आपको कैसे पता चलेगा कि बाजार में तेजी है या मंदी

6. आपूर्ति की बाधाओं से निपटना चाहिए (वे उच्च मुद्रास्फीति के मुख्य कारणों में से एक हैं क्योंकि इससे जमाखोरी होती है).
कोरोना वायरस का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव ?? क्या मंदी आने वाली है ?
भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अर्थव्यवस्था आपको कैसे पता चलेगा कि बाजार में तेजी है या मंदी का जहां तक सवाल है उसमें हर एक छोटे-बड़े व्यवसायी, कर्मचारी, किसान सबका योगदान है अब कोरोना वायरस के चलते लोग घरों में कैद हैं और खरीदी में भी कमी आई है ढेर सारे बिज़नस भी घाटे में जा रहे हैं तो क्या हमारा देश मंदी की तरफ बढ़ रहा है अगर हाँ तो इसके क्या प्रभाव होंगे सामान्य जनमानस पर और क्या इसे टाला जा सकता है ? अगर हाँ तो कैसे ? और फिर भी अर्थव्यवस्था पर इसके क्या प्रभाव होंगे इस पोस्ट में हम इसी बात पर चर्चा करने वाले हैं |
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- कोराना वायरस के कारण आर्थिक मंदी की चपेट में आ गई है दुनिया, यह 1930 के दशक की महान आर्थिक मंदी के बाद का सबसे गंभीर वैश्विक आर्थिक संकट हो सकता है, दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियां अचानक से ठप होने के साथ उभरते बाज़ारों को कम से कम 2,500 अरब डॉलर की ज़रूरत होगी, विश्व व्यापार में 2020 में 13 फीसदी से लेकर 32 फीसदी तक की गिरावट आने की आशंका है – IMF
- कोरोना वायरस से दुनिया भर में आपको कैसे पता चलेगा कि बाजार में तेजी है या मंदी आएगी आर्थिक तबाही, भारत और चीन पर कम असर होगा – संयुक्त राष्ट्र
- दुनिया के गरीब और विकासशील देशों को आर्थिक मंदी से उबरने के लिए लगभग 2-3 ट्रिलियन डॉलर की जरूरत पड़ेगी, विकासशील देशों को हालात सामान्य करने में लगभग 2 साल तक का वक्त लग सकता है – संयुक्त राष्ट्र की संस्था युनाइटेड नेशन ट्रेड एंड डेवलेपमेंट बॉडी (UNCTAD)
आर्थिक मंदी
आर्थिक मंदी वो हालात हैं जब लोगों की खरीदने की क्षमता कम हो जाती है जिसकी वजह से बाजार में सामान बिकता नहीं है जिससे मांग नहीं पैदा होती, मांग ना पैदा होने की वजह से फैक्ट्रिज में सामान नहीं बनता, जब सामान ही नहीं बनता तो जो वहाँ के कर्मचारी होते हैं उन्हें भी काम नहीं मिलता जिससे उनकी भी खरीदने की क्षमता कम हो जाती है और ये अर्थव्यवस्था का ये मांग और आपूर्ति का पहिया रुकने लगता है | इसी को आर्थिक मंदी कहा जाता है |
इसका अर्थ है एक देश में एक निश्चित समय के अंदर बनाई गयी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य या कीमत | भारत में जीडीपी की गणना प्रत्येक तिमाही में की जाती है। जीडीपी का आंकड़ा अर्थव्यवस्था के प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में उत्पादन की वृद्धि दर पर आधारित होता है। जीडीपी के तहत कृषि, उद्योग व सेवा तीन प्रमुख घटक आते हैं। इन क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ने या घटने के औसत के आधार पर जीडीपी दर तय होती है।
आर्थिक वृद्धि
किसी देश की प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि आर्थिक वृद्धि (Economic growth) कहलाती है। आर्थिक वृद्धि केवल उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का परिमाण बताती है।
- अर्थव्यवस्था का चक्र निर्भर करता है मांग और आपूर्ति पर, ये पूरा चक्र एक दूसरे पर आधारित होता है अगर किसी भी चीज़ की मांग में कमी आती है तो उसका प्रभाव दूसरी चीजों की मांग और नौकरियों पर भी पड़ता है, किसी भी वस्तु की मांग कम होने से सबसे पहले उस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की आय पर पड़ता है जिससे उनकी खरीदने की क्षमता कम हो जाती है और इस तरह वस्तुओं की मांग कम हो जाती है और फिर से लोगों की नौकरी जाती है और फिर यही चक्र चलता रहता है और परिणाम के तौर पर आर्थिक मंदी आ जाती है |
