अध्ययन का सामग्री

निवेश पर वापसी

निवेश पर वापसी

अल्पावधि का कारोबार लंबी अवधि का निवेश

कहा जाता है कि राकेश झुनझुनवाला ने निवेश का अपना सफर वर्ष 1985 में 5,000 रुपये के साथ शुरू किया था। जब दो सप्ताह पहले उनका देहांत हुआ, तब उनके पास 50,000 करोड़ रुपये की संपत्ति थी। यह 37 साल में 65 फीसदी चक्रवृद्धि सालाना प्रतिफल है। ऐसा लगता है कि किसी ने भी इस आंकड़े का आकलन या इसके मायनों की व्याख्या नहीं की, इसलिए उसका यहां उल्लेख किया जा रहा है। इससे राकेश निवेशक मैराथन धावकों के उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर विश्व में दूसरे सबसे सफल निवेशक बन जाते हैं। उनसे थोड़े ऊपर रनेसंस टेक्नोलॉजीज के जिम सिमोंस हैं, जिन्होंने 1988 से 2018 के बीच (पिछले उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर) 66 फीसदी प्रतिफल कमाया है। जॉर्ज सोरोस, स्टैनली ड्रकनमिलर, वारेन बफेट जैसे प्रसिद्ध निवेशकों का प्रतिफल उच्च 20वें दशांक और निम्न 30वें दशांक में रहा। बहुत से शीर्ष निवेशक मुश्किल से 20 फीसदी चक्रवृद्धि प्रतिफल अर्जित कर पाए हैं। हां, निवेश उतना ही निवेश पर वापसी मुश्किल है और राकेश इसमें सफल रहे।

असल में राकेश की उपलब्धि सिमोंस से बड़ी है। सिमोंस गणित के प्रतिभावान व्यक्ति थे, जिनके पास उच्च सटीकता के साथ बाजार में कारोबार करने के लिए मात्रात्मक तकनीक विकसित करने और एल्गोरिद्म बनाने के लिए अच्छे गणितज्ञों और भौतिकविदों की एक टीम थी। उन्होंने 66 फीसदी प्रतिफल कमाने की खातिर उन पैटर्न का पता लगाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों निवेश पर वापसी के सैकड़ों पीएचडी लोगों को नियुक्त किया था, जो हमें प्रकृति, जीवन और बाजारों में आकस्मिक उतार-चढ़ाव नजर आते हैं। इसके अलावा ज्यादातर निवेशकों ने हेज फंडों के जरिये अन्य लोगों का पैसा निवेश कर अपना प्रतिफल कमाया, लेकिन राकेश ने ऐसा कुछ नहीं किया। उन्होंने पिछले दो दशकों में लोगों की एक छोटी टीम के साथ काम किया और वह अन्य लोगों के पैसे का प्रबंधन कर धनी नहीं बने। उन्होंने अपने ही धन में कई गुना बढ़ोतरी की। मैंने दुनिया के हर प्रसिद्ध कारोबारी या निवेशक के बारे में पढ़ा है और मैं जानता हूं कि कोई भी व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता।

एक अन्य निवेशक जिन्होंने अपने बलबूते ही अपनी संपत्ति बढ़ाई, वह रॉबर्ट विल्सन थे। विल्सन ने अपनी मां द्वारा 1958 में दिए गए 15,000 डॉलर को वर्ष 2000 तक बढ़ाकर 80 करोड़ डॉलर कर दिया। इस तरह उनका सालाना चक्रवृद्धि प्रतिफल 30 फीसदी रहा। निश्चित रूप से राकेश की ऐसी असाधारण सफलता का लंबी अवधि का रिकॉर्ड भाग्य के अलावा चतुराई से जोखिम लेने के अनोखे तरीके पर आधारित है, जो बीते वर्षों में बेहतर से बेहतर होता गया। अफसोस की बात यह है कि उनकी रणनीतियों, उनके उच्च एवं निम्न बिंदुओं, मोटी उधारी से पैदा जोखिमों को संभालना और जब उनके आसपास के लोग हार मान रहे थे, तब वाजिब कीमत पर सौदों को पहचानने की उनकी काबिलियत को लेकर ज्यादा दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। विभिन्न समय पर बाजारों के बारे में उनके विचारों पर बहुत सी टीवी क्लिप हैं। लेकिन ऐसा कोई साक्षात्कार नहीं है, जो विस्तार से उनकी खुद की निवेश यात्रा को बताता हो।

