाओं को अपनाने से अधिक सामाजिक कल्याण करने के लिए आवश्यक विश्वास और पारदर्शिता को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। सैक्टर के लीडरों के साथ हमारे शोध और साक्षात्कार ने हमें चार ऐसी बेहतर प्रथाओं को पहचानने में मदद की जो फंडर और स्वयंसेवी संस्थाओं को नए मार्ग बनाने की संभावना दिखाती हैं।
1. फंडर–स्वयंसेवी संस्था के बीच अनेक वर्षों के लिए सहभागिता (पार्टनरशिप) विकसित करना
साझा उद्देश्यों के आधार पर दीर्घकालिक साझेदारी का भरोसा, अनुदान लेने वाले और फंडर के बीच बेहतर और पारस्परिक विश्वास का निर्माण करती है। परिणामस्वरूप, दोनों ही अनुदानों को लेन-देन की नज़र से देखना बंद कर देते हैं और बेहतर सामाजिक कल्याण प्रदान करने के लिए सभी ज़रूरी बातों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
2. अप्रत्यक्ष–लागत क्षेत्र में फंडिंग की कमी को ख़त्म करना
अप्रत्यक्ष-लागत के क्षेत्र में फंडिंग की कमी को ख़त्म करने के लिए फंडरों को अनुदान देने के बारे में सोचने के तरीके को बदलने की आवश्यकता होगी – जिसे स्वयंसेवी क्षेत्र अपनी आवश्यकताओं को स्पष्ट रूप से बताकर सरल बना सकता हैं। फंडरों के लिए, इसका मतलब – अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना और वास्तविक लागतों के विकल्प के रूप में कम, निश्चित अप्रत्यक्ष-लागत दरों पर निर्भर रहने के बजाय स्वयंसेवी लीडरों से उनके विशिष्ट मिशन, ऑपरेटिंग मॉडल और आवश्यकताओं के बारे में बातचीत में शामिल करना है।
3. संस्थागत विकास (ऑर्गनाइज़ेशन डेवलेपमेंट) में निवेश करना
स्वयंसेवी संस्थाएँ, संस्थागत विकास के लिए ऐसी अनुदान राशि का इस्तेमाल करती हैं जिनके ऊपर किसी तरह की सीमा नहीं लगाई गई होती है। लेकिन इस तरह की धनराशि कम ही रहती है। फंडर अनुदान लेने वाली संस्थाओं को बता सकते हैं कि वे इस बात को समझते हैं कि संस्थाओं को मजबूत बनाना कितना ज़रूरी होता है और वे इसके लिए आवश्यक वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए तैयार हैं। एनजीओ को अपनी संस्थागत विकास की छोटी और दीर्घकालिक ज़रूरतों और उन पर होने ये वे स्तर हैं जिन्हें निवेशकों को देखना चाहिए वाले खर्च का आकलन साझा करने से फायदा होगा।
4. संचित कोष बनाएँ
जब संभव हो, तब निवेशकों को सीधे अनुदान लेने वाले की संचित कोष को मज़बूत करने में निवेश करना चाहिए। उन्हें स्वयंसेवी संस्थाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे कामकाज के लिए मिले धन से कुछ धन बचाएँ जिन्हें आरक्षित निधि में परिवर्तित किया जा सकता है। स्वयंसेवी संस्थाओं को अपने निवेशकों और उनके बोर्डों को प्रमुख बातों, जैसे ऑपरेटिंग सरप्लस तथा आरक्षित निधि कितने महीनों की है जैसी बातों के बारे में सूचित करना चाहिए, ताकि वित्तीय लचीलापन बनाने के महत्व ये वे स्तर हैं जिन्हें निवेशकों को देखना चाहिए पर ज़ोर दिया जा सके।
फंडिंग में लगातार कमी उन सामाजिक उद्देश्यों को हानि पहुंचाती है जिसके लिए फ़ंडर और स्वयंसेवी संस्थाएँ प्रयास करती हैं। सच्ची लागत फंडिंग (ट्रू कॉस्ट फ़ंडिंग) की दिशा में बढ़ने के लिए गहरे पैठ चुके दृष्टिकोण और प्रथाओं को दूर करना होगा। और इसके लिए सब्र और मजबूत इरादे की ज़रूरत होगी। यह एक जटिल और व्यवस्था से जुड़ा मुद्दा है, और सभी हितधारकों को इसे हल करने के लिए एक साथ काम करने की आवश्यकता है। लेकिन इस बदलाव की पहल फंडरों को ही करनी होगी।
