जगह रोक आदेश

Gyanvapi Case: ज्ञानवापी मामले में हाई कोर्ट ने वाराणसी कोर्ट के आदेश पर रोक को आगे बढ़ाया, 18 अक्टूबर को होगी सुनवाई
Gyanvapi Case: इससे पहले 12 सितंबर को न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने भी एएसआई के महानिदेशक को 10 दिनों के भीतर व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
Edited By: Malaika Imam @MalaikaImam1
Published on: September 28, 2022 23:29 IST
Image Source : FILE PHOTO Gyanvapi Case
Highlights
- अदालत के आदेश पर लगी रोक जगह रोक आदेश को 31 अक्टूबर तक के बढ़ाई गई
- इलाहाबाद हाई कोर्ट में अगली सुनवाई 18 अक्टूबर को तय की गई
Gyanvapi Case: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर- ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से सर्वेक्षण कराने संबंधी वाराणसी की एक अदालत के आदेश पर लगी रोक 31 अक्टूबर तक के लिए बुधवार को बढ़ा दी। न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख 18 अक्टूबर तय की।
याचिकाकर्ता अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद (वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद की प्रबंधन समिति) और अन्य ने वाराणसी की जिला अदालत में 1991 में दायर मूल वाद की पोषणीयता को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। मूल वाद में उस जगह पर जहां वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद खड़ी है, प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर बहाल करने की मांग की गई है।
मूल वाद में दावा, अमुक मस्जिद उस मंदिर का हिस्सा है
याचिकाकर्ताओं ने मूल वाद में दावा किया है कि अमुक मस्जिद उस मंदिर का हिस्सा है। गौरतलब है है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 09 सितंबर, 2021 को वाराणसी की अदालत के आठ अप्रैल, 2021 के आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें एएसआई को काशी विश्वनाथ मंदिर- ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का भौतिक सर्वेक्षण करने का निर्देश जारी किया गया था।
इससे पहले 12 सितंबर को न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने भी एएसआई के महानिदेशक को 10 दिनों के भीतर व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था, क्योंकि एएसआई की ओर से दाखिल जवाबी हलफनामा बहुत अस्पष्ट था और यह मामला राष्ट्रीय महत्व का है। हाई कोर्ट के 12 सितंबर के आदेश के अनुपालन में एएसआई (वाराणसी) के अधीक्षण पुरातत्वविद अबिनाश मोहंती ने एक प्रार्थना पत्र देकर महानिदेशक की पेशी के लिए कुछ समय मांगा।
'महानिदेशक अस्वस्थ, हलफनामा दाखिल करने की स्थिति में नहीं'
मोहंती ने कहा कि महानिदेशक अस्वस्थ हैं और वह व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने की स्थिति में नहीं हैं। हालांकि, हाई कोर्ट ने कहा, "चूंकि यह मामला राष्ट्रीय महत्व का है और वाद 1991 से निचली अदालत में लंबित है, इसलिए यह अदालत उम्मीद और विश्वास करती है कि एएसआई के महानिदेशक सुनवाई की अगली तारीख पर या इससे पहले 12 सितंबर, 2022 के आदेश का अनुपालन करेंगे।"
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'मीडिया वन' को SC से बड़ी राहत, मामले का फैसला न होने तक केंद्र के प्रसारण बैन के आदेश पर लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा है कि जब तक मामले का फैसला न हो जाए, चैनल को प्रसारण की इजाजत दी जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में कहा है, जब तक फैसला न हो जाए, चैनल को प्रसारण की इजाजत दी जाए
मलयालम समाचार चैनल मीडिया वन ( Media One news channel)को बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने केंद्र के प्रसारण बैन पर रोक लगाई और चैनल चलाने अनुमति दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा है कि जब तक मामले का फैसला न हो जाए, चैनल को प्रसारण की इजाजत दी जाए. इससे पहले मलयालम समाचार चैनल का प्रसारण लाइसेंस नवीनीकृत करने से इनकार करने के खिलाफ अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था SC ने सुरक्षा खतरों के दावों को पुष्ट करने के लिए केरल HC के सामने पेश की गई फाइलों को मांगा था. मलयालम समाचार चैनल ‘मीडियावन' के प्रसारण पर रोक के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जगह रोक आदेश ने सुनवाई की.याचिका में सुरक्षा कारणों से चैनल का प्रसारण बंद करने का फैसला बरकरार रखने के केरल हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है.
