क्या शेयर मार्केट घाटे का सौदा है?

तेजी और मंदी शेयर बाजार का चरित्र है, क्या ये फिर गिरेगा
शेयर बाजार का इतिहास गवाह है कि जब यह बुरी तरह गिरता है तो उस समय ही बाद में आने वाली तेजी की नींव भी रखी जाती है.
बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज | फाइल फोटो
पिछले दिनों भारतीय शेयर बाजार ने चमक बिखेर दी और सेंसेक्स 60,000 के पार तो हो गया लेकिन उसने यह सवाल भी खड़ा किया कि क्या इन बुलंदियों पर जाने के बाद यह अब धराशायी हो जाएगा? उसके इस रिकॉर्ड ऊंचाई पर जाने के बाद तरह-तरह की आशंकाएं खड़ी हो गईं हैं. हालांकि पिछले हफ्ते इसमें पांच हफ्तों के बाद गिरावट आई और यह 1282 अंक गिरकर 58,766 पर चला गया. निफ्टी में भी 321 अंकों की गिरावट आई और 17,532 अंकों पर था.
इससे पहले कि यह बहस तेज हो कि क्या यह गिरावट स्थायी है, सोमवार को सेंसेक्स में 625 अंकों की बढ़ोत्तरी हो गई.
लेकिन विशेषज्ञ यहां मानते हैं कि शेयर बाज़ार के इन ऊंचाइयों पर जाने की कोई ठोस वजह नहीं है. यह या तो अति उत्साह में की गई खरीदारी है या सटोरियों का खेल. अगर हम ध्यान से देखें तो इस समय निवेश के सारे रास्ते बंद हो गये हैं. रियल एस्टेट मंदी के भीषण दौर से गुजर रहा है, सोना नई ऊंचाइयों पर जाने के बाद नीचे तो आया है लेकिन इतना भी नहीं कि खरीदारी हो सके, सरकारी बांडों और ऋण बाजारों में भी खास रिटर्न नहीं है. फिक्स्ड डिपॉजिट में ब्याज दरें इतनी कम हो गईं हैं कि यह निरर्थक हो गया है. सच तो है कि महंगाई की दर इतनी ज्यादा हो गई है कि उसके कारण डिपॉजिट पर मिलने वाला ब्याज निगेटिव में चला गया है. इसका मतलब हुआ कि अब फिक्स्ड डिपॉजिट में पैसे डालने का कोई फायदा नहीं है. तो फिर सेविंग के जरिये कमाने का क्या जरिया बचता है? शेयर बाजार और उस पर आधारित म्यूचुअल फंड. यही कारण है कि निवेशक इनमें बड़े पैमाने पर धन लगा रहे हैं. इन दोनों ने निवेशकों को निराश नहीं किया और अच्छा रिटर्न भी दिया है. सिर्फ इस साल ही सेंसेक्स 13,000 अंकों से भी ज्यादा बढ़ गया है. उधर म्यूचुअल फंडों में कई तो ऐसे हैं जिन्होंने 50 प्रतिशत से भी ज्यादा रिटर्न दे दिया है.
उभरती अर्थव्यवस्था, भारत और एफडीआई
लेकिन लाख टके का सवाल है कि क्या सिर्फ इस कारण से ही शेयर बाजार इतना ऊपर चला गया? इसके कई उत्तर हैं. सबसे बड़ा फैक्टर है, सारी दुनिया में ब्याज दरों का गिरना. इस समय अमेरिका और पश्चिमी देशों और जापान वगैरह में ब्याज दरें शून्य पर हैं. भारत में भी यह अपने न्यूनतम पर हैं. ऐसे में निवेशक बैंकों से पैसा लेकर या वहां जमा न कर भारतीय शेयर बाजारों में लगा रहे हैं. विदेशी वित्तीय संस्थान और एनआरआई ने भी निवेश किया. इस बात का अंदाजा इसी से मिलता है कि 2021-22 (जून) में यहां के वित्तीय बाजारों में उन्होंने 4433 करोड़ रुपए का निवेश किया है. यह राशि बाजार में आग लगाने का काम कर रही है.
