इनवेस्टमेंट क्या होती है

इनवेस्टमेंट क्या होती है
Investment meaning in Hindi : Get meaning and translation of Investment in Hindi language with grammar,antonyms,synonyms and sentence usages by ShabdKhoj. Know answer of question : what is meaning of Investment in Hindi? Investment ka matalab hindi me kya hai (Investment का हिंदी में मतलब ). Investment meaning in Hindi (हिन्दी मे मीनिंग ) is निवेश.English definition of Investment : the act of investing; laying out money or capital in an enterprise with the expectation of profit
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निवेश का फंडा: फ्रीडम एसआईपी के तहत अब आप भी बनिए अमीर, जानें इनवेस्टमेंट के बेहतरीन तरीके
एसआईपी आपको प्लानिंग के साथ रोजाना जीवन की परेशानियों जैसे घर, शादी और बच्चों की शिक्षा के लिए मदद करता है।
शेयर मार्केट में निवेश को लेकर काफी लोगों को लगता है कि उन्हें बड़ी रकम की जरूरत होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। यदि आप धैर्य और अनुशासन के साथ निवेश करते हैं तो आप भी अमीर बन सकते हैं। एसआईपी आज छोटे और बड़े निवेशकों के लिए सुविधाजनक और पसंदीदा तरीका है, क्योंकि एसआईपी के जरिए मासिक बचत, एवरेज लागत, जोखिम, संतुलन और बेहतर लाभ आदि बेहतर मिलता है।
एसआईपी आपको प्लानिंग के साथ रोजाना जीवन की परेशानियों जैसे घर, शादी और बच्चों की शिक्षा के लिए मदद करता है। सिर्फ अच्छे शुरूआत से ही आपका आधा काम हो जाता है और इसके बाद लक्ष्य निर्धारित करके नयी एसआईपी की शुरुआत कीजिए।
क्या है आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल फ्रीडम एसआईपी प्लान?
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल फ्रीडम एसआईपी एक ऐसी सुविधा है जो एक निवेशक को एसआईपी के जरिए नियमित रूप से प्लानिंग के साथ निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करती है और एसआईपी अवधि के पूरा होने के बाद अच्छे रिटर्न भी मिलते हैं।
प्रूडेंशियल फ्रीडम एसआईपी के है ये तीन आसान स्टेप्स
स्टेप 1: इसमें एसआईपी को हर महीने के हिसाब से 8, 10, 12, 15, 20,25 और 30 सालों के लम्बे समय के लिए एक ओपन एंडेड इक्विटी, हाइब्रिड या फंड ऑफ फंड्स स्कीम में रजिस्टर्ड किया जाएगा।
स्टेप 2: इसके बाद चुनी हुई एसआईपी का समय पूरा होने पर, फ्रीडम एसआईपी के माध्यम से जमा की गई राशियों को एक पहले से चुने हुए प्लान टार्गेट में ट्रांसफर कर दिया जाता है, जिसे एक हाइब्रिड फंड के नाम से जाना जाता है। इससे ये तय हो जाता है कि आपका पैसा बाजार की जोखिमों से बचा रहे।
स्टेप 3: एसआईपी ट्रांसफर के बाद, एक प्लान धन निकासी योजना, जिसे SWP के रूप में जाना जाता है, एक्टिव हो जाता है। यदि कोई एसआईपी 8 साल के लिए रजिस्टर्ड है, तो उसकी मासिक एसडब्ल्यूपी किस्त उसके मासिक एसआईपी किस्त के एक गुणे के बराबर होता है। अगर वो 10, 12, 15,20,25 और 30 सालों के लिए रजिस्टर्ड एसआईपी में से पैसे निकालता है तो, वह उसके मासिक एसआईपी के 1.5, 2, 3,5,8 और 12 गुणे के बराबर होता है। जैसे कोई यदि 12 वर्ष के लिए रजिस्टर्ड प्लान की एसआईपी रु. 10,000 प्रति माह है, तो उसका एसडब्ल्यूपी 20,000 रुपये (2X रुपये 10,000) होगा।
