विदेशी मुद्रा क्लब

अंतरराष्ट्रीय व्यापार के फायदे

अंतरराष्ट्रीय व्यापार के फायदे

अंग्रेजी से फायदा कम, नुकसान ज्यादा

देश के लोग अपनी भाषा सीखें या न सीखें। उन भाषाओं के जरिये उन्हें काम-काज मिले या न मिले। परंतु कायदा यह हो कि उन्हें अंग्रेजी सीखनी ही होगी वरना वे शिक्षित नहीं माने जाएंगे। उन्हें ऊंची नौकरियां नहीं मिलेंगी, इसे आप क्या कहेंगे? क्या यह महामूर्खता नहीं है?

इस समय देश में एक पुरानी बहस फिर चल पड़ी है। अंग्रेजी से देश को फायदा हुआ है या नुकसान? मेरा निवेदन है कि अंग्रेजी से फायदा कम हुआ और नुकसान ज्यादा। किसी भी नई भाषा को सीखने से फायदा ही होता है। यदि वह भाषा अंतरराष्ट्रीय व्यापार के फायदे विदेशी हो तो और ज्यादा फायदा हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार, कूटनीति, व्यवसाय, ज्ञान-विज्ञान और सम्पर्क की नई खिड़कियां खुलती हैं। भारत के तीन-चार प्रतिशत लोग कामचलाऊ अंग्रेजी जानते हैं। इसका उन्हें फायदा जरूर मिला है। नौकरियों में उनका बोलबाला है। व्यापार व समाज में उनका वर्चस्व है। वे भारत के नीति-निर्माता व भाग्य-विधाता हैं। 125 करोड़ के इस देश को ये ही चार-पांच करोड़ लोग चला रहे हैं। अंग्रेजीदां लोग प्राय: शहरों में रहते हैं, तीन-चार हजार कैलोरी का स्वादिष्ट और पोषक भोजन रोज करते हैं। साफ-सुथरे चकाचक वस्त्रों और आभूषणों से लदे-फदे रहते हैं। उन्हें चिकित्सा, मनोरंजन और सैर-सपाटे की अंतरराष्ट्रीय व्यापार के फायदे सभी सुविधाएं उपलब्ध रहती हैं। उनके बच्चे अंग्रेजी माध्यम के महंगे स्कूलों में पढ़ते हैं।

तो क्या यह भारत का नुकसान है? इस प्रश्न का उत्तर यह प्रश्न है कि गिलास कितना भरा है? एक गिलास में 125 ग्राम पानी आ सकता है। यदि उसमें सिर्फ पांच ग्राम पानी भरा हो तो आप उसे क्या कहेंगे? वह भरा है या खाली है? 125 करोड़ के देश में सिर्फ चार-पांच करोड़ लोगों के पास सारी सुविधाएं, सारी समृद्धि, सारे अधिकार, सारी शक्तियां जमा हो जाएं तो इसे आप क्या कहेंगे? क्या यह सारे देश का फायदा है? नहीं, यह उस छोटे से चालाक भद्रलोक का फायदा है, जिसने अंग्रेजी का जादू-टोना चलाकर भारत में अपने स्वार्थों का तिलिस्म खड़ा कर लिया है। अंग्रेजी को शिक्षा और नौकरियों में अनिवार्य बनाकर उसने करोड़ों ग्रामीण, गरीब, पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों और महिलाओं को संपन्नता और सम्मान से वंचित कर दिया है। गांधी के सपने को चूर-चूर कर दिया है।

मैं अंग्रेजी सीखने या इस्तेमाल करने का विरेाधी नहीं हूं। किसी भी विदेशी भाषा को सीखने अंतरराष्ट्रीय व्यापार के फायदे का विरोध कोई मूर्ख ही कर सकता है। लेकिन देश के लोग अपनी भाषा सीखें या न सीखें, उन भाषाओं के जरिये उनको नौकरियां या काम-काज मिलें या न मिलें, परंतु कायदा यह हो कि उन्हें अंग्रेजी सीखनी ही होगी, वरना वे शिक्षित नहीं माने जाएंगे और उन्हें कोई ऊंचा काम-काज या नौकरियां नहीं मिलेंगी, इसे आप क्या कहेंगे? क्या यह महामूर्खता नहीं है? इस नीति का आज कोई भी दल या नेता डंके की चोट पर विरोध करता दिखाई नहीं देता। हमारे नेताओं को यह समझ ही नहीं है कि किसी आधुनिक, समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र के निर्माण में स्वभाषा की भूमिका क्या होती है।