ग्रेगोरी जुकरमैन ने जिम सिमोंस पर एक पूरी पुस्तक (दी मैन हू सॉल्वड दी मार्केट) लिखी है, लेकिन सिमोंस ने पुस्तक लिखने में सहयोग नहीं दिया था। हालांकि बहुत कम लोग रॉबर्ट विल्सन को जानते हैं, लेकिन उन पर भी रोमर मैकफी ने एक पुस्तक (किलिंग दी मार्केट) लिखी है। वारेन बफेट पर अनगिनत पुस्तके हैं। जॉर्ज सोरोस और उनके पूर्व साझेदार जिम रोजर्स ने अपनी रणनीतियों पर बहुत सी पुस्तकें लिखी हैं। रोजर्स ने जब 1973 से 1983 के बीच क्वांटम फंड चलाया था, तब एक आश्चर्यजनक रिकॉर्ड बनाया था। इसके अलावा बड़े कारोबारियों और निवेशकों पर सबसे ज्यादा बिकने वाली मार्केट विजार्ड पुस्तकों की सीरीज है। लेकिन विश्व के इस सबसे बेहतर निवेशक एवं कारोबारी के जीवन का कोई ब्योरा उपलब्ध नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि वह मुख्यधारा के पत्रकारों को खूब समय देते थे। निस्संदेह अगर आप उनसे असहमत होते थे तो आपको तेजतर्रार विपक्षी का सामना करना पड़ता था, जो वापस सवाल और उलटे तर्क दागता था।

यह बात याद रखें कि राकेश के 65 फीसदी चक्रवृद्धि प्रतिफल के पीछे बहुत से उतार-चढ़ाव हैं। उन्होंने तीन दशकों के दौरान तीन बड़ी बाजार गिरावट झेली हैं। वह 1990 के दशक की शुरुआत में दलाल स्ट्रीट के सटोरियों में से एक थे। उस समय हर्षद मेहता ट्रेडिंग, स्मार्ट निवेश और बैंकों एवं सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के साथ सौदे कर पहले ही काफी संपत्ति बना चुके थे। 1992 में हर्षद ताक ठोक कर कहते थे कि उनकी कंपनी ग्रोमोर कुछ साल में मेरिल लिंच से भी बड़ी होगी। राकेश शॉर्ट पोजिशन बेचने की वजह से हर्षद की तिकड़मों की वजह से चढ़ रहे तेजी वाले बाजार में लगभग दिवालिया होने के नजदीक पहुंच गए थे। हर्षद मुख्य रूप से अपनी बेवकूफियों की वजह से बरबाद हो गए मगर राकेश अपना वजूद बचाने में सफल रहे। यह विडंबना भी देखिए। हर्षद ने पत्रकारों, बिचौलियों और घोटालेबाज कारोबारियों के एक समूह की मदद से कुछ शेयर बढ़ाकर बेतरतीब ढंग से वापसी करने की कोशिश की, लेकिन वह भी असफल रही। इसके कुछ साल बाद एक नए बड़े बिग बुल केतन पारेख भी हर्षद के नक्शेकदम पर चले, लेकिन वह भी बरबाद हो गए। दूसरी तरफ राकेश ने अपनी रफ्तार और रणनीति बदली। इससे उनकी संपत्ति में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई क्योंकि उन्होंने अपना कारोबारी लाभ लंबी अवधि के लिए शेयर खरीदने में लगा दिया। उन्हें भारत की बढ़ती समृद्धि और लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ पर शून्य कर का फायदा मिला।

मैं सबसे पहले राकेश से 1996 में दलाल स्ट्रीट के नजदीक एक छोटे से कार्यालय में मिला था। उन्होंने मुझे विक्टर स्पेरांडियो की पुस्तकें पढ़ने का सुझाव दिया। उनकी एक अन्य सलाह यह थी कि हमेशा छोटी पोजिशन से शुरुआत की जानी चाहिए क्योंकि हम निश्चित रूप से कुछ गलतियां कर सकते हैं। इसके अलावा हमें नम्र बने रहना चाहिए क्योंकि बाजार क्रूर हो सकते हैं। ये उनके अनमोल सुझाव हैं। मेरी उनसे अगली मुलाकात उस समय हुई, जब भारत में 2002 में मंदी थी। मैंने हर किसी की तरह उनसे पूछा क्या लगता है। उनका जवाब था- तेजी, तेजी और तेजी।