- इस कोरोना महामारी में ये सभी लोग लोग प्रभावित होंगे – क्यूंकि ये सभी लोग अपने काम पर या तो जा नहीं पा रहे, ढेर सारी चीजों की मांग में गिरावट आ ही चुकी है, ऑनलाइन बिजनस भी मंदा ही है क्यूंकि एक तो लोग ऑनलाइन ऑर्डर भी नहीं कर रहे और उनके लोग भी घर से ही काम कर रहे हैं |
- किसान और मजदूर तो जब तक बाहर नहीं निकलते तब तक उन्हें और बाजार को भी दिक्कत है, बड़े किसान तो फिर भी थोड़े ठीक हैं हालांकि उनका नुकसान भी बड़ा ही होगा, छोटे किसानों के सामने परेशानी आ सकती है, वो मजदूर जो उन्हीं खेतों में काम करते थे वे तो ज्यादा मुश्किल आपको कैसे पता चलेगा कि बाजार में तेजी है या मंदी में हैं, जिनके पास जमीन है उनके लिए तो शायद कोई सरकारी योजना आ भी जाए |
सर्वे के परिणाम
उद्योग मंडल फिक्की और कर परामर्शक ध्रुव एडवाइजर्स द्वारा संयुक्त रूप से कराया गया है उसमें विभिन्न क्षेत्रों की करीब 380 कंपनियों की राय ली गई। जिसमें ये बातें सामने आई हैं –
- सर्वे में कहा गया है कि इस महामारी की वजह से कंपनियां अपने भविष्य को लेकर काफी ज्यादा अनिश्चित हैं। सर्वे में शामिल 72 प्रतिशत कंपनियों ने कहा कि मौजूदा स्थिति का उनके कारोबार पर ‘बड़ा और काफी ज्यादा’प्रभाव पड़ा है।
- यही नहीं इस संकट की वजह से बड़ी संख्या में कर्मचारियों की नौकरी भी जा सकती है। सर्वे में शामिल 75 प्रतिशत कंपनियों ने कहा कि आगामी महीनों मे वे अपने कर्मचारियों की संख्या में कुछ कटौती करेंगी।
- अच्छी-खासी संख्या में कंपनियों ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में उनकी बिक्री का परिदृश्य सकारात्मक नहीं रहेगा। 70 प्रतिशत कंपनियों ने कहा कि 2020-21 में उनकी बिक्री में गिरावट आएगी।
मंदी का खतरा वास्तविक, भारत को रेपो रेट बढ़ाने से कहीं ज्यादा कुछ करने की जरूरत
Guest Author | Edited By: मोहन कुमार
Updated on: May 27, 2022 | 12:10 AM
के गिरिप्रकाश
कुछ हफ्ते पहले आपको कैसे पता चलेगा कि बाजार में तेजी है या मंदी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के प्रबंध निदेशक ने बढ़ती लागत को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि इनपुट कॉस्ट (Input Cost) बढ़ने से पूरी परियोजना की लागत काफी बढ़ गई है और ये मुनाफे को भी काफी हद तक प्रभावित कर रही है. उनकी कंपनी अकेली नहीं है, जिसका मुनाफा कम हो गया है. महंगाई (Inflation), डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट और घटते विदेशी मुद्रा भंडार (सितंबर 2021 में 642.45 अरब डॉलर से 29 अप्रैल, 2022 को 597.7 डॉलर) ने न केवल कॉरपोरेट्स के लिए बल्कि आम आदमी के लिए भी संकट को बढ़ा दिया है. इसके अलावा स्टार्ट-अप्स को पैसे की कमी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कई पैसा लगाने वाले वेंचर कैपिटलिस्ट (VC) ने हाथ खींच लिए हैं.
ऐसे चेक करें अपने म्यूचुअल फंड का प्रदर्शन
इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं. मान लीजिए आपने ऐसे लार्जकैप फंड में निवेश किया है, जिसका बेंचमार्क निफ्टी 50 है. मान लीजिए आपके फंड में एक साल में 30 फीसदी रिटर्न दिया है. समान अवधि में निफ्टी ने 25 फीसदी दिया है. इसका मतलब है कि आपको फंड ने शानदार रिटर्न दिया है. अगर इसने 22 फीसदी रिटर्न दिया होता तो इसके प्रदर्शन को कमजोर माना जाता.
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