दरअसल, इस समय उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में निवेश के लिए उपयुक्त स्थानों में भारत ऊंचे स्थान पर है. इस समय यहां निवेश करना विदेशी निवेशकों के लिए फायदे का सौदा है. यहां की तमाम परिस्थितियां उनके अनुकूल हैं. ऐसे में निवेशक आश्वस्त भाव से निवेश कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि लगातार तीसरे साल भी विदेशी निवेशकों ने भारत में कुल कुल 9 अरब डॉलर निवेश कर दिया है.
लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ विदेशी निवेशकों ने ही यहां पैसा लगाया है. देसी निवेशक भी शेयर बाजार की बहती गंगा में हाथ धोने के लिए बड़ी तादात में उतर गये हैं. आज म्यूचुअल फंडों और सिप के माध्यम से निवेशक बड़े पैमाने पर इसमें पैसे लगा रहे हैं और उनमें लगभग 70 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिन्होंने शेयर बाजार में कभी पैसा नहीं लगाया था.
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उधर, डीमैट अकाउंट खोलना आसान बनाकर सेबी ने भी लोगों को इस ओर आकर्षित किया है. इस साल ही नहीं पिछले साल भी लाखों नए डीमैट अकाउंट खुले हैं. सेबी के ही आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल अप्रैल से इस साल जनवरी तक एक करोड़ क्या शेयर मार्केट घाटे का सौदा है? से भी ज्यादा डीमैट अकाउंट खुले हैं. इस समय देश में सात करोड़ से भी ज्यादा डीमैट अकांउट खोले जा चुके हैं. नई टेक्नोलॉजी और ऐप ने पैसे लगाना एकदम आसान कर दिया है. अब नए निवेशक लगातार पैसे लगा रहे हैं सीधे भी और म्यूचुअल फंडों के जरिये भी.
म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री अपने स्लोगन ‘म्यूचुअल फंड सही है’ से लोगों को इस ओर आकर्षित करने में सफल हो रही है. आंकड़े बताते हैं कि शेयर बाजारों में बड़े पैमाने पर निवेश इनके जरिये ही हो रहा है. नए लोग जो बाजार के उतार-चढाव से घबराते हैं, शेयर बाजारों में ही निवेश कर रहे हैं. एक तरह से तो यह अच्छी बात है क्योंकि बाजार के धराशायी होने पर उन्हें जोर का झटका धीरे से लगेगा. इसके अलवा सेबी और सरकार ने म्यूचुअल फंडों पर भी लगाम कस दी है और वे अब उतनी मनमानी नहीं कर सकते हैं.
बाजार की इस जबर्दस्त तेजी ने बहुत सी धारणाओं को झुठलाया है कि शेयर बाजार अर्थव्यवस्था का आइना होता है. आज स्थिति दूसरी है. जीडीपी में जितनी तेजी आई है उससे कहीं ज्यादा शेयर बाजारों में तेजी आई है. दरअसल, इन दोनों के बीच एक स्वस्थ संतुलन होना चाहिए. कंपनियों के तिमाही या सालाना परिणाम कहीं से देश की अर्थव्यवस्था की हालत को बयान नहीं कर रहे हैं, अतिशयोक्ति से काम ले रहे हैं.
दूसरी बात है जो और भी खतरनाक है, वह है कि चूंकि शेयर बाजार का सीधा संबंध कंपनियों से हैं, उनके परिणाम चाहे वे सालाना हों या तिमाही इस मानदंड पर खरे नहीं उतर रहे हैं. इन दिनों कंपनियों के परिणाम बेशक अब अच्छे आ रहे हैं लेकिन उनके शेयर बहुत गर्म हो गए हैं. इनमें से कई तो अपने पीई रेशियो से कई गुना ज्यादा हो गए हैं. इस समय मार्केट कैप और जीडीपी का अनुपात 130 प्रतिशत को पार कर गया है. बाजार इकोनॉमी से कहीं आगे निकल गया है और यह चिंता का विषय है क्योंकि यह बता रहा है कि सेंसेक्स और निफ्टी अब ठोस जमीन पर नहीं खड़े हैं. ये कंपनियों के तीन साल आगे होने वाली कमाई को मानकर अभी से चल रहे हैं. ऊंचे वैल्यूएशन के अपने खतरे हैं और ऐसे में बाजार के धारशायी होने की संभावना बढ़ जाती है. अब हमारा शेयर बाजार उस ओर इशारा कर रहा है.