इसके कुछ महीनों बाद अप्रैल 2003 से भारत में सबसे बड़ा और सबसे लंबा तेजड़िया बाजार रहा, जो पांच साल तक चला। एक बार हम होटल की लॉबी में थे। उस समय किसी ने उनसे पूछा- क्या आपने पूरा निवेश कर दिया है? उन्होंने चुटकी ली, ‘मैं हमेशा 130 फीसदी निवेश किए रहता हूं।’ इससे उधारी के धन की उनके प्रतिफल में भूमिका का पता चलता है। वह 2006 में मनीलाइफ की शुरुआत के मौके पर अतिथि थे और उन्होंने उस दिन मुझे ‘सकारात्मक’ रहने का सुझाव दिया था। राकेश की सफलता का बड़ा रहस्य यह था कि उन्होंने पूरी तरह दो विरोधी रणनीतियों (अल्पावधि का कारोबार और लंबी अवधि का निवेश) का मेल कर दिया और इसमें उधारी की नकदी का जायका लगाया। लेकिन यह बड़ा रहस्य है कि वे कैसे उधार धन से अल्पावधि के रुझानों के साथ चल सकते हैं और फिर भी बड़ी तस्वीर पर केंद्रित रह सकते हैं। यह रहस्य भी शायद उनके साथ ही चला गया।

धीमी गति से वापसी

भारत के परिवहन क्षेत्र की बात करें तो यहां यातायात रुझानों में ठहराव, कमजोर या ऋणात्मक प्रतिफल और इसके बावजूद भविष्य के लिए असाधारण स्तर के निवेश का अजीबोगरीब परिदृश्य बना हुआ है। यह आशा की जा सकती है कि वर्षों तक हर प्रकार के परिवहन में लाखों रुपये खर्च करने के बाद अगले दो या तीन वर्षों में हवाई सफर, राजमार्ग या एक्सप्रेसवे और रेलवे परिवहन में जबरदस्त बदलाव के रूप में इस निवेश का परिणाम देखने को मिल सकता है।

परंतु विरोधाभास यहीं समाप्त नहीं होता है। कोई भारतीय विमानन कंपनी पैसे नहीं कमा रही है और उड़ानों के दौरान घट रही घटनाओं ने सुरक्षा को लेकर चिंता पैदा कर दी है जबकि यात्री विमानों में उड़ान भरने वालों की तादाद महामारी के पहले वाले स्तर पर पहुंचने लगी है। इसके बावजूद नयी विमानन कंपनी में निवेश पहले से कहीं अधिक महत्त्वाकांक्षी स्तर पर है। आकाश एयर ‘अत्यधिक सस्ती’ विमान सेवा के रूप में उड़ान शुरू करने ही वाली है। कंपनी ने 72 विमानों का ऑर्डर दिया है। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी इंडिगो के पास 275 विमान हैं और उसने 700 विमानों का ऑर्डर दिया है। परंतु कंपनी के कर्मचारी वेतन कटौती आदि से नाखुश हैं। एयर इंडिया के नए मालिक (कंपनी ने 2006 के बाद नए विमान नहीं खरीदे हैं) अपने विमान बेड़े में व्यापक सुधार करने पर विचार कर रहे हैं। कंपनी के पास फिलहाल लगभग 120 विमान हैं जबकि कंपनी 300 और विमानों का ऑर्डर देने जा रही है।

समस्त नए ऑर्डर को मिला लिया जाए तो देश का मौजूदा 665 विमानों का बेड़ा दोगुने आकार का हो सकता है। जिन विमानों का ऑर्डर दिया गया है वे चरणबद्ध तरीके से आएंगे और उनमें से कई तो पुराने विमानों का स्थान लेंगे। परंतु इतने बड़े पैमाने पर विमानों का आगमन निश्चित तौर पर मांग वृद्धि पर भारी पड़ेगा। ऐसे में किराये पर दबाव पड़ सकता है जिसका नतीजा घाटे के रूप में सामने आएगा। अगर तेल कीमतें ऊंची बनी रहीं और कर भी मौजूदा स्तर पर रहे तो घाटा बढ़ना निश्चित है। जेट, किंगफिशर तथा कुछ अन्य उदाहरणों के बाद वर्तमान विमानन कंपनियों में से भी एक या अधिक बंद हो सकती हैं।