एसआईपी निवेश के फायदे
1. सिस्टमैटिक निवेश योजनाओं को बनाए रखना आसान है।
2. लंबी अवधि में, SIP शानदार रिटर्न दे सकते हैं।
3. साथ ही, एसआईपी प्लान का इस्तेमाल करके एक ही समय में अधिक बेहतर प्रदर्शन करने और पैसे कमाने के तरीके हैं।
4. जैसे-जैसे आपकी आय बढ़ती है, आप अपने मासिक एसआईपी को बढ़ा सकते हैं या बड़े लक्ष्यों की योजना बनाने या तेजी से लक्ष्य तक पहुंचने के लिए टॉप-अप एसआईपी कर सकते हैं। यह हमेशा आप पर निर्भर है।
विस्तार
शेयर मार्केट में निवेश को लेकर काफी लोगों को लगता है कि उन्हें बड़ी रकम की जरूरत होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। यदि आप धैर्य और अनुशासन के साथ निवेश करते हैं तो आप भी अमीर बन सकते हैं। एसआईपी आज छोटे और बड़े निवेशकों के लिए सुविधाजनक और पसंदीदा तरीका है, क्योंकि एसआईपी के जरिए मासिक बचत, एवरेज लागत, जोखिम, संतुलन और बेहतर लाभ आदि बेहतर मिलता है।
एसआईपी आपको प्लानिंग के साथ रोजाना जीवन की परेशानियों जैसे घर, शादी और बच्चों की शिक्षा के लिए मदद करता है। सिर्फ अच्छे शुरूआत से ही आपका आधा काम हो जाता है और इसके बाद लक्ष्य निर्धारित करके नयी एसआईपी की शुरुआत कीजिए।
क्या है आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल फ्रीडम एसआईपी प्लान?
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल फ्रीडम एसआईपी एक ऐसी सुविधा है जो एक निवेशक को एसआईपी के जरिए नियमित रूप से प्लानिंग के साथ निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करती है और एसआईपी अवधि के पूरा होने के बाद अच्छे रिटर्न भी मिलते हैं।
प्रूडेंशियल फ्रीडम एसआईपी के है ये तीन आसान स्टेप्स
स्टेप 1: इसमें एसआईपी को हर महीने के हिसाब से 8, 10, 12, 15, 20,25 और 30 सालों के लम्बे समय के लिए एक ओपन एंडेड इक्विटी, हाइब्रिड या फंड ऑफ फंड्स स्कीम में रजिस्टर्ड किया जाएगा।
स्टेप 2: इसके बाद चुनी हुई एसआईपी का समय पूरा होने पर, फ्रीडम एसआईपी के माध्यम से जमा की गई राशियों को एक पहले से चुने हुए प्लान टार्गेट में ट्रांसफर कर दिया जाता है, जिसे एक हाइब्रिड फंड के नाम से जाना जाता है। इससे ये तय हो जाता है कि आपका पैसा बाजार की जोखिमों से बचा रहे।
स्टेप 3: एसआईपी ट्रांसफर के बाद, एक प्लान धन निकासी योजना, जिसे SWP के रूप में जाना जाता है, एक्टिव हो जाता है। यदि कोई एसआईपी 8 साल के लिए रजिस्टर्ड है, तो उसकी मासिक एसडब्ल्यूपी किस्त उसके मासिक एसआईपी किस्त के एक गुणे के बराबर होता है। अगर वो 10, 12, 15,20,25 और 30 सालों के लिए रजिस्टर्ड एसआईपी में से पैसे निकालता है तो, वह उसके मासिक एसआईपी के 1.5, 2, 3,5,8 और 12 गुणे के बराबर होता है। जैसे कोई यदि 12 वर्ष के लिए रजिस्टर्ड प्लान की एसआईपी रु. 10,000 प्रति माह है, तो उसका एसडब्ल्यूपी 20,000 रुपये (2X रुपये 10,000) होगा।
एसआईपी निवेश के फायदे
1. सिस्टमैटिक निवेश योजनाओं को बनाए रखना आसान है।
2. लंबी अवधि में, SIP शानदार रिटर्न दे सकते हैं।
3. साथ ही, एसआईपी प्लान का इस्तेमाल करके एक ही समय में अधिक बेहतर प्रदर्शन करने और पैसे कमाने के तरीके हैं।