राजनीतिक अर्थव्यवस्था और अर्थव्यवस्था
मतलब साफ है कि तेजी से भागते बाजार को कभी भी ब्रेक लग सकता है और यह कभी भी औंधे मुंह गिर सकता है. कुछ एनालिस्ट मानते हैं कि अब बाजार के 10 से 25 प्रतिशत तक गिरने की संभावना बनती जा रही है क्योंकि यह ठोस जमीन पर खड़ा नहीं है.
एक बात और जो याद रखनी चाहिए कि शेयर बाजार अवधारणाओं या सेंटिमेंट पर चलते हैं. ये काफी आगे तक के फैक्टर को डिस्काउंट कर लेते हैं. इस बार भी ऐसा हो रहा है. देश में राजनीतिक स्थिरता है और अर्थव्यवस्था ‘वी’ शेप में ऊपर की ओर जा रही है. इसलिये भी निवेशक यहां पैसे लगा रहे हैं.
एक बात जो देखने की है और वह यह कि इस समय बीएसई या निफ्टी में बड़े पैमाने पर शेयर ऐसे हैं जो बढ़े ही नहीं, बढ़े तो नाम भर के ही जबकि उनकी कंपनियां काम अच्छा ही कर रही हैं. दूसरी ओर कुछ शेयर ऐसे हैं जो अपने अधिकतम पर हैं या फिर दोगुनी कीमत के हो गये हैं. यानी यह एक बड़ा विरोधाभास है.
बाजार अगर धराशायी होता है तो निवेशकों को भारी चोट पहुंचेगी और खलबली मच जाएगी, लेकिन समझदार निवेशकों के लिए एक सलाह है कि उस समय बाजार का दामन छोड़कर आप घाटा ही उठाएंगे. शेयर बाजार का इतिहास गवाह है कि जब यह बुरी तरह गिरता है तो उस समय ही बाद में आने वाली तेजी की नींव भी रखी जाती है. तब शायद थोड़ा यानी एकाध साल तक प्रतीक्षा करनी हो सकती हो सकती है. तेजी और उसके बाद मंदी, यह शेयर बाजार की नियति है.
Why Share Market Is Falling In India: भारतीय शेयर मार्केट क्यों गिर रहा है? आइये एक्सपर्ट से समझते हैं
Why is the Indian Stock Market Falling In Hindi: भारतीय शेयर बाजार में गिरावट का सिलसला जारी है, शेयर मार्केट इन्वेस्टर्स को लम्बा नुकसान झेलना पड़ रहा है और आगे भी मार्केट में उछाल की कोई संभावनाएं नज़र नहीं आ रही हैं. मंगलवार 7 जून को भी इंडियन स्टॉक मार्केट में भारी डाउन फाल देखने को मिला है. इस बीच आई. मॉर्गन स्टेनली के मैनेजिंग डायरेक्टर रिदम देसाई बाजार (Morgan Stanley MD Ridham Desai) ने बताया है कि भारतीय शेयर बाजार में हो रही गिरावट का असली कारण क्या है.
रिदम देसाई का कहना है कि भारत में तेजी से बढ़ रही महंगाई शेयर मार्केट के डाउन फाल की बड़ी वजहों में से एक है. उनका कहना है कि भारत की महंगाई इसके शेयर मार्केट के लिए बड़ी घातक साबित हो रही है.