इसी तरह रेलवे में होने वाला निवेश भी अभूतपूर्व स्तर पर है। रेलवे में सकल घरेलू उत्पाद के एक प्रतिशत के बराबर सालाना निवेश किया जा रहा है। रेलवे धीरे-धीरे ‘सेमी हाई स्पीड’ ट्रेनों की शुरुआत कर रहा है जो औसतन 100 किलोमीटर की गति से यात्रा करती हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से भरे इलाकों में विस्टाडोम कोच पेश किए जा रहे हैं और रेलवे स्टेशनों के उन्नयन का एक बड़ा कार्यक्रम चल रहा है। यह बदलाव अपेक्षा से धीमी गति से हो रहा है क्योंकि डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (मौजूदा माल वहन का बड़ा हिस्सा इस पर स्थानांतरित होना है) के निर्माण की प्रगति न केवल धीमी रही है बल्कि इसकी लागत भी अनुमान से बहुत अधिक हो चुकी है। लेकिन यह भी एक हकीकत है कि अपेक्षाकृत तेज गति की ट्रेनों पर आरामदेह यात्रा छोटी दूरी के उड़ान मार्गों के साथ भी प्रतिस्पर्धा कर सकती है।

विडंबना यह है कि ये सारा कुछ तब हो रहा है जब यात्रियों की तादाद में ठहराव है जिससे भारी नुकसान हो रहा है। माल वहन में वृद्धि का धीमापन बहुत मुश्किल पैदा कर रहा है और वित्तीय स्थिति पर असर पड़ रहा है। ऐसे में राजस्व का स्तर व्यय के अनुपात में बिगड़ रहा है। ये रुझान बदल सकते हैं लेकिन रेलवे का सालाना निवेश अब राजस्व के बराबर है। इस निवेश का कोई हिस्सा परिचालन अधिशेष से नहीं है और अच्छा खासा हिस्सा बाहरी संसाधनों से आ रहा है जो बढ़ते कर्ज की वजह बन सकता है। बजट का बड़ा हिस्सा बजट सहयोग से आता रहेगा।

जहां तक सड़कों और राजमार्गों की बात है तो इनका सालाना निवेश रेलवे की तुलना में लगभग आधार है यानी सकल घरेलू उत्पाद का करीब 0.5 फीसदी। लेकिन निवेश पर वापसी निवेश पर वापसी राजस्व असंतुलन अधिक बुरी स्थिति में है क्योंकि निवेश, आय का नौ गुना है। निवेश में इजाफा होने के पहले निवेश और राजस्व लगभग बराबर थे। लेकिन देश में राजमार्गों और एक्सप्रेसवे का निर्माण तेज हुआ है और बंदरगाहों को सड़क मार्ग से जोड़ने का काम तेजी से चल रहा है। इस प्रकार देश की अधोसंरचना की कमजोरी को अंतत: दूर किया जा रहा है। नए राजमार्गों पर ट्रकों का परिवहन तेज हुआ है। वस्तु एवं सेवा कर इस प्रक्रिया में मददगार है लेकिन एक ट्रक द्वारा एक दिन में तय की जाने वाली औसत दूरी अभी भी दुनिया निवेश पर वापसी के अन्य हिस्सों से काफी कम है। निवेश पर प्रतिफल देश के परिवहन ढांचे में निवेश से जुड़े निर्णय लेने का प्राथमिक मानक नहीं है। यही कारण है कि इसकी फंडिंग वाणिज्यिक न होकर बजट से की जाती है। परंतु चूंकि परिवहन अधोसंरचना के लिए बड़े पैमाने पर निजी फंडिंग भी चाहिए इसलिए यह बात प्रासंगिक है कि भारत आधी सदी या उससे अधिक समय तक विभिन्न क्षेत्रों के बीच के परिवहन में धीमे या न के बराबर वृद्धि हासिल करता हुआ यहां तक आया है। किसी न किसी मोड़ पर परिवहन वृद्धि को निवेश को उचित ठहराना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो सरकार की परिसंपत्ति मुद्रीकरण योजना अपेक्षित आंकड़े नहीं पेश कर पाएगी। एक बार फिर हम उम्मीद ही कर सकते हैं।

भारत में निवेश के ins और बहिष्कार

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Market : बाजार में गिरावट, आगे भी जारी रहेंगे उतार-चढ़ाव, निवेशकों के लिए यह सतर्कता के साथ खरीदारी का सही समय