इस समझ के अभाव में ही आजादी के 65 वर्षों बाद भी हमारी शिक्षा, नौकरशाही, राज-काज, खबरपालिका, न्यायपालिका और यहां तक कि संसद में भी अंग्रेजी का बोलबाला है। अंग्रेजी के इस वर्चस्व ने देश का भयंकर नुकसान किया है। भारत के अभाव, अज्ञान, अन्याय, असमानता और अत्याचार के कई कारणों में से एक अत्यंत खतरनाक कारण अंग्रेजी भी है। यह अत्यंत खतरनाक इसलिए है कि यह अदृश्य है। यह आतंकवादियों के बम-गोलों की तरह तहलका नहीं मचाती। यह मीठे जहर की तरह भारत की नसों में फैलती जा रही है। यदि हम अब भी सावधान नहीं हुए तो 21 वीं सदी के भारत को यह खोखला किए बिना नहीं छोड़ेगी।

अंग्रेजी के वर्चस्व के कारण आजाद भारत को सबसे पहला नुकसान तो यह हुआ कि वह दुनिया की अनेक महान भाषाओं जैसे फ्रांसीसी, जर्मन, हिस्पानी, चीनी, जापानी, रूसी, स्वाहिली आदि से कट गया। दुनिया के सारे ज्ञान-विज्ञान का ठेका अंग्रेजी को दे दिया और उसका पिछलग्गू बन गया। उसकी दुनिया सिकुड़ गई। क्या कोई सिकुड़ा हुआ पिछलग्गू देश महाशक्ति बन सकता है? अब तक जितने राष्ट्र महाशक्ति बने हैं, अपनी भाषा के दरवाजे से बने हैं और उन्होंने एक नहीं, विदेशी भाषाओं की अनेक खिड़कियां खोल रखी हैं।

दूसरा बड़ा नुकसान अंग्रेजी ने यह किया कि उसने देश की महान भाषाओं को एक-दूसरे से दूर कर दिया। देश के स्वार्थी भद्रलोक ने उसे राष्ट्रीय संपर्क भाषा घोषित कर दिया। यह देश की बुनियादी सांस्कृतिक एकता पर गंभीर प्रहार है।
तीसरा, नुकसान यह कि अंग्रेजी के कारण भारत में आज तक, अशिक्षा का साम्राज्य फैला हुआ है। सबसे ज्यादा बच्चे अंग्रेजी में फेल होते हैं। हर साल 22 करोड़ बच्चे प्राथमिक शालाओं में पढ़ते हैं लेकिन अंग्रेजी की अनिवार्यता के कारण 40 लाख से भी कम स्नातक बनते हैं। जर्मनी, फ्रांस, जापान, इंग्लैंड, ईरान आदि देशों में पढ़ाई स्वभाषा में होती है इसलिए वहां शत-प्रतिशत साक्षरता है। चौथा, अंग्रेजी के कारण भारत दो टुकड़ों-भारत और इंडिया- में बंटा हुआ है।

अंग्रेजीदां इंडिया का नागरिक एक हजार रु. रोज पर गुजारा कर रहा है और भारत का नागरिक सिर्फ 27 और 33 रु. रोज पर। यदि अंग्रेजी अनिवार्य न हो तो गरीब और ग्रामीण बच्चों को भी अवसरों की समानता मिलेगी।
पांचवां, भारतीय लोकतंत्र इसलिए गैर-जवाबदेह बन गया है कि उसके कानून, उसकी नीतियां, उसका क्रियान्वयन सब कुछ अंग्रेजी में होता है। जनता के चुने हुए सांसद और विधायक सदनों में अंग्रेजी बोलते हैं। गांधीजी ने कहा था कि आजादी के छह माह बाद भी जो ऐसा करेगा, उसे मैं गिरफ्तार करवा दूंगा।