4. जैसे-जैसे आपकी आय बढ़ती है, आप अपने मासिक एसआईपी को बढ़ा सकते हैं या बड़े लक्ष्यों की योजना बनाने या तेजी से लक्ष्य तक पहुंचने के लिए टॉप-अप एसआईपी कर सकते हैं। यह हमेशा आप पर निर्भर है।
क्या सोने में निवेश करना है फायदेमंद?, जानिए गोल्ड इनवेस्टमेंट का सबसे आसान तरीका
कोविड-19 की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर पैदा हुई अनिश्चितताओं ने सोने की कीमतों में और तेजी ला दी है।
Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: September 11, 2020 15:41 IST
Photo:FINANCIAL EXPRESS
is Gold Investment beneficial? Know best way to invest in gold
कोरोना काल में सोने की कीमतें तेजी से ऊपर चढ़ी हैं। कोविड-19 की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर पैदा हुई अनिश्चितताओं ने सोने की कीमतों में और तेजी ला दी है। लॉकडाउन के बाद धीरे-धीरे अर्थव्यवस्थाओं के खुलने से सोने की कीमतों हुई बढ़ोतरी कुछ कम हो सकती है। ऐसे में कई लोग यह चिंता जता रहे हैं कि मौजूदा आर्थिक माहौल में सोने में निवेश करना जोखिम भरा साबित हो सकता है। सबसे पहले एक एसेट क्लास के तौर पर गोल्ड में निवेश के फायदे और नुकसान और इसमें निवेश के अलग-अलग जरियों के बारे में चर्चा कर लेते हैं।
गोल्ड में निवेश के मजबूत पहलू
एक एसेट क्लास के तौर पर इक्विटी और गोल्ड के बीच में विपरीत संबंध है। जब भी इक्विटी मार्केट में गिरावट का ट्रेंड होता है तब आमतौर पर गोल्ड में ऊंचे रिटर्न मिलते हैं। इसके अलावा, ऊंची महंगाई दर, आर्थिक झटकों और भूराजनैतिक तनाव से भी गोल्ड की कीमतें मजबूत होती हैं। यही विपरीत संबंध सोने को उतार-चढ़ाव भरी इक्विटीज के खिलाफ हेजिंग का काम करता है।
सोने की मांग कई अलग-अलग फैक्टरों की वजह से कायम रहती है। इनमें ज्वैलरी के तौर पर होने वाली खपत, केंद्रीय बैंकों द्वारा गोल्ड को अपने रिजर्व एसेट के तौर पर रखने और मार्केट, महंगाई और करेंसी के जोखिमों के खिलाफ हेजिंग के साधन के तौर पर इस्तेमाल करने जैसी चीजें शामिल हैं। ये अलग-अलग फैक्टर सभी तरह की आर्थिक स्थितियों में गोल्ड की मांग को कायम रखते हैं और इस तरह से गोल्ड निवेश के एक सुरक्षित ठिकाने के तौर पर काम करता है।
इसके खिलाफ क्या चीजें जाती हैं
बाकी की कमोडिटीज की तरह से ही पारंपरिक तरीकों से गोल्ड की भी वैल्यूएशन को तय करना या इससे मिलने वाले रिटर्न का अंदाजा लगाना मुमकिन नहीं है। गोल्ड की कीमतें पूरी तरह से मांग और आपूर्ति के फैक्टर पर टिकी होती हैं। ऐसे में शेयरों के उलट गोल्ड को लेकर निवेश के फैसले इसकी स्वाभाविक वैल्यूएशन के आधार पर तय नहीं होते हैं।
गोल्ड ज्वैलरी और सिक्कों के जरिए सोने में पैसा लगाने वालों को इन्हें घरों या बैंक लॉकर में सुरक्षित रखने की अतिरिक्त कीमत देनी पड़ती है। ये खर्च गोल्ड निवेश की यील्ड पर बुरा असर डाल सकते हैं। गोल्ड की कीमतों के साथ एक और बड़ा जोखिम आर्थिक और भूराजनैतिक स्थिरता के साथ इसका विपरीत संबंध होना है।
जब भी आर्थिक और भूराजनैतिक हालात स्थिर होना शुरू होते हैं, गोल्ड की कीमतें नीचे आने लगती हैं। ऐसे में ऊंचे भाव पर खरीदा गया सोना मैक्रोइकनॉमिक स्थितियों में सुधार के साथ नुकसान दे सकता है।
सोने से जुड़े निवेश विकल्प
फिजिकल गोल्ड