जिन लोगों ने पहले से ही बेहतर अनुदान प्रथाओं को अपनाया है, उन्होंने देखा है कि कैसे क्वेस्ट जैसी संस्थाएं अपने सामाजिक मिशन की दिशा में बेहतर नतीजे दे सकती हैं। इसके अलावा, हमारे शोध से यह समझ में आता है कि अब समय आ गया है कि फंडर सुनिश्चित करें कि समाज की जटिल समस्याओं से जूझती स्वयंसेवी संस्थाओं के पास मजबूत संस्थागत आधार और विपरीत परिस्थितियों से उबरने के लिए आवश्यक संसाधन हों। जस का तस जैसी स्थिति से किसी का भला नहीं होने वाला है।
प्रिथा वेंकटचलम और डोनाल्ड येह मुंबई में स्थित ब्रिजस्पैन के पार्टनर हैं, और शशांक रस्तोगी ब्रिजस्पैन के प्रिन्सिपल हैं।
दिल्ली की झुग्गियों में काम करने वाले एनजीओ से ऑस्ट्रेलियाई सरकार प्रेरित
ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने सुदूरवर्ती इलाकों में रह रहे मूलनिवासियों के जीवन स्तर में सुधार के लिए नई दिल्ली की झुग्गियों में कार्यरत एक भारतीय गैर सरकारी संगठन के कामकाज के मॉडल में दिलचस्पी जाहिर की है.
aajtak.in
- नई दिल्ली,
- 20 अप्रैल 2015,
- (अपडेटेड 20 अप्रैल 2015, 2:25 PM IST)
ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने सुदूरवर्ती इलाकों में रह रहे मूलनिवासी लोगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए नई दिल्ली की झुग्गियों में कार्यरत एक भारतीय गैर सरकारी संगठन के कामकाज के मॉडल में दिलचस्पी जाहिर की है.
नई दिल्ली स्थित गैर सरकारी संगठन ‘आशा फाउंडेशन’ की संस्थापक किरण मार्टिन पिछले सप्ताह अपने संगठन के कामकाज के सिलसिले में यहां आई थीं. मेलबर्न में उन्होंने गवर्नर जनरल पीटर कॉस्ग्रोव, प्रधानमंत्री के संसदीय सचिव और मूलनिवासी मामलों के मंत्री एलेन तुगे, सांसदों, वरिष्ठ अधिकारियों और कारपोरेट प्रायोजकों से मुलाकात की.
मार्टिन ने कहा कि उन्होंने भारत की राजधानी में वर्ष 1988 से झुग्गियों में शिक्षा, अवसरंचना, वित्तीय सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी देखरेख में सुधार के लिए काम कर रहे अपने गैर सरकारी संगठन के बारे में चर्चा की.
उन्होंने कहा, ‘कुछ महत्वपूर्ण सबक तो हैं जिन्हें साझा किया जा सकता है. वे यह देखना चाहते हैं कि आशा फाउंडेशन झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए कैसे काम करता है.’ मार्टिन ने बताया कि ऑस्ट्रेलिया सरकार को संवेदनशील समुदाय के उत्थान के लिए उनमें ही संगठित स्वयंसेवा का सृजन कर कोशिश करनी चाहिए. ‘वे आधिकारिता की पहल पर आधारित कामकाज के हमारे तरीके को देखना चाहते हैं.’
मार्टिन ने बताया, ‘अगली पीढ़ी के लिए क्या बदलाव किए जा सकते हैं, इस बारे में जागरूकता पैदा करने की जरूरत है. इसके फॉलो अप के तौर पर मूलनिवासी मामलों के मंत्री एलेन तुगे इस साल अक्टूबर में नई दिल्ली आएंगे और कुछ नेताओं के साथ हमारे फाउंडेशन का दौरा करेंगे.’ उन्होंने कहा कि मंत्री और उनका दल आशा का कामकाज देखेंगे और शायद वे कुछ सीख भी लें.