छठा, ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भारत नकलची बना हुआ है। यहां मौलिक शोध करने की बजाय छात्र अंग्रेजी का रट्टा लगाने में अपनी ताकत नष्ट करता है। पश्चिम की नकल करके हम उन्नत जरूर हुए हैं लेकिन उनकी तरह हम भी स्वभाषा में काम करते तो शायद उनसे आगे निकल जाते। सातवां, हमारी अदालतों में तीन-चार करोड़ मुकदमे बरसों से क्यों लटके हुए हैं? मूल कारण अंग्रेजी ही है। कानून अंग्रेजी में, बहस अंग्रेजी में और फैसला भी अंग्रेजी में। सब कुछ आम आदमी के सिर पर से निकल जाता है। यदि आज़ाद भारत अंग्रेजी के एकाधिकार को भंग करता और कई विदेशी भाषाओं को सम्मान देता तो आज हमारा व्यापार कम से कम दस गुना होता। स्वभाषाओं को उचित स्थान मिलता तो हम सचमुच आधुनिक, शक्तिशाली, समृद्ध, समतामूलक और सच्चे लोकतांत्रिक राष्ट्र बनते। जितना नुकसान अब तक हुआ, उससे कम होता।

भारत में विदेश व्यापार पर निबंध

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विभिन्न देशों के बीच किये जाने वाले व्यापार विदेशी व्यापार के रूप में समझा जा सकता है। देश के बाहर वस्तुओं और सेवाओं की खरीद और बिक्री को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहा जाता है। इसे विदेशी व्यापार के रूप में भी जाना जाता है। अंतर्राष्ट्रीय या विदेशी व्यापार में भाग लेने वाले सभी देश, विदेश से उन वस्तुओं और सेवाओं का आयात करते हैं जो वे उत्पादन करने के लिए कम कुशल हैं या बिल्कुल भी उत्पादन नहीं कर सकते हैं। इसी प्रकार, वे उन वस्तुओं के उत्पादों का निर्यात करते हैं, जो श्रम शक्ति की विशेषता के कारण उनमे अधिक कुशल हैं। किसी देश की आर्थिक उन्नति की प्रक्रिया को तेज करने में विदेशी व्यापार का महत्वपूर्ण भूमिका होता है।भारत के विदेशी व्यापार की उत्पत्ति सिंधु घाटी सभ्यता की से चला आ रहा है।

हालाँकि, विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने के संगठित प्रयास स्वतंत्रता के बाद ही किए गए, जिसकी शुरुआत आर्थिक नियोजन की नीतियों के साथ हुई थी । भारतीय आर्थिक नियोजन निति को पाँच दशक पूरे हो गए है | इस दौरान, भारत के विदेशी व्यापार के मूल्य, संरचना और दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। अर्थव्यवस्था को अधिक मजबूत बनाने के लिए व्यापार और सामाजिक क्षेत्र के संबंध में सुधारों की एक पहल शुरू की गई थी।

भारत तेजी से एक वैश्विक नेता के रूप में उभर रहा है, जो अपने विशाल प्राकृतिक संसाधनों और कुशल जनशक्ति पर निर्भर है।भारतीय उत्पादों और सेवाओं को आज विश्व स्तर पर प्रतियोगिता मुल्क के रूप में देखा जाता है।अत्याधुनिक तकनीक के साथ संयुक्त, भारतीय व्यापार बाजार दुनिया भर में अपनी उपस्थिति का लोहा मनवा रहा है। अधिकांश देशो में व्यापार की सुधारों की तरह भारत ने भी व्यापार व्यवस्थाओं को उदार बनाने और शुल्क में कटौती पर अच्छी प्रगति की है।