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बता दें कि केरल हाईकोर्ट ने मलयालम समाचार चैनल के प्रसारण पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा था और केंद्र सरकार के 31 जनवरी के फैसले को चुनौती देने वाली ‘ मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड' की याचिका को खारिज कर दिया था. इससे पहले केरल हाई कोर्ट ने मलयालम समाचार चैनल मीडिया वन को सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार करने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा था और कहा था कि चैनल के बारे में खुफिया रिपोर्ट में कुछ पहलू थे, जो सार्वजनिक व्यवस्था या राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करते हैं.
मुख्य न्यायाधीश एस मणिकुमार और जस्टिस शाजी पी चाली की पीठ ने कहा था कि मीडिया वन के प्रसारण पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र के 31 जनवरी के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार करने के फैसले पर एकल न्यायाधीश सही थे. अदालत ने कहा था कि उसने गृह मंत्रालय द्वारा उसके सामने रखी फाइलों को देखा और पाया कि 'मीडिया वन लाइफ' और 'मीडिया वन ग्लोबल' के लिए अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग अनुमतियों के आवेदन के संबंध में कुछ पहलू देश की सुरक्षा से जुड़े थे.इससे पता चलता है कि मध्यम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड के कुछ अवांछनीय ताकतों के साथ संबंध हैं, जिसे सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया है. इसी तरह मीडिया वन न्यूज चैनल के अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग के नवीनीकरण के आवेदन के संबंध में भी अदालत ने पाया कि मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड और उसके प्रबंध निदेशक के खिलाफ इंटेलिजेंस ब्यूरो द्वारा कुछ गंभीर प्रतिकूल रिपोर्ट हैं. यह सच है कि फाइलों से मुद्दे की प्रकृति, प्रभाव, गंभीरता और गहराई का पता नहीं चलता हैलेकिन, साथ ही राज्य की सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा को प्रभावित करने वाले स्पष्ट और महत्वपूर्ण संकेत भी हैं. गृह मंत्रालय द्वारा रखी गई एक गोपनीय और संवेदनशील फाइल के मद्देनडर हम राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर हम ज्यादा कुछ नहीं कह रहे हैं
अदालत ने कहा था कि भले ही उसके सामने पेश की गई फाइलों में बहुत अधिक विवरण उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन उसका विचार है कि इसमें सार्वजनिक व्यवस्था या राज्य की सुरक्षा को प्रभावित करने वाले कुछ पहलू हैं.इन महत्वपूर्ण पहलुओं को ध्यान में रखते हुए हमारे सामने पेश की गई गोपनीय फाइलों की सामग्री के मद्देनजर हमारा विचार है कि एकल न्यायाधीश ने अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग अनुमति के नवीनीकरण से केंद्र सरकार के इनकार के फैसले में हस्तक्षेप को अस्वीकार करके सही किया.इसके साथ अदालत ने मध्यमम, उसके कुछ कर्मचारियों, इसके संपादक और केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स द्वारा केंद्र के फैसले और 8 फरवरी के एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ अपील को खारिज कर दिया था.