मार्टिन ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया सरकार मूलनिवासी समुदाय कल्याण को लेकर चिंतित है. उन्होंने कहा, ‘मूलनिवासी समुदाय पर विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के संदर्भ में ऑस्ट्रेलिया सरकार बड़ी रकम खर्च कर रही है लेकिन मुझे बताया गया कि फिर भी मानव विकास सूचकांक नीचे जा रहा है जो चिंता का विषय है.’ उन्होंने कहा कि हर देश और समुदाय अलग है लेकिन समुदायों के साथ काम करना सफलता की मुख्य कुंजी है.
20 साल से कम उम्र के लोगों के लिए इन्वेस्टमेंट के ये पांच टिप्स जीवनभर आएंगे काम
Investment: नए निवेशक को छोटी शुरुआत करनी चाहिए ताकि ट्रेडिंग ऑर्डर, सेटलमेंट, DP अकाउंट जैसी बारीकियों को समझ सके.
- Money9 Hindi
- Publish Date - July 21, 2021 / 06:17 PM IST
Investment: 20 वर्ष से कम उम्र के इन्वेस्टर्स के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे इन्वेस्टमेंट (Investment) के लिए एक निश्चित समय नहीं दे पाते और रोज के डेवलपमेंट को फॉलो नहीं कर सकते हैं. BSE के पूर्व चेयरमैन एस रवि के मुताबिक, यह सच है कि अगर आप जल्दी इन्वेस्टमेंट (investment) करना शुरू करते हैं, तो ये आपके रिस्क उठाने की कैपेसिटी को बढ़ाता है. हालांकि, 20 साल से कम उम्र में इन्वेस्टमेंट के लिए कोई स्टेंडर्ड प्रिस्क्रिप्शन नहीं हैं. इन्वेस्टमेंट इंडीविजुअल इन्वेस्टर की स्थिति पर निर्भर करता है. लेकिन, ऐसे फंडामेंटल प्रिंसिपल हैं जिन्हें याद रखना चाहिए जैसे उधार लिए गए पैसों से निवेश नहीं करना, पेनी स्टॉक में ट्रेड नहीं करना, डायवर्सीफाइड इन्वेस्टमेंट और अच्छी तरह से रिसर्च किए गए इन्वेस्टमेंट तलाशना. यंग इन्वेस्टर्स को प्रॉमिस किए गए हाई रिटर्न के आकर्षण से दूर रहना चाहिए.
माता-पिता को इन्फॉर्म करना चाहिए
20 वर्ष और उससे कम की उम्र एक ऐसी उम्र है जहां कुछ स्टूडेंट अपने पेरेंट्स पर डिपेंड होते हैं. ऐसे में वो बड़े पैमाने पर निवेश नहीं कर सकते हैं, उनके रिस्क उठाने की क्षमता कम होती है.
माइनर इन्वेस्टर्स पर बैंक अकाउंट खोलने, पेमेंट करने आदि जैसे प्रतिबंध हैं. इसके अलावा, उनके द्वारा कमाए पैसे को माता-पिता की इनकम में भी जोड़ा जाता है.
ट्रेडिंग एग्रीमेंट की वैलिडिटी भी माइनर इन्वेस्टर्स के लिए चिंता का विषय है. युवा निवेशकों को इस तरह की एक्टिविटी के बारे में अपने माता-पिता को इन्फॉर्म करना चाहिए.
ये हैं पांच टिप्स
1) 20 साल से कम उम्र के निवेशकों को एक्टिव ट्रेड के पहले डमी ट्रेडिंग के जरिए अपनी स्किल्स को जांचना चाहिए. ऐसे निवेशक जिनका इंटरेस्ट लंबा है, उन्हें इक्विटी रिसर्च में खुद को एजुकेट करना चाहिए और प्रैक्टिकल ट्रेडिंग करके भी देखना चाहिए.
2) किसी भी नए निवेशक को छोटी शुरुआत करनी चाहिए ताकि ट्रेडिंग ऑर्डर, सेटलमेंट, DP अकाउंट जैसी बारीकियों को समझ सके और शेयर मार्केट के उतार-चढ़ाव को भी करीब से देख सके.
3) 20 से कम उम्र के इन्वेस्टर्स के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वो इन्वेस्टमेंट के लिए एक निश्चित समय नहीं दे पाते और रोज के डेवलपमेंट को फॉलो नहीं नहीं कर सकते हैं. जो लोग दूसरी एक्टिविटीज में बिजी हैं उन्हें मीडियम से लॉन्ग टर्म के लिए निवेश करना चाहिए.
4) युवा निवेशकों को इकोनॉमी, सेक्टर, कंपनियों और मार्केट को समझने का मौका मिलेगा. एक युवा निवेशक ट्रेड की ट्रिक्स और निवेश की कला सीख सकता है. वास्तव में, वो फंड मैनेजमेंट को अपने करियर के रूप में भी देख सकते हैं. युवा निवेशक अपने पर्सनल फाइनेंस को बेहतर ढंग से मैनेज करना सीखेंगे और पैसा खर्च करने के तरीके के प्रति जागरूक होंगे.
5) 20 साल से कम उम्र के निवेशकों को अपने निवेश का चुनाव करने में बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है क्योंकि वो अभी सीखने के फेज में हैं. कम उम्र में निवेश से सीखे गए सबक उन्हें फाइनेंस मैनेजमेंट के प्रति अधिक जिम्मेदार बनने में मदद करेंगे.
(डिस्क्लेमर: लेखक BSE के पूर्व चेयरमैन हैं. उनके व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)
एक व्यापार योजना के पागल और बोल्ट
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सभी व्यावसायिक योजनाओं में कमोबेश समान खंड हैं और कुछ में समान सामग्री भी है।
हालांकि, जब वे निवेशक या ऋणदाता की मेज पर पहुंचते हैं तो कुछ वहीं रहते हैं, जहां वे होते हैं और अन्य लोग “मैं उन्हें बाद में पढ़ूंगा” पास कर देता हूं या इससे भी बुरा हाल हो सकता है! तो आप सभी बेहतरीन कारणों से अपनी व्यावसायिक योजना को किस तरह पठनीय और यादगार बना सकते हैं।
आइए देखें कि वास्तव में व्यवसाय योजना के दिल में क्या है। एक व्यवसाय योजना एक पद्धति है जो एक व्यवसायिक विचार के लिए एक कंपनी बनने के लिए आवश्यक गतिविधियों को परिभाषित और एकीकृत करती है और उम्मीदें प्रदान करती है कि यह लाभदायक साबित होगा। दूसरे शब्दों में, यह एक निवेशक प्राप्त करने और उन्हें बताने के लिए हुक है कि आपका विचार अभिनव है और बहुत लाभदायक होगा। उन दो महत्वपूर्ण शब्दों पर ध्यान दें: अभिनव और लाभदायक। कोई भी निवेशक ऐसी कंपनी में दिलचस्पी नहीं लेगा जो उसके मुनाफे को वापस करने के लिए पर्याप्त लाभदायक नहीं होगी। अब एक दिलचस्प शब्द क्या हो सकता है – अभिनव। किसी कंपनी के सफल होने के लिए उसके पास कुछ ऐसा होना चाहिए जो एक ही बाजार में काम करने वाली अन्य सभी कंपनियों से अलग हो। आखिरकार अगर आपकी कंपनी अन्य सभी के समान होने जा रही है, तो वे शायद ही आगे बढ़ेंगे और आपको अपने ग्राहकों को लेने देंगे। नहीं, आपकी कंपनी को कुछ अलग करने की आवश्यकता है जो इन ग्राहकों को हर समय खरीदने के लिए दूर से आकर्षित करे। तो किसी भी तरह से अभिनव, यह उत्पादों, व्यापार मॉडल या सेवा हो।
