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ट्रेडिंग क्या होती है?

ट्रेडिंग क्या होती है?
Momentum Oscillators

इंट्राडे ट्रेडिंग कैसे करें | Intraday का क्या मतलब होता है

हेलो दोस्तों, आज के इस लेख में आपको ( intraday trading kya hai) के बारे में अच्छे से समझाया ट्रेडिंग क्या होती है? गया है. यदि आप इस लेख को पूरा पढ़ते है तो आपको किसी अन्य वेबसाइट या यूटूब विडियो को देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी. ज्यादातर आपने कुछ लोगों के मुह से सुना होगा की intraday में बहुत रिस्क होता है और कुछ लोग कहते है की intraday में बहुत पैसा है. हां यह बात सच है डिलवरी ट्रेडिंग के मुकाबले intraday में बहुत अच्छा मुनाफा होता है लेकिन इसमें रिस्क भी बहुत होता है.

Intraday का क्या मतलब होता है?

इसके बोलने में ही इसका अर्थ निकल के आ रहा है “intraday” किसी भी share को 1 दिन में खरीद कर उसी दिन बेचने को intraday कहाँ जाता है.

इस stock/share market से वही पैसा कमा सकता है जो ट्रेडिंग क्या होती है? इसके बारे में अच्छे से जानता हो, इसके लिए आपके पास अच्छी रणनीति, फाइनेंशियल और एक्सपर्ट मर्केटर की जरूरत होती है. यदि इसे कोई long term के लिए इन्वेस्ट करता है तो उसे अच्छा मुनाफा मिलता है. यदि आप intraday में किसी भी share को खरीदेंगे तो उसको शाम तक बेचना ही होगा बरना मार्किट के चलती कीमत में अपने आप वह share बिक जायगा.

इंड्राडे ट्रेडिंग क्या है – Intraday trading kya hai)

Intraday मान लीजिये, आपने मार्किट के कीमत से किसी भी कंपनी के shares को ख़रीदा है और उस share की कीमत बढने लगे तो आप फायदे में चल रहे है आप चाहे तो share की कीमत गिरने से पहले उनको बेच के बहार भी निकल सकते है. आपको intraday के खुलने के समय से बंद होने के समय तक shares को खरीदना और बेचना होता है. इसमें फायदा हो या नुक्सान उसी दिन हिसाब हो जाता है, दूसरी तरफ डिलवरी ट्रेडिंग में एक बार share को खरीदने के बाद कभी भी बेच सकते है

Intraday Trading में एक बहुत बड़ी समस्या है जो नय ट्रेडर्स और पुराने ट्रेडर्स के साथ अक्सर होती है. कितना भी अनुभवी ट्रेडर्स हो उसे indicators की ही मदद जरुर लेनी चाहिए. इनसे हमें काफी लाभ होता है मैंने आपको कुछ मुख्य ट्रेडिंग क्या होती है? idicators के बारे में समझाया है.

Moving Average

बहुत से ट्रेडर्स इस dayli moving average (DMA) इंडिकेटर पर भरोसा करते है.(Intraday trading kya hai) इस इंडिकेटर से चार्ट पर एक लाइन आती है जो हमें मार्किट के व्यवहार को दर्शाते है. और ये stock के उतार-चढ़ाव प्राइस के बारे में संकेत देता है.

Moving Average indicator

Moving Average indicator

Bollinger Bands

Bollinger bands एक बेहतरीन इंडिकेटर है जिसे काफी ट्रेडर्स पसंद करते है. स्टॉक की कीमत इस इंडिकेटर के अंदर मूव करती है. इसमें 3 प्रकार की लाइन होती है सबसे पहली लाइन को upper bands कहते है और निचे वाली लाइन को lower bands कहते है.

जब भी stock की कीमत upper bands की ओर पहुचती है तो से overbought कहते है. इसमें हमें निकलने का संकेत मिलता है. जब भी stock की कीमत lower bands की ओर पहुचती है तो उसे oversold कहते है, इसमें हमें enter होने का संकेत मिलता है. (intraday trading kya hai)

Bollinger Bands

Bollinger Bands

इसके बाद stock की कीमत अधिक बार ऊपर निचे हो तो उसे bands expoand बोलते है और इसके बिपरीत कीमत धीरे-धीरे ऊपर निचे ट्रेडिंग क्या होती है? हो तो उसे bands narrow बोलते है. इस तरह से ही सभी indicator stock की volatility को दर्शाता है.

Momentum Oscillators

यह इंडिकेटर हमें यह संकेत करता है की stock की कीमत गिरेगी या ऊपर जायेगी. इसे काफी ट्रेडर्स उपयोग करते है इससे उनको यह पता चलता है की कब हमें share खरीदना और बेचना होता है.

Momentum Oscillators

Momentum Oscillators

Relative Strength Index (RSI)

यह ट्रेडिंग करने में अच्छी मदद करता है ट्रेडर्स इसका भी अच्छा उपयोग करते है और उनको इससे काफी लाभ भी मिलता है. RSI के साथ दूसरे इंडिकेटर का उपयोग करे जिससे हमें अच्छे से मार्किट की moving का पता चले. हमें कब share खरीदना और बेचना होता है. (intraday trading kya hai)

Relative Strength Index (RSI)

Relative Strength Index (RSI)

Intraday Time Analysis

Intraday में सबसे जरुरी समय को एनालिसिस करना होता है. यदि आप ये सिख गय तो आपको intraday में पैसा कमाना आसान हो जायगा. इसके लिए आपको पिछले दिन का चार्ट देखना बहुत उपयोगी होता है. इसमें उपयोग होने वाले इंडिकेटर से हमें अधिक अवश्यक जानकारी प्राप्त हो जाती है.

स्टॉक की कीमत सुरु होने ट्रेडिंग क्या होती है? से लेकर बन्द होने तक की जानकरी देते है. Time Analysis intraday ट्रेडिंग मे बहुत ही महत्पूर्ण है क्योकि मार्किट की गति तेजी से बढती/घटती रहती है और ऐसे में जिन stock पर आप पैसा इन्वेस्ट करते है वह कही ऊपर तो कहीं निचे चला जाता है. (intraday trading kya hai)

इस तरह से चार्ट को समझना मुश्किल हो जाता है इसीलिए (intraday) दिन के व्यापारियो को बहुत अवश्यक हो जाता है की वह इस तरह से चार्ट को देखे जो उनको आसानी से समझ आ जाये. हमने intraday ट्रेडिंग में इन्वेस्ट करने के लिए कुछ जरुरी चीजों के बारे में समझाया है.

Intraday के लिए कौनसा stock चुने?

जब भी कोई share market के बात आती है तो उसमे सबसे जरुरी shares खरीदना कैसे है और किस कंपनी के share खरीदने है. जब आप अपने पैसो से share को खरद कर मुनाफे में बेचते हो तो वह पैसा आपके लायक होता है. आइये जानते है की बुद्धिमानी से stock को कैसे चुने? (intraday trading kya hai)

Avoid volatile stocks- अस्थिर शेयरों से बचें

आपको कभी भी अस्थिर shares में पैसे नहीं इन्वेस्ट करने है उससे हमेशा बचे रहना चाहिए. उस जगह पैसा इन्वेस्ट क्यों करें जहाँ से बापस मिलने का चांस नहीं है. इसलिए, हमेशा stock के व्यवहार को देखते रहना चाहिए और अस्थिर shares पर इन्वेस्ट करने से अपने आप को रोकना चहिये.

Resarch- अनुसंधान:

हमें shares लेने से पहले analysis और समझना फिर उसके बाद इन्वेस्ट करना एक ट्रेडर के लिए बेसिक सा step है. जिसे सभी को करना बहुत अनिवार्य है और बिना resarch के कोई भी बिज़नेस सफल नहीं होता है. (intraday trading kya hai)जब तब बिज़नेस करते समय भाग्य भी आपके पक्छ में ना हो क्योकि भाग्य भी कभी आपके साथ कृपा नहीं दिखता है तो बिज़नेस करने से पहले उसके बारे में resarch करना वेहद जरुरी है.

Trends-

कभी-कभी अकेले भटकने से बेहतर झुंड के साथ चलना बेहतर होता है. हमें सामान्य मार्किट में या फिर उस shares को सर्च करे, जिन्होंने ट्रेडर्स को अच्छा मुनाफा दिया है. जब भी share market में तेज से गिराबट आती है तब ट्रेडर्स को उन shares को तलाश करनी चाहिए जिनकी कीमत गिरती है, ट्रेडिंग क्या होती है? जब वह गिरते है तो आपके analysis के मुताबिक उनकी कीमत बढेगी.

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सेबी के नए मार्जिन नियम आज से लागू, यहां जानिए अपने हर सवाल का जवाब

कैश मार्केट में मार्जिन से जुड़े ने नियम 1 सितंबर से लागू हो गए हैं. सेबी ने इसे कुछ समय टालने की अपील ठुकरा दी है

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सेबी मार्जिन के दो तरह के नियमों को लागू करना चाहता है. पहला नियम कैश मार्केट में अपफ्रंट मार्जिन से संबंधित है.

मैं मार्जिन को पूरी तरह से नहीं समझता, क्या मुझे इसके बारे में विस्तार से बता सकते हैं?
मार्जिन का मतलब उस रकम से है, जो आपके ट्रेडिंग अकाउंट में होती है. सामान्य रूप से निवेशक को अपने ट्रेडिंग अकाउंट में जमा रकम से शेयर खरीदने की इजाजत होनी चाहिए. लेकिन, व्यवहार में मामला थोड़ा अलग है. कई ब्रोकिंग कंपनियां अपने क्लाइंट को शेयर खरीदने के लिए रकम उधार देती हैं. इसे लिवरेज या मार्जिन ट्रेडिंग कहते हैं. इंट्राडे ट्रेडिंग में यह ज्यादा देखने को मिलता है.

फिर, 1 सितंबर से क्या बदलने जा रहा है?
पहले हम यह समझते हैं कि शेयरों की डिलीवरी किस तरह होती है. अभी बाजार में डिलीवरी के लिए टी+2 (ट्रेडिंग प्लस दो दिन) मॉडल का पालन होता है. इसका मतलब है कि अगर आप सोमवार को शेयर खरीदते या बेचते हैं तो यह बुधवार को डेबिट या क्रेडिट होगा. इसी तरह शेयर का पैसा भी बुधवार को आपके अकाउंट में आएगा या उससे जाएगा. इस मॉडल में ब्रोकर्स क्लाइंट के अकाउंट में पैसा नहीं होने पर भी शेयर खरीदने की इजाजत देते हैं. यह इस शर्त पर किया जाता है कि आप पैसा टी+1 या टी+2 दिन में चुका देंगे.

अब सेबी ने जो ट्रेडिंग क्या होती है? नया नियम बनाया है, उसमें ब्रोकर को सौदे की कुल वैल्यू का 20 फीसदी क्लाइंट से अपफ्रंट लेना होगा. इसका मतलब यह है कि सौदे के वक्त क्लाइंट (रिटेल निवेशक) को 20 फीसदी रकम चुकाना होगा. उदाहरण के लिए अगर रिटेल निवेशक रिलायंस इंडस्ट्रीज के एक लाख रुपये मूल्य के शेयर खरीदता है तो ऑर्डर प्लेस करने से पहले उसके ट्रेडिंग अकाउंट में कम से कम 20,000 रुपये होने चाहिए. बाकी पैसा वह टी+1 या टी+2 दिन में या ब्रोकर के निर्देश के मुताबिक चुका सकता है. सेबी के नए नियम के मुताबिक शेयर बेचते वक्त भी आपके ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन होना चाहिए.

शेयर बेचने के लिए मेरे ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन क्यों होना चाहिए?
सेबी ने सोच-समझकर यह नियम लागू किया है. इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं. मान लीजिए आप सोमवार को 100 शेयर बेचते हैं. ये शेयर आपको अकाउंट से बुधवार को डेबिट होंगे. लेकिन, अगर आप मंगलवार (डेबिट होने से पहले) को इन शेयरों को किसी दूसरे को ट्रांसफर कर देते हैं तो सेटलमेंट सिस्टम में जोखिम पैदा हो जाएगा.