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राजस्थानः एएनएम के तबादला आदेश पर हाई कोर्ट की रोक
श्रीगंगानगर, 08 नवंबर (हि.स.)। राजस्थान उच्च न्यायालय की जोधपुर पीठ ने परिवादिया एएनएम हरजीत कौर के 14 अक्टूबर 2022 को चिकित्सा विभाग की ओर से किए गए स्थानांतरण आदेश पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी है। कोर्ट ने परिवादिया को उसके वर्तमान पदस्थापन स्थान पर कार्य ग्रहण करवाए जाने के आदेश भी जारी किए हैं।
निदेशक चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग जयपुर ने 14 अक्टूबर को एक आदेश जारी कर परिवादिया का स्थानांतरण बीसीएमओ श्रीगंगानगर से बीसीएमओ श्रीकरणपुर करते हुए उन्हें कार्यमुक्त कर दिया था। गांव 11 जैड निवासी एएनएम हरजीत कौर ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर कर दी।
न्यायालय ने उक्त याचिका पर सुनवाई करते हुए सचिव चिकित्सा विभाग राजस्थान, निदेशक चिकित्सा विभाग जयपुर, सीएमएचओ श्रीगंगानगर, सीईओ जिला परिषद श्रीगंगानगर और बीसीएमओ श्रीगंगानगर को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब पेश करने के आदेश जारी किए हैं।
परिवादिया के अधिवक्ता इंद्रजीत यादव ने कोर्ट को बताया कि निदेशक चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग जयपुर ने 14 अक्टूबर को एक आदेश जारी कर एएनएम हरजीत का स्थानांतरण बीसीएमओ श्रीगंगानगर से बीसीएमओ श्रीकरणपुर करते हुए उन्हें कार्यमुक्त कर दिया।
एएनएम हरजीत कौर के स्थानांतरण मामले में चिकित्सा विभाग की ओर से राजस्थान पंचायती राज (स्थानांतरण गतिविधियां) नियम, 2011 के नियम 8 के विपरीत जाकर आदेश जारी किया गया है। इसमें परिवादिया को श्रीगंगानगर पंचायत समिति से श्रीकरणपुर पंचायत समिति में स्थानांतरण करने से पहले जिला परिषद की जिला स्थापना समिति से सहमति लेना जरूरी था लेकिन चिकित्सा विभाग ने बिना अनुमति के आदेश जारी किया है, जो पूरी तरह से नियम विरुद्ध है।
इस पर उच्च न्यायालय ने चिकित्सा विभाग जयपुर के स्थानांतरण आदेश को नियमों के विपरीत मानते हुए स्थगन आदेश जारी कर दिया।
दूसरी पंचायत समिति में तबादले के लिए जिला परिषद की सहमति जरूरीः अधिवक्ता इंद्रजीत यादव ने न्यायालय को बताया कि 02 अक्टूबर 2010 के परिपत्र के अंतर्गत राज्य सरकार ने सीएमएचओ स्तर तक का संपूर्ण चिकित्सा विभाग पंचायत राज विभाग के अधीन कर दिया गया था। पंचायती राज के अधीन आने के कारण राजस्थान पंचायती राज (स्थानांतरण गतिविधियां) नियम 2011 के अनुसार किसी भी कार्मिक का एक ही पंचायत समिति के अंतर्गत स्थानांतरण पंचायत समिति की प्रशासनिक और स्थापना समिति की सहमति के बाद ही किया जाएगा, वहीं एक पंचायत समिति से दूसरी पंचायत समिति में किसी कार्मिक का स्थानांतरण संबंधित जिला परिषद की जिला स्थापना समिति और एक जिले से दूसरे जिले में कार्मिक के स्थानांतरण के लिए पंचायती राज विभाग की सहमति आवश्यक है।
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ज्ञानवापी सर्वे पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, 'शिवलिंग' की जगह सील करने और नमाज जारी रखने का आदेश