भारत में होने वाले व्यापार और अन्य सुधारों का उल्लेख किया गया है। व्यापारिक दृष्टि से माना गया है कि सम्पूर्ण आर्थिक विकास और गरीबी को मिटने के लिए मजबूत निर्यात महत्वपूर्ण हैं। निर्यात-आधारित विकास इसी कारण से भारत में व्यापार एक महत्वपूर्ण ताकत बन गया है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ, भारत ने अमेरिका और यूरोपीय संघ के बाजारों में मजबूत निर्यात की बढ़ोतरी दर्ज की है। भारतीय सरकार अतिरिक्त सुधारों को लागू करने और महत्वपूर्ण बाधाओं को दूर करने का प्रयास कर रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारतीय व्यापार, विकास का समर्थन और गरीबों को लाभ पहुंचा सके। व्यापार सुधारों के साथ विकास के तरफ बढ़ना अधिक जटिल हो गया है क्योंकि इन सुधारों का रोजगार, आय वितरण, गरीबी पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका आंकलन भी बहुत ज़रूरी है। भारतीय व्यापार बाजार ने विश्व के साथ मिलकर एक साथ काम करने में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की है।

व्यापर के मामले में भारत उतना ही मजबूत है जितना कोई और देश । इसके कई कारण उल्लेखनीय है जैसे बुनियादी ढांचे में तेजी से सुधार, कई जिम्मेदारियों को एक साथ करने की क्षमता और उच्च गतिविधियों का समर्थन करने की हमारी अचूक क्षमता है।

विदेश व्यापार के प्रकार:

विदेशी व्यापार को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

जब किसी विदेशी देश से सामने की खरीदारी की जाता है, तो उसे आयात व्यापार के रूप में जाना जाता है।

  • निर्यात व्यापार:

जब सामान दूसरे देशों को बेचा जाता है, तो इस तरह के व्यापर को निर्यात व्यापार कहा जाता है।

  • एंट्रपोट व्यापार:

कभी-कभी एक देश से दूसरे देशों में निर्यात करने के उद्देश्य से माल आयात किया जाता है, इसे एंट्रपोट व्यापर कहा जाता है।

विदेश व्यापार के लाभ:

  1. प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग:

विदेशी व्यापार प्राकृतिक संसाधन के उचित उपयोग प्रदान करता है। अधिक मात्रा में प्राकृतिक संसाधन रखने वाले देश अन्य देशों में कच्चे माल, निर्मित माल या अर्ध-निर्मित माल का निर्यात या बिक्री करके अपने व्यवसाय का विस्तार कर सकते हैं।

  • जीवन स्तर में सुधार:

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विभिन्न देशों में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार करता है। दुनिया के देशों के बीच सामानों के आदान-प्रदान से जीवन स्तर ऊँचा होता है।

  • सभी प्रकार की वस्तुओं की उपलब्धता:

विदेश व्यापार ऐसे देश के लोगों को वस्तुएं प्रदान करता है जो उस देश में आर्थिक रूप से उत्पादित नहीं हो सकते हैं।

  • कीमतों में स्थिरता:

विदेशी व्यापार दुनिया भर में वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता लाता है। विदेशी व्यापार के अभाव में यह संभव नहीं है।

  • अधिक उत्पादन का निर्यात:

विदेशी व्यापार अधिक उत्पादन को निर्यात करने की सुविधा देता है। इस प्रकार संसाधनों को नष्ट होने से बचाया जाता है।

निष्कर्ष :

विदेशी व्यापार में कई चुनौतियां हैं। भारत ने मजबूत विदेशी व्यापार नीतियों को बनाया है और समय-समय पर इनका सुधार किया है | विदेश व्यापार बढ़ोतरी और विकास को बढ़ाने में सहायता करता है।भारत के दुनिया के सभी विकसित देशों के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध हैं। यह भारत की वित्तीय स्थिति को बढ़ा रहा है।

कमिटमेंट पर खरा उतरें और साख को बनाए रखें

आगरा के उद्यमियों ने निर्यातक बनने के गुर सीखे। नेशनल चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स की तरफ से कार्यशाला का आयोजन किया गया था।