ज्वैलरी और सोने के सिक्के खरीदना गोल्ड में निवेश के सबसे लोकप्रिय तरीकों में से एक है। लेकिन, सोने को फिजिकल रूप में रखने के दो मुख्य नुकसान हैं। इसे सुरक्षित रखने पर होने वाले अतिरिक्त खर्च के अलावा फिजिकल गोल्ड के साथ इसकी शुद्धता संबंधी चिंताएं भी होती हैं। इसके अलावा, किसी राजनीतिक संकट या प्राकृतिक आपदा के वक्त बैंक लॉकर में रखे गोल्ड को निकालना या इसे बेचना मुश्किलभरा साबित हो सकता है।
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड को RBI स्टॉक एक्सचेंज, बैंकों और पोस्ट ऑफिस आदि के जरिए किश्तों में जारी करता है। इसके जरिए कोई शख्स एक फाइनेंशियल ईयर में न्यूनतम 1 ग्राम और अधिकतम 4 किलो तक के सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड खरीद सकता है।
कीमतों में बढ़ोतरी की संभावना के साथ ही सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड निवेशकों को 2.5 फीसदी सालाना का ब्याज भी मिलता है जिसका भुगतान हर छमाही में होता है। हालांकि, इंटरेस्ट इनकम निवेशक के टैक्स स्लैब पर लगने वाले टैक्स पर आधारित होती है, लेकिन एसजीबी के रिडेंप्शन के जरिए होने वाले कैपिटल गेन्स पर कोई टैक्स नहीं लगता है।
किसी अन्य शख्स को इन बॉन्ड्स के ट्रांसफर पर होने वाले लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स पर इंडेक्सेशन बेनेफिट लागू होते हैं। एसजीबी का एक और बड़ा फायदा यह है कि इसे बैंक लोन लेने के लिए कोलेट्रल के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड का सबसे बड़ा फायदा इसकी लिक्विडिटी का कम होना है। एसजीबी 8 साल के टेन्योर के साथ आते हैं और इसमें प्रीमैच्योर रिडेंप्शन निवेश के पांचवें साल के बाद ही मुमकिन हो पाता है। हालांकि, एसजीबी को स्टॉक एक्सचेंजों पर खरीदा या बेचा जा सकता है, लेकिन इसके कम ट्रेड वॉल्यूम इसकी लिक्विडिटी को सीमित रखते हैं।
गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स
गोल्ड ETF फिजिकल गोल्ड की कीमतों को नजदीकी से ट्रैक करने वाले फंड होते हैं। इन्हें बहुत ज्यादा सक्रियता से मैनेज नहीं किया जाता है। किसी भी दूसरे ईटीएफ की तरह से ही गोल्ड फंड्स की यूनिट्स को स्टॉक एक्सचेंजों पर खरीदा या बेचा जा सकता है।
ETF के साथ नुकसान यह है कि इनमें ब्रोकरेज और सालाना मेंटेनेंस चार्ज के तौर पर आपको अतिरिक्त पैसे खर्च करने पड़ते हैं। गोल्ड ईटीएफ के साथ लिक्विडिटी एक बड़ा मसला हो सकती है क्योंकि आमतौर पर एक्सचेंजों पर इनकी बेहद कम खरीद-फरोख्त होती है।
गोल्ड फंड ऑफ फंड्स
ये ओपन-एंडेड म्यूचुअल फंड्स होते हैं जो कि मूल रूप में गोल्ड ETF में निवेश करते हैं। किसी भी दूसरे म्यूचुअल फंड्स की तरह से ही गोल्ड स्कीमों को एनएवी पर खरीदा या रिडीम किया जा सकता है। साथ ही इनमें एसआईपी/एसटीपी जरियों से भी पैसा लगाया जा सकता है।
गोल्ड फंड्स की दूसरे गोल्ड इनवेस्टमेंट्स के मुकाबले कहीं ज्यादा लिक्विडिटी होती है क्योंकि इन्हें किसी भी कारोबारी दिन में फंड हाउस के यहां पर सीधे रिडीम किया जा सकता है। गोल्ड फंड्स में ज्यादा लिक्विडिटी के चलते इनके इनवेस्टमेंट क्या होती है इनवेस्टर्स को अपनी एसेट एलोकेशन स्ट्रैटेजी को लागू करने में ज्यादा लचीलापन मिलता है।
क्या सोने में पैसा लगाने का ये सही वक्त है?