शेयर बाजारों में पूरे साल उतार-चढ़ाव जारी रहने का अनुमान है। निवेशकों के लिए यह सतर्कता के साथ खरीदारी करने का सही समय है। मौजूदा हालात में उन्हें अपनी गाढ़ी कमाई को ऐसे साधनों में लगाना चाहिए, जिनमें ठीक-ठाक रिटर्न मिलने की गुंजाइश हो। सुरक्षित निवेश के साथ बेहतर मुनाफे का पूरा गणित बताती अजीत सिंह की रिपोर्ट-

money new

केआर चौकसी के प्रबंध निदेशक देवेन चौकसी कहते हैं कि हमें निकट समय में बाजार की वापसी के बारे में बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं लग रही है। जिस तरह से पूरी दुनिया में ब्याज दरों के बढ़ने और महंगाई की वजह से बाजारों में गिरावट है, ऐसे में सुरक्षित निवेश ही समझदारी हो सकती है। निवेशक चाहें तो इस समय अगर शेयर बाजार में मुनाफे में हैं तो उसमें से निकासी कर लें। इसे फिर ऐसी जगह निवेश करें जहां डेट और इक्विटी दोनों का मिला-जुला साधन हो।

यानी डेट में ज्यादा हिस्सा हो और इक्विटी में कम हो। इसके लिए आप अगले कुछ समय तक के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) कर सकते हैं या फिर चाहें तो शॉर्ट टर्म ड्यूरेशन फंड को चुन सकते हैं। इस तरह के कोई भी निवेश आप 6 महीने से ज्यादा के लिए न चुनें क्योंकि जब भी बाजार गिरता है तो वह वापसी जरूर करता है। इस समय काफी सारे अच्छी क्वालिटी वाले ऐसे शेयर हैं, जो 50 फीसदी सस्ते भाव पर हैं।

अच्छे शेयरों में करें निवेश
सीए विजय मंत्री ने कहा कि बाजारों में इस समय बहुत ज्यादा अस्थिरता है। यह केवल एक देश की बात नहीं है। सारे बाजार इसकी चपेट में हैं। इसके कई सारे कारण भी हैं, जिनका निकट समय में कोई हल नहीं है।
n निवेशकाें को इस समय मुनाफा वसूली भी करनी चाहिए। वे चाहें तो अच्छे शेयरों में निवेश कर सकते हैं, खासकर जो गिरावट में हैं। ऐसे काफी सारे शेयर हैं जो इस समय सस्ते भाव पर हैं।

सतर्कता बरतें निवेशक
डॉलर की मजबूती और बॉन्ड की ब्याज दरों के बढ़ने से विदेशी निवेशक बिकवाल बने हुए हैं। अमेरिका के फेडरल रिजर्व और कई देशों के केंद्रीय बैंकों की ब्याज दर में बढ़ोतरी करने की रणनीति से वैश्विक स्तर पर ब्याज दरें ऊपर जा रही हैं। ऐसे में निवेशकों को सतर्क रुख अपनाना चाहिए। -वीके विजय कुमार, मुख्य निवेश रणनीतिकार, जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेस

विदेशी निवेशक लगातार कर रहे निकासी
आंकड़े बताते हैं कि विदेशी निवेशक केवल भारतीय बाजार से ही पैसे नहीं निकाल रहे निवेश पर वापसी हैं, बल्कि वे बहुत सारे उभरते हुए बाजारों से पैसे निकाल रहे हैं। खासतौर पर ताइवान, दक्षिण कोरिया, फिलीपीन और थाईलैंड के साथ भारत जैसे बाजारों से।

  • भारतीय बाजार से इस साल अब तक 2 लाख करोड़ रुपये की निकासी हुई है। विदेशी निवेशकों ने जून में 31 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के शेयर बेचे हैं। आगे भी यही रुझान जारी रहेगा।
  • इनके बेचने का प्रमुख कारण यह है कि दुनियाभर में ब्याज दरें बढ़ रही हैं। इसलिए वे शेयर बाजारों से पैसा निकालकर अब बैक एफडी में डाल रहे हैं, जहां ज्यादा मुनाफा मिल रहा है।

स्मॉल कैप भी बेहतर
निवेश को लेकर कभी भी यह धारणा गलत साबित हो सकती है कि केवल बड़े शेयर ही मुनाफा दे सकते हैं। आंकड़े बताते हैं कि लार्ज और मिडकैप की तरह स्मॉलकैप ने भी अच्छा रिटर्न दिया है।