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग को सील करने का आदेश दिया है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि मुस्लिमों को नमाज के लिए प्रवेश करने से नहीं रोका जाए। मामले की अगली सुनवाई 19 मई को होगी। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत की सुनवाई पर कोई रोक नहीं है।
सुनवाई शुरू होते ही कोर्ट ने कहा कि यह मालिकाना हक का केस नहीं है। सिर्फ पूजा का अधिकार मांगा गया है। तब याचिकाकर्ता के वकील हुफेजा अहमदी ने कहा कि मां शृंगार गौरी, गणेश और दूसरे देवताओं के पूजा-दर्शन का अधिकार मांगा गया है। पूजा, आरती, भोग की मांग है। यह इस जगह की स्थिति को बदल देगा जोकि अभी मस्जिद है। अहमदी ने कहा कि हमने कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति को चुनौती दी, वह खारिज हो गई। कमिश्नर बदलने की मांग की, वह भी ठुकरा दी गई। कहा गया कि आप कमिश्नर नहीं चुन सकते। सिर्फ तथ्यों की जांच हो रही है।
कोर्ट ने पूछा कि कमीशन ने कब काम किया। तब अहमदी ने कहा कि 14 और 15 मई को। उनको पता था कि सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करने वाला है, फिर भी उन्होंने अपनी कार्रवाई की। फिर कहा गया कि शिवलिंग मिला है। निचली अदालत से सीलिंग का आदेश पारित हो गया। कमीशन की तरफ से हुई कार्रवाई की गोपनीय रखी जानी चाहिए थी। लेकिन सार्वजनिक हो गई। कोर्ट ने पूछा कि सीलिंग का आदेश कब का है। तब अहमदी ने कहा कि 16 मई का। पुलिस, प्रशासन को आदेश दिया गया है। नमाज़ियों की संख्या सीमित कर दी गई है।
कोर्ट ने कहा कि आवेदन में काफी बातें मांगी गई लेकिन कोर्ट ने बस सीलिंग का आदेश दिया। इस पर अहमदी ने कहा कि नमाज़ियों की संख्या भी सीमित हो गई। धार्मिक स्थल की स्थिति बदली जा रही है। तब कोर्ट ने कहा जगह रोक आदेश कि हम आदेश देंगे कि आपने जो आवेदन दाखिल किया है। सिविल कोर्ट उसका जल्द निपटारा करे। तब अहमदी ने कहा कि सिर्फ इतनी बात नहीं है। सिविल कोर्ट के सभी आदेशों पर रोक लगनी चाहिए। अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट सभी धर्मस्थलों पर लागू है। सुप्रीम कोर्ट यह देखे कि क्या निचली अदालत में यह वाद चलना चाहिए था। तब कोर्ट ने कहा कि वादी के लिए निचली अदालत में कौन वकील है।
कोर्ट ने कहा कि हम नोटिस जारी कर रहे हैं। हम निचली अदालत को निर्देश देना चाहते हैं कि जहां शिवलिंग मिला है, उस जगह को सुरक्षित रखा जाए लेकिन लोगों को नमाज़ से न रोका जाए। तब मेहता ने कहा कि वज़ूखाने में शिवलिंग मिला है, जो हाथ-पैर धोने की जगह है। नमाज की जगह अलग होती है। मेहता ने कहा कि शिवलिंग को नुकसान न पहुंचे और तब कोर्ट ने कहा कि हम सुरक्षा का आदेश देंगे। तब मेहता ने कहा कि मैं इस पर कल बताना चाहूंगा। आपके आदेश का कोई अवांछित असर न पड़े, हम यह चाहते हैं। अहमदी ने कहा कि इस आदेश से जगह की स्थिति बदल जाएगी। वज़ू के बिना नमाज नहीं होती। उस जगह का इस्तेमाल सदियों से हो रहा है।