भारतीय शेयर मार्केट क्यों गिर रहा है
Why Indian stock market Is falling? रिदम देसाई का कहना है कि शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट के मामले में शेयर बाजार एक दायरे में घूमता नजर आएगा. लेकिन, आगे इसमें और भी गिरावट आ सकती है. रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) और अमेरिका में मंदी की आहट से इंवेस्टवर्स डरे हुए हैं. ये दोनों ही कारण इंडियन शेयर बाजार को गिराने का प्रमुख कारण हैं.
रेपो रेट बढ़ाने से हुआ नुकसान
रिदम देसाई का कहना है कि मई में RBI द्वारा अचानक रेपो रेट में 0.40% की बढ़त का शेयर बाजार पर बुरा असर हुआ है.इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी से इंवेस्टवर्स को महंगाई का डर है. अगर वित्त वर्ष 2023 में महंगाई ऊंचे स्तर पर रही तो इसका असर देश के विकास पर भी देखने को मिलेगा।
अमेरिका की मंदी इंडियन स्टॉक मार्केट के लिए नुकसानदायक
रिदम देसाई ने कहा कि पाम ऑयल और सनफ्लॉवर आयल की कीमतों में बढ़त और अमेरिकन स्टॉक मार्केट में मंदी की वजह से भारतीय शेयर बाजार की ग्रोथ रुकी हुई है. अभी American Federal Bank फिर से इंटरेस्ट रेट बढ़ा सकता है वहीं मई में REPO Rate बढ़ाने के बाद RBI एक बार फिर से इसमें इजाफा कर सकता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस समय किसी कंपनी में निवेश करना घाटे का सौदा हो सकता है.
तेजी और मंदी शेयर बाजार का चरित्र है, क्या ये फिर गिरेगा
शेयर बाजार का इतिहास गवाह है कि जब यह बुरी तरह गिरता है तो उस समय ही बाद में आने वाली तेजी की नींव भी रखी जाती है.
बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज | फाइल फोटो
पिछले दिनों भारतीय शेयर बाजार ने चमक बिखेर दी और सेंसेक्स 60,000 के पार तो हो गया लेकिन उसने यह सवाल भी खड़ा किया कि क्या इन बुलंदियों पर जाने के बाद यह अब धराशायी हो जाएगा? उसके इस रिकॉर्ड ऊंचाई पर जाने के बाद तरह-तरह की आशंकाएं खड़ी हो गईं हैं. हालांकि पिछले हफ्ते इसमें पांच हफ्तों के बाद गिरावट आई और यह 1282 अंक गिरकर 58,766 पर चला गया. निफ्टी में भी 321 अंकों की गिरावट आई और 17,532 अंकों पर था.
इससे पहले कि यह बहस तेज हो कि क्या यह गिरावट स्थायी है, सोमवार को सेंसेक्स में 625 अंकों की बढ़ोत्तरी हो गई.
लेकिन विशेषज्ञ यहां मानते हैं कि शेयर बाज़ार के इन ऊंचाइयों पर जाने की कोई ठोस वजह नहीं है. यह या तो अति उत्साह में की गई खरीदारी है या सटोरियों का खेल. अगर हम ध्यान से देखें तो इस समय निवेश के सारे रास्ते बंद हो गये हैं. रियल एस्टेट मंदी के भीषण दौर से गुजर रहा है, सोना नई ऊंचाइयों पर जाने के बाद नीचे तो आया है लेकिन इतना भी नहीं कि खरीदारी हो सके, सरकारी बांडों और ऋण बाजारों में भी खास रिटर्न नहीं है. फिक्स्ड डिपॉजिट में ब्याज दरें इतनी कम हो गईं हैं कि यह निरर्थक हो गया है. सच तो है कि महंगाई की दर इतनी ज्यादा हो गई है कि उसके कारण डिपॉजिट पर मिलने वाला ब्याज निगेटिव में चला गया है. इसका मतलब हुआ कि अब फिक्स्ड डिपॉजिट में पैसे डालने का कोई फायदा नहीं है. तो फिर सेविंग के जरिये कमाने का क्या जरिया बचता है? शेयर बाजार और उस पर आधारित म्यूचुअल फंड. यही कारण है कि निवेशक इनमें बड़े पैमाने पर धन लगा रहे हैं. इन दोनों ने निवेशकों को निराश नहीं किया और अच्छा रिटर्न भी दिया है. सिर्फ इस साल ही सेंसेक्स 13,000 अंकों से भी ज्यादा बढ़ गया है. उधर म्यूचुअल फंडों में कई तो ऐसे हैं जिन्होंने 50 प्रतिशत से भी ज्यादा रिटर्न दे दिया है.