सोने और इक्विटीज के बीच में नकारात्मक संबंध को देखते हुए रिटेल इनवेस्टर्स को अपने निवेश पोर्टफोलियो का कम से कम 5-10 फीसदी हिस्सा इनके लिए रखना चाहिए। ऐसे में जिन लोगों का गोल्ड में पर्याप्त निवेश नहीं है उन्हें गोल्ड में पैसा लगाना शुरू करना चाहिए। हालांकि, इस निवेश में गोल्ड फंड्स को तरजीह देनी चाहिए और यह निवेश चरणबद्ध तरीके से होना चाहिए।
अगर सोने की कीमतों में आगे और गिरावट आती है तो निवेशक अपनी एसेट एलोकेशन स्ट्रैटेजी को लागू करते हुए सोने इनवेस्टमेंट क्या होती है में एकमुश्त भी निवेश कर सकते हैं। इससे उनके निवेश की एवरेज लागत कम हो जाएगी और उनका एसेट-मिक्स दुरुस्त हो जाएगा।
डिजिटल गोल्ड में इनवेस्टमेंट से ज्यादा रिटर्न मिलेगा ? एक्सपर्ट से जानें जवाब
आपके पास पर्याप्त पैसा है और निवेश करना चाहते हैं, लेकिन क्या आप इस उलझन में हैं कि कहां निवेश करें? तो हम आपके लिए फाइनैंशियल एक्सपर्ट के सुझाव लाए हैं, जो आपके पैसे को समझदारी से निवेश करने में इनवेस्टमेंट क्या होती है मदद करेगा.
हैदराबाद : अच्छी आमदनी वाले कई लोग अपने पैसे को दोगुना करने की ख्वाहिश रखते हैं, लेकिन उन्हें पता नहीं होता है कि बेहतर रिटर्न पाने के लिए कहां निवेश करें. इसके अलावा भारतीयों इनवेस्टमेंट क्या होती है को सोने का शौक है और वे हमेशा सोने में निवेश की तलाश में रहते हैं. मौका मिलते ही सोना खरीद लेते हैं. अधिकतर लोग अपने इनवेस्टमेंट पर अधिक रिटर्न प्राप्त करना चाहते हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही अपने लक्ष्य को हासिल कर पाते हैं. बाकी बचे लोग यह जानना चाहते हैं कि ज्यादा रिटर्न के लिए किस स्कीम में निवेश करें? जिसमें हम इन्वेस्ट कर रहे हैं, उसमें कोई नुकसान तो नहीं होगा? ऐसे ही सवालों को हम एक्सपर्ट के नजरिये से बताते हैं, ताकि आपकी शंकाओं का समाधान हो सके.
अरुण का सवाल है कि मैं हर महीने दस हजार रुपये इनवेस्ट करने की प्लानिंग कर रहा हूं. मैं किस स्कीम में निवेश करूं, जिसमें मुझे कम से कम 14 प्रतिशत की दर से ऐन्युअल रिटर्न मिले.
फाइनैंशियल एक्सपर्ट तुम्मा बलराज का कहना है कि ज्यादा रिटर्न जोखिम भरे निवेश से ही संभव है. आप तय करें कि आप कितना जोखिम उठा सकते हैं. इक्विटी पर आधारित इन्वेस्टमेंट में 14 फीसदी तक रिटर्न मिलने के चांस रहते हैं. मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट में उतार-चढ़ाव होते हैं. बेहतर रिटर्न तभी संभव है, जब आप कम से कम 7 से 10 साल के लिए निवेश करें. अगर आप समय-समय पर निवेश करते रहेंगे तो लंबी अवधि में आप 12-15 फीसदी की दर से रिटर्न की उम्मीद कर सकते हैं. इसके लिए आपको सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले डायवर्सिफाइड इक्विटी म्यूचुअल फंडों पर ध्यान देना चाहिए.
स्वप्ना ने सलाह मांगी है कि मैं अपनी मां के नाम वरिष्ठ नागरिक बचत खाते में 5 लाख रुपये जमा करना चाहती हूं. क्या यह अधिक लाभदायक है? क्या डेब्ट म्यूचुअल फंड में निवेश करना और प्रति माह एक निश्चित राशि लेना बेहतर होगा?