आगरा. आगरा के उद्यमियों ने बुधवार को निर्यातक बनने के गुर सीखे। नेशनल चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स की तरफ से एक कार्यशाला का आयोजन किया गया था, जिसमें उन्हें निर्यातक बनने के फायदे बताए गए।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विदेश व्यापार के संयुक्त महानिदेशक मानवेन्द्र सिंह ने कहा कि अपने देश में व्यापार करने से ज्यादा आसान है अंतरराष्ट्रीय व्यापार करना। बशर्ते हम इसकी बारीकियों को समझें और उसका पालन करें। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार की सबसे पहली शर्त है कमिटमेंट पर खरा उतरना। जिस समय पर खरीदार को प्रोडक्ट उपलब्ध कराने का वादा करें उसे जरूर पूरा करें, क्योंकि इंटरनेशनल मार्केट में स्टोरेज की समस्या है। दूसरी सबसे अहम शर्त है अपनी साख को बनाए रखें। खरीदार से चीटिंग नहीं करें। ऐसा करने से न केवल उस व्यक्ति की बल्कि पूरे इलाके की छवि प्रभावित होती है। उदाहरण देते हुए कहा कि पूर्व में आगरा के एक जूता निर्यातक ने एक जूता सात नंबर का तथा दूसरा जूता आठ नंबर का सप्लाई कर दिया था। इसी प्रकार आगरा के ही एक अन्य निर्यातक ने एक जूता काला तथा दूसरा जूता ब्राउन कलर का सप्लाई कर दिया। इस तरह की लापरवाही का खामियाजा सिर्फ उस निर्यातक को ही नहीं पूरे शहर को भुगतना पड़ता है। बायर उस स्थान के किसी भी बने हुए प्रोडक्ट को खरीदने से परहेज करता है।

मानवेन्द्र सिंह ने निर्यात को प्रोत्साहित करनेवाली योजनाओं को भी विस्तार से बताया। कहा, खटमल की तरह इन सरकारी योजनाओं का लाभ लें। इससे आपके प्रोडक्ट की कीमत कम होगी और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में ज्यादा मुनाफा दिलाएगी। उन्होंने कहा कि भारत ने कई देशों के साथ मुक्त व्यापार की संधि कर रखी है। यह व्यापार किन देशों के साथ हो रहा है, इसकी पूरी जानकारी रखें। एमएसएमई की तरफ से आए वीरेन्द्र सिंह ने भी निर्यात संवर्धन के क्षेत्र में प्रदेश सरकार की योजनाओं की जानकारी दी।

फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्टर्स ऑर्गेनाइजेशन (फियो) से आए आलोक श्रीवास्तव ने केन्द्र सरकार की विदेश व्यापार संबंधी नीतियों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हमें एकलव्य और अर्जुन की तरह अपने लक्ष्य पर ही ध्यान रखना होगा तभी सफलता मिलेगी। श्रीवास्तव ने कहा कि सरकार को दोष देने की बजाय खुद को तैयार करें। उन्होंने विश्व व्यापार में भारत की स्थिति का तुलनात्मक ब्यौरा भी पेश किया।

कार्यक्रम के दौरान कई पुराने निर्यातकों ने अपने अनुभव शेयर किए। आगरा के प्रसिद्ध सॉफ्टवेयर निर्यातक शैलेन्द्र बंसल ने बताया कि इंजीनियरिंग करने के बाद सबसे पहले वे हार्डवेयर का काम करते थे। इसी दौरान आगरा में एक एसएसपी विश्वकर्मा आए, जिन्होंने मुझसे इटावा के डकैत को पकडऩे के लिए मदद मांगी। एसएसपी के अंतरराष्ट्रीय व्यापार के फायदे मुताबिक जीपीएस डिवाइस लगे कंप्यूटर से डाकू को आसानी से पकड़ा जा सकता था। उनके कहने पर मैंने जीपीएस डिवाइस बनाई, जिससे डकैत पकड़ा गया। इसके बाद मेरा हौसला बढ़ गया। हार्डवेयर के साथ-साथ सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में कदम रख दिया। विदेशों में भी खरीदारों की तलाश में गया। मेरी कंपनी आज साफ्टवेयर के क्षेत्र में अग्रणी है। उन्होंने कहा कि विदेशों में भारत की साख अच्छी है। साफ्टवेयर के क्षेत्र में भारत चीन से काफी आगे है। इसका लाभ भारतीय उद्यमियों को उठाना चाहिए। बंसल की संघर्षभरी कहानी को सुनकर सभागार में बैठे सभी लोगों ने ताली बजाकर स्वागत किया।