उभरती अर्थव्यवस्था, भारत और एफडीआई
लेकिन लाख टके का सवाल है कि क्या सिर्फ इस कारण से ही शेयर बाजार इतना ऊपर चला गया? इसके कई उत्तर हैं. सबसे बड़ा फैक्टर है, सारी दुनिया में ब्याज दरों का गिरना. इस समय अमेरिका और पश्चिमी देशों और जापान वगैरह में ब्याज दरें शून्य पर हैं. भारत में भी यह अपने न्यूनतम पर हैं. ऐसे में निवेशक बैंकों से पैसा लेकर या वहां जमा न कर भारतीय शेयर बाजारों में लगा रहे हैं. विदेशी वित्तीय संस्थान और एनआरआई ने भी निवेश किया. इस बात का अंदाजा इसी से मिलता है कि 2021-22 (जून) में यहां के वित्तीय बाजारों में उन्होंने 4433 करोड़ रुपए का निवेश किया है. यह राशि बाजार में आग लगाने का काम कर रही है.
दरअसल, इस समय उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में निवेश के लिए उपयुक्त स्थानों में भारत ऊंचे स्थान पर है. इस समय यहां निवेश करना विदेशी निवेशकों के लिए फायदे का सौदा है. यहां की तमाम परिस्थितियां उनके अनुकूल हैं. ऐसे में निवेशक आश्वस्त भाव से निवेश कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि लगातार तीसरे साल भी विदेशी निवेशकों ने भारत में कुल कुल 9 अरब डॉलर निवेश कर दिया है.
लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ विदेशी निवेशकों ने ही यहां पैसा लगाया है. देसी निवेशक भी शेयर बाजार की बहती गंगा में हाथ धोने के लिए बड़ी तादात में उतर गये हैं. आज म्यूचुअल फंडों और सिप के माध्यम से निवेशक बड़े पैमाने पर इसमें पैसे लगा रहे हैं और उनमें लगभग 70 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिन्होंने शेयर बाजार में कभी पैसा नहीं लगाया था.
अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक
दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं
हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.
उधर, डीमैट अकाउंट खोलना आसान बनाकर सेबी ने भी लोगों को इस ओर आकर्षित किया है. इस साल ही नहीं पिछले साल भी लाखों नए डीमैट अकाउंट खुले हैं. सेबी के ही आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल अप्रैल से इस साल जनवरी तक एक करोड़ से भी ज्यादा डीमैट अकाउंट खुले हैं. इस समय देश में सात करोड़ से भी ज्यादा डीमैट अकांउट खोले जा चुके हैं. नई टेक्नोलॉजी और ऐप ने पैसे लगाना एकदम आसान कर दिया है. अब नए निवेशक लगातार पैसे लगा रहे हैं सीधे भी और म्यूचुअल फंडों के जरिये भी.
म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री अपने स्लोगन ‘म्यूचुअल फंड सही है’ से लोगों को इस ओर आकर्षित करने में सफल हो रही है. आंकड़े बताते हैं कि शेयर बाजारों में बड़े पैमाने पर निवेश इनके जरिये ही हो रहा है. नए लोग जो बाजार के उतार-चढाव से घबराते हैं, शेयर बाजारों में ही निवेश कर रहे हैं. एक तरह से तो यह अच्छी बात है क्योंकि बाजार के धराशायी होने पर उन्हें जोर का झटका धीरे से लगेगा. इसके अलवा सेबी और सरकार ने म्यूचुअल फंडों पर भी लगाम कस दी है और वे अब उतनी मनमानी नहीं कर सकते हैं.