सीनियर सिटीजन सेविंग्स स्कीम में निवेश करने पर आपको सालाना 7.4 फीसदी ब्याज मिल सकता है. इस स्कीम के तहत हर तीन महीने में ब्याज का भुगतान किया जाता है. वर्तमान परिस्थितियों में, फिक्स डिपॉजिट और डेब्ट फंड इनवेस्टमेंट क्या होती है से अधिक रिटर्न मिलने की संभावना नहीं है. इसलिए इसे सीनियर सिटिजन अकाउंट में जमा करें. यह स्कीम पांच साल तक जारी रहनी चाहिए. इसमें सेक्शन 80 सी के तहत स्लैब के हिसाब टैक्स लग सकता है.
श्रीकांत पूछते हैं कि मैं 43 साल का हूं. मैं 75 लाख रुपये की टर्म पॉलिसी लेना चाहता हूं. क्या इसे एक ही बीमा कंपनी से लिया जा सकता है? दो कंपनियों से लेने का क्या फायदा है?
जीवन बीमा पॉलिसी का मूल्य हमेशा ऐन्युअल इनकम का लगभग 10-12 गुना होना चाहिए. इंश्योरेंस लेते समय अपना पर्सनल, हेल्थ और फाइनैंशियल डिटेल स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए. ऐसी कंपनी का चुनाव करना चाहिए, जिनका क्लेम सेटलमेंट की हिस्ट्री बेहतर है. यदि आपने एक कंपनी से इंश्योरेंस लिया और भविष्य में वह इंश्योरेंस क्लेम के दावे को ठुकरा देती है तो दिक्कत आएगी. इसलिए दो बीमा कंपनियों से पॉलिसी लेना बेहतर है. यदि क्लेम को अस्वीकार करता है तो हम दूसरे पर भरोसा कर सकते हैं.
वेंकट जानना चाहता है कि कई कंपनियां डिजिटल 'गोल्ड' के नाम पर सोने में निवेश का मौका दे रही है. क्या इन्हें चुनना बेहतर है? क्या कोई जोखिम है?
तुम्मा बलराज के अनुसार, अब गोल्ड में निवेश करने के कई तरीके हैं. डिजिटल गोल्ड उनमें से एक है. यह आकर्षक लगता है क्योंकि आप इसमें कम से कम 100 रुपये में निवेश कर सकते हैं. सोने की कीमत के आधार पर लाभ या हानि संभव है क्योंकि इसमें समय-समय पर उतार-चढ़ाव होता रहता है. जब आप लंबी अवधि के निवेश का विचार करते हैं तो गोल्ड ईटीएफ या गोल्ड फंड का चुनाव करना उचित है.
Gold Bond, Digital Gold और Gold ETF : सोने के गहनों में नहीं, इनमें करें निवेश, जानें कौन है सबसे बेहतर
Investment in Gold : फिजिकल सोना खरीदने से अच्छा है सोने के अन्य ऑप्शन्स में इनवेस्ट करना. निवेश के मकसद से सोने के गहने, सिक्के या गोल्ड बिस्किट खरीदने से बेहतर गोल्ड ईटीएफ, गोल्ड बॉन्ड या डिजिटल गोल्ड का ऑप्शन है.
Gold Investment : सोने में कई तरीकों से किया जा सकता है निवेश. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
भारत जैसे देश में लोग सोने से संपत्ति (Gold Asset) के साथ-साथ एक इमोशनल टच से भी जुड़े हुए होते हैं. सोने को लोग हमेशा से सबसे ज्यादा सुरक्षित और फायदेमंद निवेश का माध्यम (Gold Investment) मानते रहे हैं. अगर निवेश की बात करें तो सेफ इनवेस्टमेंट के लिए लोग हमेशा से बैंकों में फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) की तरफ आकर्षित हुए हैं. FD से मिलने वाला रिटर्न पूर्व निर्धारित होता है. इसके अलावा कुछ लोग शेयर मार्केट में भी पैसा लगाते हैं, हालांकि शेयर मार्केट काफी जोखिमों से भरा हुआ है और बहुत से लोगों को शेयर मार्केट की सही समझ भी नहीं होती, ऐसे में लोग शेयर मार्केट में निवेश करने में उतने सहज नहीं होते. लेकिन सोने-चांदी की बात हो तो निवेश का ये विकल्प लोगों को लुभाता है.
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वैसे, आप अगर निवेश के मकसद से सोना खरीदना चाहते हैं तो फिजिकल सोना खरीदने के अच्छा है सोने के अन्य ऑप्शन्स में इन्वेस्टमेंट करना. निवेश के मकसद से सोने के गहने, सिक्के या गोल्ड बिस्किट खरीदने से बेहतर गोल्ड ईटीएफ, गोल्ड बॉन्ड या डिजिटल गोल्ड का ऑप्शन है.