  • पिछले 10 वर्षों में 6 बार स्मॉलकैप के शेयरों ने दो अंकों से ज्यादा फायदा दिया है, जबकि चार बार घाटा दिया है।
वर्ष रिटर्न
2014 43%
2015 10%
2016 26%
2017 40%
2018 -25%
2019 -2%
2020 20%
2021 41%
2022 -22%

विस्तार

केआर चौकसी के प्रबंध निदेशक देवेन चौकसी कहते हैं कि हमें निकट समय में बाजार की वापसी के बारे में बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं लग रही है। जिस तरह से पूरी दुनिया में ब्याज दरों के बढ़ने और महंगाई की वजह से बाजारों में गिरावट है, ऐसे में सुरक्षित निवेश ही समझदारी हो सकती है। निवेशक चाहें तो इस समय अगर शेयर बाजार में मुनाफे में हैं तो उसमें से निकासी कर लें। इसे फिर ऐसी जगह निवेश करें जहां डेट और इक्विटी दोनों का मिला-जुला साधन हो।

यानी डेट में ज्यादा हिस्सा हो और इक्विटी में कम हो। इसके लिए आप अगले कुछ समय तक के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) कर सकते हैं या फिर चाहें तो शॉर्ट टर्म ड्यूरेशन फंड को चुन सकते हैं। इस तरह के कोई भी निवेश आप 6 महीने से ज्यादा के लिए न चुनें निवेश पर वापसी क्योंकि जब भी बाजार गिरता है तो वह वापसी जरूर करता है। इस समय काफी सारे अच्छी क्वालिटी वाले ऐसे शेयर हैं, जो 50 फीसदी सस्ते भाव पर हैं।

अच्छे शेयरों में करें निवेश
सीए विजय मंत्री ने कहा कि बाजारों में इस समय बहुत ज्यादा अस्थिरता है। यह केवल एक देश की बात नहीं है। सारे बाजार इसकी चपेट में हैं। इसके कई सारे कारण भी निवेश पर वापसी हैं, जिनका निकट समय में कोई हल नहीं है।
n निवेशकाें को इस समय मुनाफा वसूली भी करनी चाहिए। वे चाहें तो अच्छे शेयरों में निवेश कर सकते हैं, खासकर जो गिरावट में हैं। निवेश पर वापसी ऐसे काफी सारे शेयर हैं जो इस समय सस्ते भाव पर हैं।

सतर्कता बरतें निवेशक
डॉलर की मजबूती और बॉन्ड की ब्याज दरों के बढ़ने से विदेशी निवेशक बिकवाल बने हुए हैं। अमेरिका के फेडरल रिजर्व और कई देशों के केंद्रीय बैंकों की ब्याज दर में बढ़ोतरी करने की रणनीति से वैश्विक स्तर पर ब्याज दरें ऊपर जा रही हैं। ऐसे में निवेशकों को सतर्क रुख अपनाना चाहिए। -वीके विजय कुमार, मुख्य निवेश रणनीतिकार, जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेस

विदेशी निवेशक लगातार कर रहे निकासी
आंकड़े बताते हैं कि विदेशी निवेशक केवल भारतीय बाजार से ही पैसे नहीं निकाल रहे हैं, बल्कि वे बहुत सारे उभरते हुए बाजारों से पैसे निकाल रहे हैं। खासतौर पर ताइवान, दक्षिण कोरिया, फिलीपीन और थाईलैंड के साथ भारत जैसे बाजारों से।

  • भारतीय बाजार से इस साल अब तक 2 लाख करोड़ रुपये की निकासी हुई है। विदेशी निवेशकों ने जून में 31 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के शेयर बेचे हैं। आगे भी यही रुझान जारी रहेगा।
  • इनके बेचने का प्रमुख कारण यह है कि दुनियाभर में ब्याज दरें बढ़ रही हैं। इसलिए वे शेयर बाजारों से पैसा निकालकर अब बैक एफडी में डाल रहे हैं, जहां ज्यादा मुनाफा मिल रहा है।

स्मॉल कैप भी बेहतर
निवेश को लेकर कभी भी यह धारणा गलत साबित हो सकती है कि केवल बड़े शेयर ही मुनाफा दे सकते हैं। आंकड़े बताते हैं कि लार्ज और मिडकैप की तरह स्मॉलकैप ने भी अच्छा रिटर्न दिया है।

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