बाजार की इस जबर्दस्त तेजी ने बहुत सी धारणाओं को झुठलाया है कि शेयर बाजार अर्थव्यवस्था का आइना होता है. आज स्थिति दूसरी है. जीडीपी में जितनी तेजी आई है उससे कहीं ज्यादा शेयर बाजारों में तेजी आई है. दरअसल, इन दोनों के बीच एक स्वस्थ संतुलन होना चाहिए. कंपनियों के तिमाही या सालाना परिणाम कहीं से देश की अर्थव्यवस्था की हालत को बयान नहीं कर रहे हैं, अतिशयोक्ति से काम ले रहे हैं.
दूसरी बात है जो और भी खतरनाक है, वह है कि चूंकि शेयर बाजार का सीधा संबंध कंपनियों से हैं, उनके परिणाम चाहे वे सालाना हों या तिमाही इस मानदंड पर खरे नहीं उतर रहे हैं. इन दिनों कंपनियों के परिणाम बेशक अब अच्छे आ रहे हैं लेकिन उनके शेयर बहुत गर्म हो गए हैं. इनमें से कई तो अपने पीई रेशियो से कई गुना ज्यादा हो गए हैं. इस समय मार्केट कैप और जीडीपी का अनुपात 130 प्रतिशत को पार कर गया है. बाजार इकोनॉमी से कहीं आगे निकल गया है और यह चिंता का विषय है क्योंकि यह बता रहा है कि सेंसेक्स और निफ्टी अब ठोस जमीन पर नहीं खड़े हैं. ये कंपनियों के तीन साल आगे होने वाली कमाई को मानकर अभी से चल रहे हैं. ऊंचे वैल्यूएशन के क्या शेयर मार्केट घाटे का सौदा है? अपने खतरे हैं और ऐसे में बाजार के धारशायी होने की संभावना बढ़ जाती है. अब हमारा शेयर बाजार उस ओर इशारा कर रहा है.
राजनीतिक अर्थव्यवस्था और अर्थव्यवस्था
मतलब साफ है कि तेजी से भागते बाजार को कभी भी ब्रेक लग सकता है और यह कभी भी औंधे मुंह गिर सकता है. कुछ एनालिस्ट मानते हैं कि अब बाजार के 10 से 25 प्रतिशत तक गिरने की संभावना बनती जा रही है क्योंकि यह ठोस जमीन पर खड़ा नहीं है.
एक बात और जो याद रखनी चाहिए कि शेयर बाजार अवधारणाओं या सेंटिमेंट पर चलते हैं. ये काफी आगे तक के फैक्टर को डिस्काउंट कर लेते हैं. इस बार भी ऐसा हो रहा है. देश में राजनीतिक स्थिरता है और अर्थव्यवस्था ‘वी’ शेप में ऊपर की ओर जा रही है. इसलिये भी निवेशक यहां पैसे लगा रहे हैं.
एक बात जो देखने की है और वह यह कि इस समय बीएसई या निफ्टी में बड़े पैमाने पर शेयर ऐसे हैं जो बढ़े ही नहीं, बढ़े तो नाम भर के ही जबकि उनकी कंपनियां काम अच्छा ही कर रही हैं. दूसरी ओर कुछ शेयर ऐसे हैं जो अपने अधिकतम पर हैं या फिर दोगुनी कीमत के हो गये हैं. यानी यह एक बड़ा विरोधाभास है.
बाजार अगर धराशायी होता है तो निवेशकों को भारी चोट पहुंचेगी और खलबली मच जाएगी, लेकिन समझदार निवेशकों के लिए एक सलाह है कि उस समय बाजार का दामन छोड़कर आप घाटा ही उठाएंगे. शेयर बाजार का इतिहास गवाह है कि जब यह बुरी तरह गिरता है तो उस समय ही बाद में आने वाली तेजी की नींव भी रखी जाती है. तब शायद थोड़ा यानी एकाध साल तक प्रतीक्षा करनी हो सकती हो सकती है. तेजी और उसके बाद मंदी, यह शेयर बाजार की नियति है.