एक और शब्द जोड़ते हैं जो आपकी व्यावसायिक योजना के भीतर साबित करने की आवश्यकता है – व्यवहार्य। आपका निवेशक या ऋणदाता यह देखना चाहता है कि आप कंपनी व्यवहार्य होने जा रहे हैं। यदि आप लगभग 1995 के “इंटरनेट बबल” के बारे में एक Google खोज करते हैं, तो आप देखेंगे कि हजारों निवेशकों ने निवेश किया और नई फंसी हुई इंटरनेट कंपनियों को उधार दिया जिन्होंने उन्हें आसान मुनाफे में लाखों डॉलर बनाने का वादा किया। यादें लंबी हैं और अब निवेशक यह देखते हैं कि नई कंपनियां आने वाले भविष्य के लिए व्यवहार्य होने जा रही हैं ताकि उन्हें एक आय स्ट्रीम प्राप्त होती रहे और उन्हें अपना ऋण या निवेश वापस पाने का अच्छा मौका मिले।
आपकी व्यवसाय योजना एक मूल विचार को बेचने वाला संचार उपकरण होना चाहिए जो लोगों को आकर्षित करने और समझाने का काम करता है कि आपके पास कंपनी की स्थापना और प्रबंधन करके योजना को लागू करने की क्षमता है।
शुरुआत में हमने बिजनेस ये वे स्तर हैं जिन्हें निवेशकों को देखना चाहिए प्लानिंग के अन्य कारणों पर प्रकाश डाला। धन जुटाने के अलावा, आपकी व्यवसाय योजना भी आपके व्यवसाय की व्यवहार्यता का आकलन करने का सबसे अच्छा साधन है।
तो यह एक व्यवसाय योजना का NUTS है, जो इसे एक साथ रखने वाले BOLTS को देखता है:
पेशेवर: आंतरिक रूप से इसे एक सूचकांक, पृष्ठ संख्या, शीर्षक और बुलेटेड पैराग्राफ के साथ अच्छी तरह से संरचित किया जाना चाहिए जो जटिल बात समझाते हैं। बहुत सारे ग्राफिक्स बहुत सारे शब्दों की ऊब को तोड़ते हैं। बाहरी रूप से यह विशेषज्ञ रूप से बाध्य होना चाहिए और एक रंगीन और आकर्षक कवर पेज होना चाहिए। यह इस कारण से है कि पूर्ण कंपनी विवरण और संपर्क जानकारी भी सामने के कवर पर होनी चाहिए।
आकर्षक। एक तरह से लिखा गया जो पाठक को व्यवसाय में प्रवेश करने की संभावनाओं का आकलन करने के लिए प्रोत्साहित करता है। लेखन शैली का ख्याल रखें, संक्षिप्त रहें लेकिन संक्षिप्त नहीं और निश्चित रूप से इतनी चिंता नहीं कि थकान महसूस हो। इस बिंदु पर रखें, बाहरी जानकारी को ज़ोउडिंग करें जो आपके व्यवसाय योजना या व्यवसाय मॉडल का समर्थन नहीं करता है। शब्दजाल से बचें और यदि आपको इनिशियल्स का उपयोग करना चाहिए, तो सुनिश्चित करें कि पहले उदाहरण को कोष्ठक में इनीशियल्स के साथ पूरी तरह से वर्तनी है।
गतिशील। आपको रचनात्मक होना है, लेकिन कुछ संयम के साथ। यह सबसे अच्छा है यदि आप एक कहानी बताते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है जो एक पुस्तकालय के कथा अनुभाग में पाया जाता है। यदि आप जो व्यवसाय प्रस्तावित करते हैं, वह बड़े उत्कर्षों को आमंत्रित नहीं करता है, तो उन्हें बचाएं। पाठक को विचलित करने के लिए यह उल्टा हो सकता है। रचनात्मकता तब तक महत्वपूर्ण है जब तक आप व्यवसाय के बारे में कुछ उजागर करते हैं और पाठक का ध्यान रखने के लिए है। भविष्य में व्यवसाय कैसे संचालित होगा, इसकी एक तस्वीर को चित्रित करने के लिए रचनात्मकता का उपयोग किया जाना चाहिए।