चैंबर अध्यक्ष भुवेश कुमार अग्रवाल, राजेश, अवनीश कौशल, संजय गोयल, सीताराम अग्रवाल, सोहन लाल जैन, अमर मित्तल, मनीष अग्रवाल, वीरेन्द्र गुप्ता, सुरेश चंद्र बंसल, अमित अग्रवाल सहित काफी संख्या में उद्यमी मौजूद थे।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले मेंलोकल फॉर वोकल का सपना हो रहा है साकार

अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले मेंलोकल फॉर वोकल का सपना हो रहा है साकार

आर्थिक उदारीकरण के बाद ग्लोबलाइजेशन और आईटी क्रांति से कारोबार का जो नया ट्रैंड औनलाइन चला था उसे भी कोविड-19 बहुत हद तक प्रभावित किया . कोविड-19 अंतरराष्ट्रीय व्यापार के फायदे से एक सबक और मिला कि महामारी संकट के दौर में जो कुछ आपके और आपके आसपास है वही आपका सहारा है .

अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला इस अर्थ में जरूरी हो जाता है कि इस वर्ष राष्ट्र में आजादी का अमृत महोत्सव भी मनाया जा रहा है . अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला की अपनी विशिष्ट पहचान है और समूचे राष्ट्र की झलक इस व्यापार मेले में देखने को मिल जाती है . यह बोलना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला दिल्ली में देशी विदेशी दर्शकों को मिनी हिंदुस्तान की झलक कराता है . इस बार खास बात यह है कि लोकल, वोकल और ग्लोबल को इस मेले में साकार किया जा रहा है . आयोजकों का बोलना है कि इस दफा व्यापार मेले में 95 फीसदी उत्पाद स्वेदशी या यों कहें के राष्ट्र में ही बने हुए उत्पाद मिल रहे हैं . इसका सीधा सीधा अर्थ हो जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में लोकल फोर वोकल की थीम साकार हो रही है तो देशी विदेशी दर्शकों को यह उत्पाद भा भी खूब रहे हैं . इसे स्वदेशी या यों कहें कि लोकल को प्रोत्साहित करने का प्रमुख माध्यम बताया जा सकता है तो यह भी साफ हो जाता है कि देशवासी स्वदेशी उत्पादों को भी हाथोंहाथ लेते हैं .

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मई, 2020 में देशवासियों के नाम अपने संबोधन में 20 लाख करोड़ का पैकेज देने की घोषणा के साथ ही लोकल, वोकल और ग्लोबल का संदेश दिया था तब लोगों ने यह नहीं सोचा था कि इस संदेश का असर इतने गहरे तक जाएगा और बहुत कम समय में यह समूचे राष्ट्र की आवाज बन जाएगा . असल में कोविड-19 के दौर में अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बदल के रह गई है तो चीन का मुकाबला लोकल के लिए वोकल होकर ही किया जाना संभव माना गया . हालांकि राष्ट्र में चीनी उत्पादों के विरूद्ध जबरदस्त माहौल बना है पर आंकड़ों में बात करें तो अभी भी चीन से निर्यात के आंकड़े नीचे नहीं आये हैं . इसके लिए अभी राष्ट्र में बहुत कुछ किया जाना महत्वपूर्ण है . दरअसल कोविड-19 के दौर में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना भी गवर्नमेंट के सामने बड़ी चुनौती हो गई थी . सबकुछ बदल के रख दिया था कोविड-19 ने समूची दुनिया में .