वोडाफोन आईडिया में निवेश हुआ घाटे का सौदा, एक लाख पर हुआ 67 हजार रुपए का नुकसान
बीते कुछ दिनों से वोडाफोन आईडिया में जो घट रहा है वो शेयर बाजार निवेशकों के लिए नुकसान साबित हुआ है। जहां बीते चार दिनों में कंपनी निवेशकों को 1 लाख पर 44 हजार रुपए का नुकसान हुआ है। वहीं इस साल 67 हजार रुपए का नुसकान हो चुका है।
ग्राहकों की संख्या के लिहाज से वोडाफोन आइडिया देश की तीसरी सबसे बड़ी कंपनी है।
कुमार मंगलम बिडला के वोडाफोन आईडिया के चेयरमैनशिप पद से इस्तीफा देने और कंपनी से अपनी हिस्सेदारी खत्म करने के फैसले के बाद कंपनी के शेयरों में आज 25 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिली है। वैसे बाद में इसमें रिकवरी भी देखने को मिली। एक खास बात यह है कि कंपनी का शेयर 52 हफ्तों के लो पर आ गया। यानी कंपनी 52 हफ्तों और लो दोनों इसी साल बने हैं। यानी क्या शेयर मार्केट घाटे का सौदा है? 7 महीनों में कंपनी का शेयर 67 फीसदी डाउन हो चुका है।
बाजार आंकडों के अनुसार वोडाफोन आईडिया के शेयरों में निवेश करने वाले लोगों को 7 महीने में एक लाख रुपए के निवेश पर 67 हजार रुपए का नुकसान हो चुका है। आपको बता दें कि दोनों कंपनियों का मर्जर हुआ था। उसके बाद उम्मीद की जा रही थी कि देश में जियो और एयरटेल को टक्कर देने के लिए वोडाफोन आईडिया मजबूत होगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब देखने वाली बात होगी कि सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है।
इस 67 फीसदी तक गिरा कंपनी का शेयर : बांबे स्टॉक एक्सचेंज के आंकडों के अनुसार कंपनी 15 जनवरी को कंपनी का शेयर 13.80 रुपए पर था, जो आज 4.55 रुपए के साथ 52 हफ्तों के निचले स्तर पर आ गया। इन करीब 7 महीनों में कंपनी का शेयर 67 फीसदी तक नीचे गिर गया। इसके और नीचे आने का अनुमान लगाया जा रहा है। जानकारों की मानें तो कंपनी के शेयरों के इतने नीचे आने का अनुमान नहीं लगाया गया था। इससे कंपनी के शेयरों में लगाए रुपयों पर निवेशकों को भारी नुकसान हुआ है।
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एक लाख रुपए पर 67 हजार रुपए का नुकसान : अगर बात निवेशकों के नुकसान की करें तो एक लाख रुपए पर निवेशकों को 67 हजार रुपए का नुकसान हो चुका है। अगर किसी निवेशक के पास वोडाफोन आईडिया के शेयर होंगे और 15 जनवरी को उनकी वैल्यू 1 लाख रुपए होगी तो आज उसकी वैल्यू 4.55 रुपए के हिसाब से उनकी वैल्यू 33 हजार रुपए से ज्यादा नहीं होगी।
आज ही 25 फीसदी तक गिर गए थे दाम : अगर बात आज की करें तो कंपनी के शेयरों की कीमत में आज 25 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिल चुकी थी। बुधवार को कंपनी का शेयर 6.03 रुपए पर बंद हुआ था। जबकि आज कंपनी का शेयर 4.55 फीसदी तक नीचे गया। यानी 25 फीसदी तक कंपनी का शेयर नीचे गिर गया था। जबकि उसके बाद कंपनी के शेयरों में रिकवरी आई और 5.94 रुपए पर बंद हुआ।