सटीक। स्पष्टता मौलिक है, लेकिन आपकी कंपनी की वर्तमान स्थिति और उसके भविष्य के उद्देश्यों के बारे में सटीकता और सच्चाई है। पाठक द्वारा थोड़ा सा लाइसेंस प्रदान किया जाता है, लेकिन वे आपसे अपेक्षा करते हैं कि आपके आंकड़े, ग्राहक संख्या और आपके माल के उत्पादन की स्थिति के बारे में सच्चाई होगी।
आदेश दिया। अपने व्यवसाय योजना के माध्यम से अपने पाठक का मार्गदर्शन करें और रिपोर्ट के परिशिष्ट में सहायक दस्तावेज रखें। यद्यपि प्रमुख जानकारी रिपोर्ट के मुख्य खंडों में होनी चाहिए, परिशिष्ट में आप माध्यमिक डेटा, बाजार अध्ययन परिणाम, पेशेवरों के रिज्यूमे और सिफारिश या अनुकूल रिपोर्ट के किसी भी पत्र को शामिल कर सकते हैं।
अंतिम बड़ा BOLT जो आपके व्यवसाय की योजना को एक साथ बनाए रखेगा, वह है CARE। आपकी व्यवसाय योजना केवल कुछ ऐसी चीज नहीं है जिसके लिए आपको अपना धन प्राप्त करना है। यह वर्णन है कि ये वे स्तर हैं जिन्हें निवेशकों को देखना चाहिए आपका व्यवसाय अब कैसा दिखता है और आप भविष्य में कैसा दिखना चाहते हैं। अधिकांश व्यवसाय योजनाएं दुनिया में एक छोटे से व्यवसाय की स्थापना के लिए लगभग 20 पृष्ठों की लंबी अवधि के लिए शुरू होती हैं, जो प्रमुख धन की मांग वाले व्यवसाय के लिए अधिकतम 50 पृष्ठों तक होती हैं। आपकी व्यवसाय योजना का आकार जो भी हो, और कृपया जटिल विचारों को संक्षेप में लिखने का अभ्यास करें, इसे सावधानी से लिखा जाना चाहिए – आखिरकार एक अच्छी व्यवसाय योजना कंपनी की सफलता का रोडमैप है!
कहानी सफलता की: 60-65 साल की उम्र में रिटायर होने से पहले इसे देखिए, 77 साल में दूसरा स्टार्टअप खड़ा करने वाले ये हैं हैप्पिएस्ट माइंड के अशोक सूता
आप अगर यह सोच रहे हैं कि 60-65 साल में रिटायर हो जाएं तो आपको उससे पहले यह भी देखना चाहिए। अशोक सूता एक बार फिर चर्चा में हैं। वे 60-65 के नहीं हैं। ना ही वे रिटायर हुए हैं। वे 77 साल के हैं और इस उम्र में उन्होंने दूसरा स्टार्टअप खड़ा कर दिया। सिर्फ खड़ा ही नहीं किया, बल्कि पूरी तरह से स्थापित कर उसका आईपीओ लाया। आईपीओ भी कोई एक दो गुना नहीं भरा, बल्कि 150 गुना भरा। वह भी ऐसे माहौल में लाया जब कोविड का असर पूरी अर्थव्यवस्था पर है।
उनकी हिम्मत देखिए की आईपीओ का बाजार पूरी तरह से सूना है। सेबी से मंजूरी पा कर दर्जनों कंपनियां आईपीओ इसलिए नहीं लाई क्योंकि उन्हें पैसा न मिलने का डर है। पर अशोक सूता ने इसी डर के माहौल में एंट्री की और इस महीने में आईपीओ की लाइन लग गई।
700 करोड़ चाहिए था, मिला 58 हजार करोड़ से ज्यादा
अशोक सूता को हैप्पिएस्ट के आईपीओ से केवल 700 करोड़ रुपए चाहिए था। उन्हें निवेशकों से 58 हजार करोड़ से ज्यादा की राशि मिली। रिटेल निवेशकों ने भी दम लगाया और 70 गुना सब्सक्रिप्शन दिया। इसकी लिस्टिंग बुधवार को है। किसी भी उद्यमी के लिए दूसरी बार सफलता का स्वाद चखना बड़ा मुश्किल होता है। पर 77 साल के अशोक सूता उन असाधारण लोगों में से एक हैं।
13 साल पहले के आईपीओ की याद दिला दी
हैप्पिएस्ट माइंड्स के 700 करोड़ रुपए के इनिशियल पब्लिक ऑफर से करीब 13 साल पहले उन्होंने अपनी पिछली कंपनी माइंडट्री का आईपीओ लाया था और ये वे स्तर हैं जिन्हें निवेशकों को देखना चाहिए उस इश्यू को 103 बार ओवरसब्सक्राइब किया गया था। सूता ने कहा कि लोगों को लगा कि हम लॉकडाउन के बीच में आईपीओ के लिए फाइल करने के लिए पागल हुए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने कारोबार को देखते हुए पूर्ण विश्वास था।
76 प्रतिशत रेवेन्यू पर कोरोना का भी असर नहीं
उनके रेवेन्यू कुल रेवेन्यू के 76 प्रतिशत हिस्से पर लॉकडाउन या कोरोना का कोई असर नहीं हुआ। उस रेवेन्यू का आधे से अधिक शिक्षा और हाईटेक क्षेत्रों से आता है। उन्होंने कहा कि डिजिटल सेवाओं पर कंपनी का फोकस भी इसे पारंपरिक आईटी कंपनियों से बिल्कुल अलग स्तर पर रखता है ।
तीन सालों में 21 प्रतिशत सीएजीआर की दर से बढ़ा रेवेन्यू
हैप्पिएस्ट माइंड का कारोबार पिछले तीन सालों में लगभग 21% सीएजीआर की दर से बढ़ा है। वह भी ऐसे समय में, जब आईटी उद्योग महज 8-10% तक की ही ग्रोथ हासिल कर पाया। सूता ने आईआईटी-रुड़की से इंजीनियरिंग की और श्रीराम रेफ्रिजरेशन इंडस्ट्रीज में रहे। उन्हें 1985 में अजीम प्रेमजी ने विप्रो के तत्कालीन आईटी बिजनेस बनाने के लिए हायर किया था। इसी के बाद अगले 14 वर्षों में सूता विप्रो का चेहरा बन गये। इसके बाद प्रेमजी की कंपनी में वाईस चेयरमैन भी बने।
10 लोगों के साथ 1999 में माइंडट्री को सूता ने लीड किया
1999 में सूता ने विप्रो और अन्य कंपनियों के 10 वरिष्ठ अधिकारियों के एक समूह का नेतृत्व किया, जो आगे चलकर माइंडट्री ये वे स्तर हैं जिन्हें निवेशकों को देखना चाहिए बना। अगले एक साल तक सब कुछ अच्छा ही हुआ। उससे भी अच्छा तब हुआ जब 2007 में इसका आईपीओ आया। यह आईपीओ 100 गुना से ज्यादा सब्सक्राइब हुआ। हालांकि यह खुशी बहुत दिन तक सूता के साथ नहीं रह पाई। कारण कि वहां संस्थापकों के ये वे स्तर हैं जिन्हें निवेशकों को देखना चाहिए बीच मतभेद उभरने लगे।
सूता एक ओर और बाकी सब एक ओर थे माइंडट्री में
ऐसा लग रहा था जैसे एक तरफ सूता थे और दूसरी ओर बाकी सब। यह अभी भी बहुत स्पष्ट नहीं है कि वे मतभेद क्या थे। कुछ इसे मोबाइल हैंडसेट कारोबार में प्रवेश के लिए सूता की जोर आजमाइश को देखते हैं जिससे काफी नुकसान हुआ था। जबकि कुछ का कहना है कि संस्थापकों के बीच जिम्मेदारियों को लेकर मतभेद थे। आखिरकार सूता ने माइंडट्री छोड़ दिया और कंपनी में अपने सभी शेयरों को बेच दिया। 2011 में 68 की उम्र में धैर्य और दृढ़ता का एक उल्लेखनीय प्रदर्शन कर उन्होंने हैप्पिएस्ट माइंड की स्थापना की।
इसलिए हैप्पिएस्ट माइंड का नाम दिया
सूता ने बताया कि उन्होंने कंपनी को हैप्पिएस्ट माइंड्स का नाम इसलिए दिया कि ताकि कंपनी को यह लगे कि वे अपने खुश कर्मचारियों की बदौलत ग्राहकों की खुशी-खुशी सेवा कर रही है। लेकिन चूंकि हैप्पिएस्ट माइंड ने यह संकेत नहीं दिया कि कंपनी क्या करती है इसलिए सूता ने द माइंडफुल आईटी कंपनी की टैग लाइन बना दी। इसका मतलब यह था कि यह एक आईटी कंपनी है जो अपने लोगों, ग्राहकों और समुदाय के प्रति अपनी तरफ से सजग होगी।
डिजिटल के सहारे खेला दांव
सूता ने कहा की कंपनी ने डिजिटल पर अपना ध्यान केंद्रित किया। आज जबकि बड़ी- बड़ी आईटी कंपनियों के कामकाज का 30 से 50% हिस्सा डिजिटल में होता है तो वही हैप्पिएस्ट माइंड के लिए शत प्रतिशत कामकाज डिजिटल है। सूता का मानना है कि दुनिया में केवल चार फर्में हैं जिन्हें 100% डिजिटल कहा जा सकता है - हैप्पिएस्ट माइंड, ईपैम सिस्टम्स, एंडवा और ग्लोबेंट।
हमेशा सार्वजनिक कंपनियों को चलाना पसंद किया
सूता ने पिछले हफ्ते कहा था कि उन्होंने हमेशा सार्वजनिक कंपनियों को चलाना पसंद किया है। उन्होंने कहा कि जब कोई कंपनी सार्वजनिक हो जाती है तो कॉर्पोरेट गवर्नेंस में सुधार का दबाव होता है। उन्होंने कहा कि प्राइवेट पूंजी पर निर्भरता से कोई मदद नहीं मिलती है। वह उबर और लिफ्ट जैसी भारी उधारी लेनेवाली कंपनियों के अनुभव की ओर इशारा करते हैं।
निवेशकों को सूता के नाम पर है भरोसा
अशोक सूता के नाम पर निवेशकों को काफी ज्यादा भरोसा है। हैप्पिएस्ट माइंड की शुरुआत उन्होंने बंगलुरू में अप्रैल 2011 में की थी। अशोक सूता भारत की इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (आईटी) सर्विसेज इंडस्ट्री के जाने माने नाम हैं। सूता ने आईआईटी-रुड़की से इंजीनियरिंग की है। इन्होंने तीन बड़ी आउटसोर्सिंग कंपनियों के प्रमुख की भूमिका निभाई है। इसमें प्रमुख कंपनी विप्रो लिमिटेड है। बाकी दो पब्लिक कंपनियां हैं।
सामाजिक जिम्मेदारियों को देते हैं तवज्जो
अजीम प्रेमजी की तरह अशोक सूता भी सामाजिक जिम्मेदारियों को तवज्जो देते हैं। उनके मुताबिक शोध से पता चलता है कि समाज को कुछ देने के क्षणों में खुशी सबसे अधिक होती है। सूता कहते हैं कि हम अपनी उपलब्धियों की खुशी का इजहार अपनी टीम के सदस्य और कस्टमर के नाम पर स्कूल में गरीब बच्चों को मिड डे मील में भोजन देकर करते हैं। हमने आईपीओ के आने के वक्त तक एक मिलियन बच्चों को खाना देने का लक्ष्य निर्धारित किया था।
सूता कहते हैं कि हैप्पिएस्ट माइंड्स के लिए अगर हम पूरे भारत को आउटसोर्सिंग बाजार मानते तो हमें लगता है कि हम 150 अरब डॉलर के बाजार में होते। हालांकि हमने सिर्फ खास तकनीकों और डिजिटल बदलाव पर फोकस किया। उस लिहाज से हमें बाजार की समीक्षा करनी पड़ी और कई ऐसे सेगमेंट से हम पीछे हट गए जिसमें हम कारोबार नहीं करने वाले थे।