ब्रोकिंग कंपनियों के पास ऐसा होने से रोकने के लिए हथियार होते हैं. 95 फीसदी मामलों में ऐसा नहीं होता है. सेबी ने यह नियम इसलिए लागू किया है कि 5 फीसदी मामलों में भी ऐसा न हो.

यह नियम कुछ ज्यादा सख्त लगता है, क्या इसका कोई दूसरा तरीका नहीं है?
इसका दूसरा तरीका है. सेबी ने बगैर मार्जिन शेयर बेचने की इजाजत दी है. लेकिन, इसमें शर्त यह है कि ब्रोकर के पास ऐसा सिस्टम होना चाहिए, जिसमें शेयर बेचने के दिन वह शेयरों को क्लाइंट के अकाउंट से अपने अकाउंट में ट्रांस्फर कर लें. लेकिन, इसमें कुछ ऑपरेशनल दिक्कतें हैं.

इस नियम का बाजार पर क्या असर पड़ेगा?
विश्लेषकों और इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि नए नियमों से ट्रेडिंग वॉल्यूम घटेगा. लेकिन, कुछ लोगों का मानना है कि पिछले 25 साल में जब भी नए नियम लागू किए गए, बाजार ने उसके हिसाब से खुद को ढाल लिया. नए नियम बाजार में जोखिम घटाने और निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए लागू किए जाते हैं.

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क्या आप शेयर ट्रेडिंग के बारे में ये बातें जानते हैं?

आम तौर पर जब शेयर का भाव कम होता है या बाजार में कमजोरी होती है, तब शेयर खरीदने का सबसे अच्छा समय माना जाता है.

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आपको यह ध्यान में रखना होगा कि शेयरों में निवेश से काफी जोखिम जुड़ा होता है. अगर आप खुद कंपनियों के नतीजे समझने, उसके शेयरों का मूल्यांकन करने और बाजार की चाल समझ सकते सकते हैं तभी आपको शेयरों में सीधे निवेश करना चाहिए.

किसी कंपनी के शेयर में निवेश करने से पहले उसके कारोबार, शेयरों की सही कीमत (मूल्यांकन) और उसके कारोबार की संभावनाओं को जानना जरूरी है. शेयर बाजार में शेयरों के भाव स्थिर नहीं रहते. आम तौर पर जब शेयर का भाव कम होता है या बाजार में कमजोरी पर शेयर खरीदने के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है.

आपने जो शेयर खरीदा है, जब उसका दाम बढ़ जाए तो उसे आप बेच सकते हैं. शेयर मार्केट में ट्रेडिंग की शुरुआत बहुत कम रकम से की जा सकती है.

शेयर ट्रेडिंग कितने तरह के होते हैं?

1. इंट्रा-डे ट्रेडिंग (Intra Day Trading)
इंट्रा-डे ट्रेडिंग में एक ही दिन में शेयर खरीद कर उसे बेच दिया जाता है. मार्केट खुलने के बाद आप शेयर खरीदते हैं और मार्केट बंद होने से पहले उसे बेच देते हैं.
इसे डे-ट्रेडिंग, MIS (Margin Intra day Square off) आदि भी कहते हैं.

Intra Day ट्रेडिंग के लिए ब्रोकर आपके ट्रेडिंग अकाउंट में मौजूद रकम का 20 गुना आप को मुहैया कराता है. इसका मतलब यह है कि आप उधार रकम लेकर शेयर खरीद सकते हैं और उसी दिन बेच कर उसे वापस कर सकते हैं. यह वास्तव में वैसे निवेशकों के लिए जिन्हें बाजार की बहुत ज्यादा समझ होती है.

2. स्कैल्पर ट्रेडिंग ( Scalper Trading)
यह शेयर ट्रेडिंग का ऐसा तरीका है, जिसमें शेयर को खरीदने के 5-10 मिनट के अंदर ही बेच दिया जाता है. स्कैल्पर ट्रेडिंग किसी कानून के आने या आर्थिक जगत की किसी बड़ी खबर आने पर की जाती है.