गोल्ड बॉन्ड (Gold Bond)
केंद्र सरकार सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की योजना चलाती है. सरकार की इस स्कीम के तहत आम लोग सोने में इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं. इस स्कीम के माध्यम से सरकार सोने के भौतिक रूप की डिमांड में कमी लाने की कोशिश में रहती है. वहीं गोल्ड बॉन्ड का बड़ा फायदा ये है कि सरकारी गोल्ड बॉन्ड की कीमत गोल्ड के मार्केट प्राइस से कम होती है. वहीं इसे खरीदने से टैक्स छूट भी मिलती है. इस स्कीम की खासियत ये भी है कि इसमें किसी तरह की धोखाधड़ी या फिर अशुद्धता की संभावना नहीं होती है.
गोल्ड बॉन्ड आठ वर्षों के बाद मैच्योर हो जाते हैं. 8 साल के बाद रुपए निकाले जा सकते हैं. इसके अलावा 5 साल के बाद भी इस स्कीम से पैसे निकालने का ऑप्शन होता है. इतना ही नहीं इस स्कीम के माध्यम से बैंक से लोन भी लिया जा सकता है. गोल्ड बॉन्ड खरीदने पर GST भी नहीं देना पड़ता.
डिजिटल गोल्ड (Digital Gold)
इस समय डिजिटल बाजार उछाल पर है. ऐसे में मार्केट में डिजिटल गोल्ड भी मिल रहे हैं. इंवेस्टमेंट के लिहाज से देखें तो डिजिटल गोल्ड एक बेहतर विकल्प है. डिजिटल गोल्ड में बेहतर रिटर्न भी मिलता है. ज्वेलर्स या डीलर की तरफ से डिजिटल गोल्ड कई प्लेटफॉर्म के जरिए बेचा जाता है. वहीं इनमें अमेजन-पे, पेटीएम, फोन-पे जैसे वॉलेट और इंवेस्टमेंट के अन्य प्लेटफॉर्म जैसे कुवेरा, ग्रो और स्टॉक ब्रोकर्स शामिल हैं. डिजिटल गोल्ड में आप जब चाहें इन्वेस्ट कर सकते हैं और जब चाहें इसे सेल भी कर सकते हैं. डिजिटल गोल्ड को खरीदने के लिए आपको इंटरनेट और नेटबैंकिंग की जरूरत होती है.
गोल्ड ईटीएफ (Gold ETF)
घर में रखी गोल्ड ज्वेलरी की तुलना में गोल्ड ईटीएफ अधिक सेफ होता है. इलेक्ट्रॉनिक रूप में होने की वजह से इसकी शुद्धता का पूरा भरोसा किया जा सकता है. इस पर तीन वर्षों के बाद लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है. इस पर लोन नहीं मिल सकता. इसे एक्सचेंज पर कभी भी बेच दिया जा सकता है और इसको रखने का खर्च भी काफी कम है.
कौन है बेहतर?
सेंट्रल गवर्नमेंट की सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम का एक फायदा ये है कि यह बॉन्ड, गोल्ड के मार्केट प्राइस से कम कीमत में मिलते हैं. वहीं दूसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि इस योजना में इन्वेस्ट करने पर जीएसटी नहीं चुकाना पड़ता है. जबकि डिजिटल गोल्ड खरीदते वक्त 3 फीसद जीएसटी देना होता है, ऐसे में जीएसटी देने से निवेश की लागत बढ़ जाती है. वहीं डिजिटल गोल्ड को जब सेल करते हैं तो लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स देनदारी बनती है.
गोल्ड ईटीएफ के मामले में भी ये बात लागू होती है. लिहाजा डिजिटल गोल्ड पर टैक्स प्लस सेस और सरचार्ज चुकाना होता है, जिससे मुनाफा घट जाता है. वहीं डिजिटल गोल्ड को लेकर ऑफिशियल रेगुलेटरी संस्था नहीं है, जबकि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड योजना केंद्र सरकार के तहत काम करती है. वहीं गोल्ड बॉन्ड पर आप लोन ले सकते हैं, जबकि गोल्ड ईटीएफ में ऐसा विकल्प नहीं है. कुल मिला कर देखें तो मुनाफे के लिहाज से सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम बेहतर विकल्प है.
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