कोर्ट ने कहा कि हम 19 मई को सुनवाई करेंगे। अभी हम उस जगह के संरक्षण का आदेश बरकरार रखेंगे। हम डीएम को इसका निर्देश देंगे। अगर कोई शिवलिंग मिला है तो उसका संरक्षण ज़रूरी है। लेकिन अभी नमाज नहीं रोकी जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि हम नोटिस जारी कर रहे हैं। 19 मई को सुनवाई करेंगे। उस दिन सिविल कोर्ट में जो वादी हैं, उनके वकील को भी सुना जाएगा। हम 16 मई के आदेश को सीमित कर रहे हैं। तब मेहता ने कहा कि अगर किसी ने शिवलिंग पर पैर लगा दिया तो कानून-व्यवस्था की स्थिति प्रभावित हो सकती है। तब अहमदी ने कहा कि वज़ू अनिवार्य है। तब मेहता ने कहा कि वह कहीं और भी हो सकती है। उसके बाद कोर्ट ने कहा कि हम वाराणसी के डीएम को आदेश दे रहे हैं कि जहां शिवलिंग मिला है, उस जगह को सुरक्षित रखें। नमाज़ से लोगों को न रोका जाए। निचली अदालत की सुनवाई पर रोक नहीं है।
याचिका अंजुमन इंतजामिया मस्जिद की मैनेजमेंट कमिटी ने दायर की है। याचिका में वाराणसी निचली अदालत से जारी सर्वे के आदेश को 1991 प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ बताया है। सुनवाई के दौरान हुफेजा ने कहा था कि वाराणसी का ज्ञानवापी मस्जिद प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत आता है। वाराणसी की निचली अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया था लेकिन ये सर्वे मस्जिद कमेटी ने नहीं होने दिया था। दरअसल पांच हिन्दू महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद के पश्चिमी दीवार के पीछे पूजा करने की मांग की है।
नर्सिंग ऑफिसरों को एपीओ कर कार्यमुक्त करने वाले आदेश पर हाईकोर्ट की रोक
राजस्थान हाईकोर्ट ने कोटा के मेडिकल कॉलेज में लम्बे समय से नर्सिंग ऑफिसर के पद पर काम कर रहे याचिकाकर्ताओं को सरप्लस बताकर एपीओ करने और उनकी सेवाएं चिकित्सा निदेशक को भेजने के आदेश की क्रियान्विति पर रोक लगा दी है.
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Jaipur: राजस्थान हाईकोर्ट ने कोटा के मेडिकल कॉलेज में लम्बे समय से नर्सिंग ऑफिसर के पद पर काम कर रहे याचिकाकर्ताओं को सरप्लस बताकर एपीओ करने और उनकी सेवाएं चिकित्सा निदेशक को भेजने के आदेश की क्रियान्विति पर रोक लगा दी है. इसके साथ ही अदालत ने मामले में चिकित्सा विभाग ओर मेडिकल कॉलेज से जवाब मांगते हुए याचिकाकर्ताओं को मौजूदा स्थान पर काम करने को कहा है. जस्टिस इन्द्रजीत सिंह ने यह आदेश ममता शर्मा व अन्य की याचिका पर दिया.
याचिका में अधिवक्ता कुलदीप शर्मा ने बताया कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति कोटा मेडिकल कॉलेज में नर्सिंग ऑफिसर के रिक्त पदों पर हुई थी. वहीं मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने अपने क्षेत्राधिकार के बाहर जाकर याचिकाकर्ताओं को सरप्लस बताकर एपीओ और कार्यमुक्त किया है. वहीं उनकी जगह पर अन्य जगहों से ट्रांसफर होकर आए कार्मिकों को पदभार ग्रहण कराया है. जबकि सरप्लस होने के आधार पर कर्मचारी को एपीओ नहीं किया जा सकता.
वहीं यदि याचिकाकर्ता सरप्लस थे तो उनके स्थान पर ही तबादला होकर आए दूसरे नर्सिंग ऑफिसरों को कैसे लगाया गया. ऐसे में उन्हें एपीओ करने और उनकी सेवाएं चिकित्सा निदेशक को सौंपने के आदेश पर रोक लगाकर उन्हें मौजूदा जगह पर ही काम करते रहने दिया जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने प्रिंसिपल के आदेश पर रोक लगाते हुए याचिकाकर्ताओं को मौजूदा स्थान पर ही कार्यरत रहने को कहा है.