शेयर मार्केट के पुराने दिग्गज स्कैल्पर ट्रेडिंग करते हैं. इसमें जोखिम सबसे ज्यादा होता है. स्कैल्पर ट्रेडिंग के लिए ब्रोकर कंपनियां मार्जिन मुहैया कराती हैं.

3. स्विंग ट्रेडिंग (Swing Trading) या शार्ट टर्म ट्रेडिंग
स्विंग ट्रेडिंग थोड़े लंबे समय के लिए किया जाता है. इसमें आम तौर पर शेयर खरीदने के बाद उसकी डीमैट अकाउंट में डिलीवरी ले ली जाती है. स्विंग ट्रेडिंग के लिए ब्रोकर कोई मार्जिन मुहैया नहीं कराता है.

अगर आप अपने निवेश के लक्ष्य के हिसाब से 5-10 % लाभ की उम्मीद पर शेयर बाजार में ट्रेडिंग कर रहे है, तो स्विंग ट्रेडिंग से आप पैसे कमा सकते हैं.

4. LONG TERM ट्रेडिंग
जब आप ट्रेडिंग क्या होती है? किसी शेयर को खरीद कर लंबी अवधि के लिए रख लेते हैं तो उसे Long term ट्रेडिंग कहते हैं. स्टॉक मार्केट में ट्रेड करने के बाद अगर आप एक निवेशक के रूप में किसी शेयर में 6 महीने से लेकर कुछ साल तक बने रहें तो यह लॉन्ग टर्म ट्रेडिंग है.

अगर आप किसी कंपनी के शेयर को एक, तीन या पांच साल या इससे ज्यादा अवधि के लिए खरीदते सकते हैं. कंपनी के कारोबार में अगर तेजी से वृद्धि हो तो लॉन्ग टर्म ट्रेडिंग में आप बहुत अच्छा लाभ कमा सकते हैं.

आप जिन बड़े निवेशकों के बारे में सुनते हैं वे सभी लॉन्ग टर्म ट्रेडिंग से ही मुनाफा कमाते हैं. इनमें राकेश झुनझुनवाला, पोरिन्जू वेलियथ, डॉली खन्ना जैसे नाम शामिल हैं.

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शेयर बाजार में निवेश करने के लिए जरूरी हैं ये दो अकाउंट, जानिये डीमैट अकाउंट और ट्रेडिंग अकाउंट में क्या अंतर है?

ब्रोकिंग फर्म ट्रेडिंग की सुविधा के लिए तीन अकाउंट को लिंक करता है। पहला Demat Account दूसरा Trading Account और तीसरा Bank Account। ट्रेडिंग अकाउंट से ऑर्डर दिए जाते हैं। Demat Account सिक्योरिटी और बैंक अकाउंट कैश की जिम्मेदारी रखता है

नई दिल्‍ली, ब्रांड डेस्‍क। आज के माहौल में सिर्फ पारंपरिक निवेश के विकल्पों जैसे फिक्स्ड डिपॉजिट, पोस्ट ऑफिस की छोटी बचत योजनाएं, पब्लिक प्रोविडेंट फंड पर निर्भर रहना बेवकूफी है। बढ़ती महंगाई ना सिर्फ आपका मुनाफा खा रहा है बल्कि आपकी बचत में सेंध लगा रहा है। ऐसे में निवेशक को निवेश का ऐसा विकल्प चुनना चाहिए जो ना सिर्फ महंगाई को मात दे सके बल्कि आपको भविष्य को भी सुरक्षित कर सके। निवेश का यह विकल्प है स्टॉक मार्केट। तकनीक के इस दौर में शेयर बाजार में निवेश बहुत आसान हो गया। एक डीमैट अकाउंट खोलकर आप बाजार में ट्रेडिंग शुरू कर सकते हैं। बैंक खाते की तरह इसमें आपके शेयर जमा होते हैं।

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कैसे होती है सिक्योरिटी की खरीद और बिक्री

ब्रोकिंग फर्म ट्रेडिंग की सुविधा के लिए तीन अकाउंट को लिंक करता है। पहला Demat Account, दूसरा Trading Account और तीसरा Bank Account। ट्रेडिंग अकाउंट से ऑर्डर दिए जाते हैं। Demat Account सिक्योरिटी और बैंक अकाउंट कैश की जिम्मेदारी रखता है। निवेश काफी अहम प्रक्रिया ट्रेडिंग क्या होती है? होती है और उसमें बड़े पैमाने पर कैश का इस्तेमाल होता है इसलिए तीनों चरणों को अलग अलग रखा गया है। जब कोई निवेशक कारोबार करना चाहता है तो पहले वो कैश को बैंक खाते से रिलीज करता है, जिसके बाद इस रिलीज की गई रकम के आधार पर ट्रेडिंग अकाउंट से ऑर्डर दिए जाते हैं। ऑर्डर पूरा होने पर खरीदी गई सिक्योरिटी को Demat Account में सुरक्षित कर लिया जाता है। वहीं बिक्री की स्थिति में पहले निवेशक डीमैट अकाउंट में उन सिक्योरिटी को चुनता है जिसे उसे बेचना हो, इसका बाद Trading Account में ऑर्डर का विकल्प दिखता है। शेयर की बिक्री का ऑर्डर ट्रेडिंग अकाउंट से दिया जाता है। डील पूरी होने पर डीमैट अकाउंट से सिक्योरिटी रिलीज कर उस अकाउंट में ट्रांसफर हो जाती है जिसने इन सिक्योरिटी को खरीदा है और वहां से मिला पैसा सिक्योरिटी बेचने वाले निवेशक के बैंक खाते में ट्रांसफर हो जाता है। देखने में ये काम काफी पेचीदा लगता है, लेकिन इसकी जिम्मेदारी ब्रोकर्स और डिपॉजिटरी के हाथ में होती है। निवेशक सिर्फ कुछ जानकारी भर कर और कुछ विकल्पों का चुनाव कर ये प्रक्रिया मिनटों में पूरी कर सकता है।

Stock Market Investment Stock Split Bonus Share

डीमैट अकाउंट क्या है

जहां आपके शेयर और निवेश कागजात डिजिटल रूप में रखे जाते हैं

ट्रेडिंग अकाउंट क्या है

इसके जरिए आप ट्रेडिंग कर सकते हैं, सिक्योरिटी खरीद सकते हैं, निवेश कर सकते हैं और ये डीमैट अकाउंट से लिंक होता है।

डिपॉजिटरी क्या होते हैं

डिपॉजिटरी वो संस्थाएं होती हैं जहां निवेशकों के सभी निवेश डॉक्यूमेंट सुरक्षित होते हैं। देश में दो डिपॉजिटरी हैं जिन्हें एनएसडीएल और सीडीएसएल के रूप में जाना जाता है। इन संस्थाओं के साथ डिपॉजिरी पार्टिसिपेंट यानि डीपी जुड़े होते हैं जिन्हें हम शेयर ब्रोकर के रूप में भी जानते हैं। ये ग्राहकों को सेवाएं देते हैं और एनएसडील या सीडीएसएल और आम निवेशकों के बीच लिंक का काम करते हैं। उदाहरण के लिए एनएसडील के जुड़े डीपी या Broking फर्म अपने ग्राहकों के लिए डीमैट अकाउंट खोलते हैं और इन ग्राहकों के निवेश डिजिटल रूप में NSDL में डिपॉजिट होते हैं। वहीं CDSL के साथ जुड़े डीपी अपने ग्राहकों को डीमैट की सुविधा देते हैं और इन निवेश दस्तावेजों को सीडीएसएल के पास सुरक्षित रखते हैं। ध्यान रखें कि डीमैट खाते डिपॉजटरी खोलती है, ब्रोकिंग फर्म या डीपी इसके लिए एक माध्यम होते हैं। जो कि आपको ट्रेडिंग और डीमैट अकाउंट की सुविधा देते हैं। 5paisa भी आपके लिए बिना शुल्क, बेहद कम समय में Demat Account खोलता है और साथ ही ब्रोकरेज के लिए आकर्षक दरें भी ऑफर करता है। तो आज ही 5paisa।com पर अपना Demat Account खोलें!

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