देखा जाए तो आर्थिक उदारीकरण के बाद ग्लोबलाइजेशन और आईटी क्रांति से कारोबार का जो नया ट्रैंड औनलाइन चला था उसे भी कोविड-19 बहुत हद तक प्रभावित किया . कोविड-19 से एक सबक और मिला कि महामारी संकट के दौर में जो कुछ आपके और आपके आसपास है वही आपका सहारा है . हालांकि यह भी हमारी अर्थव्यवस्था की खूबसूरती ही मानी जानी चाहिए कि क्षेत्रीय स्तर पर छोटे-छोटे कुटीर उद्योग हमारी परंपरा से चलते आये हैं . इसके साथ ही औद्योगिकरण के दौर में क्षेत्रीय स्तर पर जो औद्योगिक क्षेत्र विकसित हुए वे क्षेत्रीय जरूरतों खासतौर से खाद्य सामग्री की आपूर्ति में पूरी तरह से सफल रहे और यही कारण रहा कि सब कुछ थम जाने के बावजूद राष्ट्र में कही भी खाद्य सामग्री की सप्लाई चेन नहीं टूटी . यहां तक कि हम दुनिया के कई राष्ट्रों के लिए दवा की आपूर्ति करने में सफल रहे . साथ ही कोविड-19 का टीका मौजूद कराकर हिंदुस्तान की साख को और अधिक मजबूत किया . यह अपने आप में बड़ी बात है .

मई 2020 के पीएम के संदेश में क्षेत्रीय उत्पादों को अपनाने का संदेश देने के साथ ही उसकी आवाज बनने का यानि कि उसके प्रचार-प्रसार में सहभागी बनने का संदेश भी दिया था . इसी तरह से अब अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में क्षेत्रीय उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचा कर यह साफ कर दिया है कि बदलते दौर में स्वदेशीकरण समस्याओं के निवारण का बड़ा माध्यम है . इससे निश्चित रूप से विदेशी का मोह भी कम होगा . याद कीजिए, महात्मा गांधी की 150वीं जयंती कार्यक्रम और उसके बाद जयपुर में आयोजित ग्लोबल खादी कांफ्रेंस में राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने खादी को अपनाने का संदेश दिया था . इसी तरह से ग्लोबल खादी कांफ्रेंस में ही उन्होंने दुनिया के कई राष्ट्रों के प्रतिनिधियों के सामने गांधी दर्शन और गांधी जी के स्वदेशी को अपनाने का संदेश दिया और ग्रामोद्योग को अपनाने के लिए कहने के साथ ही खादी उत्पादों पर 50 फीसदी तक की छूट दी . सियासी प्रतिबद्धता का ही रिज़ल्ट है कि आज राष्ट्र और विदेश में खादी ब्राण्ड बनकर उभरी है और खादी लोगों की पसंद बनने लगी है .

एक बात और लोगों की सोच और परख में तेजी से परिवर्तन आया है . जानकारों के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में लकड़ी और मिट्टी के बने उत्पादों की जबरदस्त मांग देखी जा रही है . यह प्रकृति से जुड़ने और पर्यावरण के प्रति सजगता की पहचान है . लोग पुरानों की ओर लौट रहे हैं तो लोकल उत्पादक पुरानों में ही नएपन का छोंकन लगा कर बाजार में उतार रहे हैं . यानि कि समय के मुताबिक उनमें परिवर्तन कर रहे हैं डिजाइन और आज की जरूरत के अनुसार . लोक जूट के उत्पाद खरीद रहे हैं तो जड़ी बूटियों पर भी विश्वास बढ़ा है . मिट्टी और लकड़ी के बरतन तथा खिलौने आम होते जा रहे हैं . देखा जाए तो यह लोकल के लिए वोकल नहीं बल्कि प्रकृति से जुड़ाव का भी माध्यम बनता जा रहा है .

बदलते हालातों में राष्ट्र के सामने नए अवसर आए हैं . आज एक बार फिर क्षेत्रीय उत्पादों को अपनाने और उनकी ग्लोबल पहचान बनाने की जरूरत है . नयी परिस्थितियों में दुनिया के राष्ट्रों का चीन से लगभग मोहभंग हो गया है . यह राष्ट्र और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लिए नया अवसर है . ऐसे में स्वदेशी तकनीक के आधार पर औद्योगिकरण को नयी दिशा देनी होगी . निश्चित रूप से इससे आर्थिक क्षेत्र में दूसरे राष्ट्रों पर निर्भरता कम होने के साथ ही राष्ट्र में आत्मनिर्भरता आएगी और दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनने का सपना पूरा होगा . युवाओं को रोजगार मिलेगा तो लोकल को ग्लोबल होने में देर नहीं लगेगी .

रेटिंग: 4.45
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 478
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा| अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *